कूण्डली और एकादश भाव

Share

Pandit Dilip 29th Jan 2019

*कुंडली में एकादश भाव*

*कुंडली के ग्यारवाँ भाव की परिभाषा समझना लाभ के मसले में बहुत सी ऐसी बातो से जुड़ा है,जिसका गुप्त फल अगर समझ में आ जाता है तो व्यक्ति के जीवन मे तीन काम मकान,कारोबार धन को भाग्य सहारे ऐसे अर्जित धन की रक्षा करता है जो नियमित तथा अथाह आय से जुड़ा हुआ घर है,कुंडली के ग्रहो के अनुसार कार्य का चुनाव उस हिसाब से कर लिया जाये, जैसे चौथा घर प्रत्येक सुखो से जुड़ा है उसमे मुख्यता वाहन,सुख,मकान ही अहम् है।

लेकिन एकादश भाव दुनियाँ के प्रत्येक लाभ प्राप्ति जिसका आधार कोई अजनबी भी आपना या पराया बेगाने से भी पहुँच जाये तो इसमें तनिक सन्देह ही नही हो सकता कयोकि अचानक भागय प्राप्ति करने वाला यह घर बहुत सी प्रगतियो से भी धन योग के कारण जुड़ा है,भलिभाँति के लाभ भी दैनिक जीवनचर्या समेत सब इस घर से जुड़ा है।पहले घर का मालिक अगर गयारवे स्वंय की सोची हुयी स्कीम़ो को लागू करने पर किये कामो की सफलता मिलना इसी योग का काम है।इसी तरह दुसरे घर का मालिक गयारहवे अचानक मिलने वाले किसी भी क्षेत्र के बल पर अर्जित धन को ओर प्रमोट होने वाला धनवानो वाला योग होता हे।तीसरे घर का मालिक गयारवे बैठ ऐसी सोसाईटी से मेल मिलाप के जरिये,धन लाभ मिलने वाला योग है,जिसमे स्वंय की पराक्रम की अपेक्षा दुसरो का योगदान अधिक रह लाभ हासिल दिलाने वाला योग भी साथ मिलकर बनता है।चौथे घर का मालिक पब्लिक को जोड़ नेतागिरी ओर रियल स्टेट ओर ट्रांसपोर्ट के कामो से निरन्तर लाभ प्राप्ति योग है।पाँचवे का मालिक गयारवे,उत्तम सन्तान,रोमान्स की सफलता प्राप्ति ओर जीवन मे बुद्बि के बल नियमित फायदा पहुँचने वाला सुयोग है।छटे घर का मालिक गयारवे होने पर शत्रुओ दब कर बाहर का रास्ता देखना पसन्द करते है,रौबदार दमदार शैली से शत्रुओ के छोड़ चुके कामो से लाभ की बुलन्दी तक पहुँचाने वाला योग है

.* *साँतवे घर का मालिक गयारवे शादी के बाद भाग्य उदय होने वाला शुभ योग है,जिसकी इन्कम रेगुलर और स्थाई होकर जीवन के अन्तिम छोर तक द्रव्य का बेनेफिट दिलाती रहती है.आठवे का मालिक गयारवे वसीयत से धन,प्रापर्टी हासिल होने वाला प्रबल ऐसा योग है,जिसमें बगैर परिश्रम के ही बहुत कुछ मिल जाता है।नवम का मालिक गयारवे,भाग्य की ताकत से ऐसा लाभ दिला सकता है जिसमे किसी वक्त भी मिटटी से सोना बन चरमसीमा तक लाभ शुभ योग फलीभुत हो के तुरन्त आने पर संचय अर्जित हो जाता है।दसवे का मालिक गयारवे,कर्मशीलता के आधार स्वंय धन प्राप्ति का उतम योग है।गयारवे का स्वामी,ग्यारवें में होने पर किसी क्षेत्र के चुने बगैर भी किसी क्षेत्र मे काम के हस्तक्षेप के बाद या बनी बनायी प्रापर्टी ओर संचित धन से आय होने वाले योगो मे गिना गया है. जबकि बाँहरवे भाव का स्वामी ग्यारवें में हो तो बहुत सा धन खर्च होकर हवा में रह कर जीवनभर बहुत अछी रोजी रोटी,ओर समय समय पर खर्च सहारे ओर लाभ से मिलाने वाला योग है।इच्छा जो मन में सोची है वो पूरी होगी या नही वो सभी इसी भाव पर निर्भर करती है।इस भाव की पोजीशन जितनी सही हो जातक जीवन में उस अनुपात से लाभ प्राप्त करता है जिसकी उसे आपातकाल में भी जरूरत जीवन में पडती है,ओर पैसे हाथ में रहकर पोजिशन मजबुत बनती है। ज्योतिष इस ग्यारवें भाव को आय का भाव माना गया है |ये भाव हमारे लालच को भी दर्शाता है की हम अपने लालच को पूरा करने के लिय किस हद तक जा सकते है|ये भाव हमारे घर की बाहरी शोभा को भी दर्शाता है की घर बाहर से देखने पर अमीर का लगता है या गरीब का,ओर अन्दरुनी धन दौलत का रुतबा कैसा है,इस घर का ही रोल है।

* *हमारे जिस्म में ताकत के रूप ये भाव दर्शाता है की अपना फर्ज निभाने के प्रति हम किस हद तक सुस्त या लापरवाह हो सकते है|यानी इस भाव में शुभ ग्रह होने पर जातक अपने जीवन के अवसरों को खोता नही है वरना बहुत से अवसर अपने हाथ से खो देता है अपनी लापरवाही के कारण |* *ये भाव हमारी चेतना को दर्शाता है जो हम दूसरों की भलाई के लिय रखते है |ये भाव हमारी किस्मत की उंचाई का है यानी हमारी किस्मत हमे कितना ऊँचा उठा सकती है उसे ये ही भाव दर्शाता है|ये भाव हमारी आमदनी का भाव है यानी की हमारी आय क्या होगी हम अपनी कोशिश से कितना धन कमा पाएंगे उसे ये ही भाव दर्शाता है यदि इस भाव में शुभ ग्रह है तो शुभ कार्यों द्वारा आय की प्राप्ति होती है और यदि अशुभ ग्रह है तो अशुभ साधनों से आय प्राप्ति के योग बनते है. लेकिन क्रुर और पापी ग्रह यहाँ ज्यादा रफ्तार से उन्नति देते है.* *ये भाव हमारे जन्म के समय हमारे माता पिता की आर्थिक हालत पर भी प्रकाश डालता है इस भाव में अशुभ ग्रह होने पर जन्म समय माता पिता की आर्थिक हालत अच्छी नही मिलती|ये भाव हमारे धन कमाने के साधनों को भी दर्शाता है की हमारे धन कमाने के कितने साधन होंगे,उन में तबदीलियाँ भी केसी होगी| हमारे धर्म की प्रति हमारा कितना झुकाव होगा उसी को ये भाव दर्शाता है साथ भी ये भी दर्शाता है की धार्मिक होने से हमे कितना नफा या नुक्सान हो सकता है,क्योंकि नवम के भाग्य का भी आँशिक प्रभाव भी इस घर में रहता है|पेड़ में ये भाव छाया वाले पेड़ों को दर्शाता है जिनके कांटे नही होते जैसे पीपल बरगद आदि |

* *मकान के सम्बन्ध में ये हमारे ख़रीदे हुये मकान को दर्शाता है यानी जो मकान न तो हमे बुजुर्गों से मिला है और न ही हमने खुद बनाया है यानी बना बनाया खरीदा है |किसी के साथ हमारी पहली मुलाक़ात कैसी होगी उसको भी ये भाव दर्शाता है जैसे की हमारी नोकरी के पहले दिन हमारा जो पहला अफसर होगा कैसा होगा उसका व्यवहार हमारे साथ कैसा होगा |इसके साथ हम दूसरों से क्या पायेंगे वो भी ये भाव दर्शाता है।अधीनस्थ कर्मचारी का नैचुरल व्यहार आपके प्रति कया है,कया वह आपकी कारगुजारी से खुश है या कोई ऐसा काम के प्रति सहकर्मियो के साथ मिलकर कोई लाभ के प्रति षडयन्त्र तो नही रच सकते,यह सब आने वाले समय के स्टेटस की जानकारी भी इसी लाभ के घर से मिलना महज स्वभाविक ही है,यह भाव हमारे मित्रों का भी है हमारे मित्र कैसे होंगे उनसे हमे लाभ हानि कैसी मिलेगी वो सब इसी भाव से पता चलता है,इसके साथ ही ये भाव हमारे बड़े भाई को भी इंगित करता है,ये भाव हमारे जीवन की इच्छा पूर्ति का भाव है जीवन में हमारी इच्छाओ की पूर्ति किस हद तक हो पाएगी आदि सब इसी भाव पर निर्भर करता है |

* *भाव भावत सिद्धान्त से देखें तो ये भाव पंचम से सप्तम होने के कारण हमारे पुत्र की पत्नी यानी की पुत्र वधु का भी भाव है तो साथ ही विद्या अध्ययन में मिलने वाले सहयोगियों याने के हमारे सहपाठी को भी ये भाव दर्शाता है |ये भाव छ्टे भाव से छटा होने से हमारे शत्रु के शत्रु का भाव होता है और शत्रु के शत्रु मित्र होता है इसिलिये भी ये भाव मित्र का भाव माना जाता है.सप्तम भाव से ये भाव पंचम भाव होता है इसिलिये पत्नी से सन्तान की प्राप्ति के व लिये इस घर को सुधार कर स्वस्थ सन्तान प्राप्त होने का श्रेय इसी घर को है।

* *यदि कोई अन्य भावेश इस भाव में चला गया है तो उसका अभिप्राय है की उस भाव से सम्बन्धित फल जातक को बढकर मिलेंगे जैसे की लग्नेश यदि इस भाव में होगा तो जातक अपने खुद के दम पर अच्छी आय प्राप्त करेगा और अपनी इच्छाओं की पूर्ति करेगा |यदि सप्तमेश इस भाव में है तो जातक की पत्नी को जीवन में जातक से ऐसे लाभ मिलेगे,जो उसको माँगने पर पर भी न मिल सके|किस प्रकार अन्य भावेश की स्थिति से हम इसका अनुमान लगा सकते है | कुंडली में एक ये ही भाव ऐसा होता है जिसके बारे में ये माना जाता है की इस भाव में कोई ग्रह जल्दी से बुरा फल नही देता | इस भाव में कालपुरुष की कुंडली में कुम्भ राशि आती है जिसमे एक इंसान पानी से भरे हुवे मटके को कंधे पर उठाये हुवे है और पानी का भरा हुआ मटका दूसरों की प्यास बुझाने के काम आता है और उनकी आत्मा को एक तरह से तृप्त करता है उसी प्रकार ये भाव ये जातक की मनोकामनाओं को पूरा करने का काम तब करता है,जब कुंडली का लग्नेश पंचमेश भागेश का स्वामी भी गयारवे भाव या उसके मालिक से कम्बीनेशन कर ओर मजबुत करे।


Like (0)

Comments

Post

Latest Posts

यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

Top