आज हर व्यक्ति चाहता है कि उसका अपना कोई व्यवसाय हो। बेशक वह छोटा हो किन्तु अपने किसी व्यवसाय की बात ही निराली होती है। कई बार हम बहुत चुनौतियों का सामना करते हुए कोई अपना काम शुरू भी कर देते हैं लेकिन वहां हम सफल होंगे या असफल यह कोई नहीं जानता है। किन्तु व्यक्ति की जन्म कुंडली को देखकर यह बताया जा सकता है कि क्या आप अपना व्यवसाय शुरू कर सकते हो? या वह उत्तम समय कब आयेगा जब आप अपना कोई काम प्रारंभ कर सकते हैं?
आइये एक नजर डालते हैं कुंडली के उन योगों पर जो व्यक्ति के व्यवसाय को सफल बनाने में मदद करते हैं
अगर कुंडली के कर्म स्थान में ब्रहस्पति बैठा हो (जो भाग्य का मालिक होता है) तो यह केंद्रादित्य योग बनता है। यदि किसी जातक की कुंडली में यह योग होता है तो उस व्यक्ति का व्यवसाय अन्य जातकों की तुलना में अच्छा चलता है।
अगर कर्म स्थान पर बुध या सूर्य की दृष्टी हो या इन ग्रहों में से कोई ग्रह कर्म के स्थान (दसवें भाव) में विराजमान हो तो यह लक्ष्मी नारायण योग बनता है। इस प्रकार के जातकों को व्यवसाय में लाभ प्राप्त होने के अवसर ज्यादा प्राप्त होते हैं।
जातक की जन्म कुंडली में अगर मंगल उच्च का होकर कर्म भाव में विराजमान है तो ऐसे व्यक्ति को व्यवसाय और विदेश यात्रा के अच्छे संयोग बन जाते हैं।
कुंडली के केंद्र में अगर कहीं भी गुरू और सूर्य या चंद्रमा और गुरु की युक्ति (मेल-मिलाप) बन रहा हो तो इस योग का सीधा प्रवाह कर्म को जाता है। शास्त्रों में इसे वर्गोतम योग बोला जाता है। इस योग में व्यक्ति को सभी प्रकार की सुख-सुविधायें प्राप्त होती हैं।
सप्तम दृष्टी सभी ग्रहों की होती है। ब्रहस्पति, सूर्य या मंगल इन शुभ ग्रहों में से किसी की भी दृष्टी अगर दसवें घर पर हो तब भी कर्म भाव में अच्छा फल व्यक्ति को प्राप्त होता रहता है।
राहू भी अगर कर्मभाव की तरफ देखता है या कर्म भाव में उच्च का होकर विराजमान हो तो यह भी योग व्यवसाय के लिए अच्छा माना जाता है। बेशक शनि, राहू और केतु अशुभ ग्रह माने जाते हैं किन्तु कई बार योग के कारण यह ग्रह अच्छे फल प्रदान कर देते हैं।