🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 *राम कथा कौन न कहे??* *और किससे न कहें??* 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 गोस्वामी तुलसीदास जी महराज ने श्रीराम चरित मानस को जब,जनमानस को समर्पित करने का मन बनाया, तब ही उनके मन मे यह प्रश्न उठ गया था कि कथा तो यह बहुत सरस है मधुर है लोक हितकारी है परन्तु इसके कुछ सूत्रों का, मूर्ख कपटी,हठी लोभी दम्भी दुर्जन लोग अपने अपने हिसाब से दुरुपयोग भी करेंगे,और ऐसा सोंचकर ही उन्हों ने इसके कहने सुनने के अधिकार पर एक नियमावली (कोड ऑफ कण्डक्ट) भी जोड़ दिया! उन्हों ने स्पष्ट कर दिया कि इसे कौन लोग नहीं कह सकते और किससे नहीं कहना है! तो मित्रों आइए विचार करें कि इसे किससे नहीं कहना है??---
*यह न कहिअ सठही हठसीलहि।*
इस कथा को सठ से नहीं कहना है,(वैसे तो यहाँ सठ सामान्य तौर से मूर्ख को ही कहा गया है,परन्तु सठ एक विशेष तरह के मूर्ख होते हैं जिन्हें आम भाषा मे अल्हड़ कहा जाता है ,और जो कुछ भी कह बोल दे जिसपर शब्द चिंतन,कथन,आदि की सौम्यता का विश्वास न किया जा सके उसे सठ कहते हैं ),अच्छा तो सठ से क्यों नहीं कहना चाहिए?? तो सीधा सा उत्तर है कि न तो उसके समझ मे आपके दृष्टांत आएंगे ही न ही उसका ध्यान ही उसपर होगा,वह तो यह सोंच रहा होगा कि मुझे इस बाबा से कौन सा फालतू सवाल पूछना है! और इसी लिए वह कथा मे न तो रुचि रखेगा न ही वह उसे मन लगाकर सुन ही पाएगा! और इसी भाव को स्पष्ट भी किया!--
*जो मन लाइ न सुन हरि लीलहि।*
अच्छा तो जब सठ,से कहे जाने का प्रतिबंध है तो जाहिर सी बात है कि सठ द्वारा राम कथा कहे जाने पर भी प्रतिबंध अवश्यंभावी हो जाता है! क्यों?? क्यों कि उसे खुद नहीं पता कि वह क्या कह देगा!😃 उसे न तो भाषा समझ आएगी न ही वह दृष्टांत दे सकेगा,बस ऊट पटांग कुछ का कुछ कहेगा और अर्थ का अनर्थ करेगा! अतः सठ को कथा नहीं बांचनी चाहिए,परन्तु यह तो कलियुग है यहाँ तो सौ-सौ के बाद भी,तमाशा देखने वालों की भीड़ लगी रहती,है वो तो सीना ठोक कर कहते हैं कि मै तो,कहूँगा! तो भइया कहो!दूसरे का न सही अपना कल्याण तो कर ही डालोगे! अच्छा और कौन है महराज जिससे यह कथा नहीं कहनी?? तो कहा कि--
*कहिअ न लोभिहि क्रोधहि कामिहि।*
इस कथा को ,लोभी, क्रोधी और कामी से भी नहीं कहना है! क्यों गुरू जी??? तो कहा, *कि वह सुनेगा ही नहीं!* तो भला बताओ कि जब सुनेगा ही नहीं,तो फिर उसे क्यों सुनाना! क्यों महराज वह क्यों नहीं सुनेगा?? तो,कहा
*जो न भजइ सचराचर स्वामिहि।*
क्यों कि वे भगवान को नहीं भजते,कथा सुनेंगे तो उन्हें भगवान को भजना पड़ेगा! तुम तो कहोगे कथा मे-- कि,
*रामहिं सुमिरिअ गाइय रामहिं!*
तो महराज इसमे इनको क्या समस्या होगी! तो कहा अरे प्रभु जी!! लोभी,का मन राम मे लगेगा कि दाम मे?? क्रोधी का मन ही उसके नियंत्रण मे नहीं होता! और कामी?? उसका तो कहना ही क्या??
*जहाँ काम तहं राम नहिं!*
कामी दिन रात तरुणी के चिंतन मे मस्त होता है,लोभी कौड़ी के लोभ मे व्याकुल होता है और क्रोधी का तो मन ही उसके वश मे नहीं होता,तो जिसका चित्त ही कहीं और भटक रहा हो वह यह कथा न तो सुन पाएगा न ही कह पाएगा! अतः कामी क्रोधी लोभी ऐसे कथाकारों से भी सावधान!! मैने मर्यादावश इनका बहुत वर्णन नहीं किया है,परन्तु आप सब जानते ही हैं!😃 और किसे नहीं सुनाना है महराज ?? तो कहा कि,
*द्विज द्रोहिहि न सुनाइअ कबहूँ।*
ब्राह्मण विप्र द्विज इन सब से द्रोह करने वाले को भी नही सुनाना है! कहा क्यों महराज?? कहा क्यों कि भगवान को अच्छा नहीं लगेगा! अच्छा क्यों नहीं लगेगा?? क्यों कि, *भगवान ब्राहमणप्रियः!* ब्राह्मण,यानी ब्रह्मज्ञानी भगवान को सहज प्रिय होते हैं । भगवान स्वयं काकभुसुण्डि को सावधान करते हुए कहते हैं- -
*अब जनि करेसि बिप्र अपमाना!*
*सुनहि सूद्र मम बचन प्रवाना!*
तो महानुभाव मान लीजिए कोई प्रभावशाली व्यक्ति हो तो?? तो कहा इस पर भी नहीं
*सुरपति सरिस होइ नृप जबहूँ।*
प्रभावशाली तो क्या इंद्र के समान वैभवशाली राजा हो तो भी नहीं सुनाना है! जबकि आजकल कथाकारों मे चाटुकारिता इस कदर बढ़ी कि यदि ओमान के सुल्तान को कथा सुनाने का अवसर मिल जाय तो कथाकार महानुभाव जन, राम कथा के मंच से ही अली मौला अली मौला गाने को तैयार हैं,तो ऐसे चाटुकार को,कथावाचन,से सर्वथा वंचित किए जाना चाहिए! ठीक है महराज,🌷🙏 तो यह भी बता दीजिये कि सुनाना किसे है?? तब कहा!--
*राम कथा के तेइ अधिकारी।*
रामकथा के तो वही अधिकारी हैं! कौन?? कहा--
*जिन्ह कें सतसंगति अति प्यारी।*
जिन्हें सत संगति संत संग अत्यंत प्रिय हो! जो धर्मशील धर्मवीर धर्मात्मा हो! क्यों कि वही इसका सदुपयोग कर सकता है! अब कोई बहुत अचूक दवा किसी ऐसे जिद्दी द्रोही व्यक्ति को आप दे दें जो उसका सेवन ही न करेअपितु फेंक दे तो उस महा औषधि का दुरुपयोग ही तो हुआ! तो महत्व पूर्ण औषधि उसे दें जो पात्र हो, और उसी से सुने भी जो स्वयं भी पात्र हो! तो इस दवा का पात्र कौन होता है?? तो कहा कि,
*गुर पद प्रीति नीति रत जेई।*
जिसकी गुरु के चरणों मे प्रीति हो! जो नीतियों को जानने मानने व उनको आचरित करने वाला हो! उनके लक्षण क्या हैं?? कैसे उन्हे पहचानेंगे?? तो कहा, सरल है-
*द्विज सेवक अधिकारी तेई।*
जो द्विज,यानी संस्कारवान की सेवा मे होते हैं,अर्थात स्वयं भी संस्कार वान होते हैं,वही यह कथा कहने सुनने के असली अधिकारी हैं! शेष तो-- आज के कथा कहने सुनने वालों की क्या कहें?? आप सब जान ही रहें हैं कि कैसे कैसे लोग यह कथा कह और सुन रहे हैं--
*कामक्रोध मद लोभ परायन।* *निर्दयकपटीकुटिलमलायन।*
जो काम क्रोध मद लोभ के चक्र मे मस्त दया विहीन व कुटिल तथा मलयुक्त हैं, वही इस समय कथा वाचक बने घूम रहे हे हैं, अथवा, जो स्त्रैण्य लोग हैं,उम्र के उस पड़ाव पर भी जहाँ से उन्हे हरि कीर्तन मे चित्त लगाना था परन्तु स्त्री लम्पट होने के नाते उन्हों ने बेटी की उम्र की तरुणी घर मे व्याह लाते हैं और जिन्हे जरा भी शर्म नहीं आती ऐसे निर्लज्ज यदि राम कथा कहें,तो यह एकदम ही हास्यापद होगा--
*परत्रियलम्पट कुटिलशयाने।*
*मोह द्रोह ममता लपटाने!*
तो यह कथा मर्यादा पुरुषोत्तम की है,अतः उपर्युक्त लक्षणों से सम्पन्न,ढोंगी व्यभिचारी,मिथ्याभाषी लोगों को न तो यह रुचिकर लगेगी,नहीं उनके द्वारा यदि यह कही जाय तो हितकर ही होगी!! *मै किसी व्यक्ति विशेष पर यह टीका नहीं दे रहा मै तो वही कह रहा हूँ जो मानस कह रही है कि यह चरित्रवान मर्यादा पुरुषोत्तम की कथा मर्यादा विहीन लम्पट पुरुषों के मुख से अच्छी नहीं लगती!!* तो, महराज फिर यह रुचिकर किस तरह, कल्याण कारी किस तरह है,व किसको किसको है?? तो कहा, कि,
*ता कहँ यह बिसेष सुखदाई।*
*जाहि प्रानप्रिय श्रीरघुराई।*
यह कथा वैसे तो गलती से भी यदि कानो मे पड़ जाय तो सबका हित करने वाली है! परन्तु उसके द्वारा यदि कही सुनी जाय जिसे रघुनाथ श्रीराम जी प्राणों के समान प्रिय हैं,अर्थात जो प्राण त्याग सकता है पर मर्यादा नहीं,तो फिर उसके लिए यह विशेष हितकारी,विशेष फलदायी हो जाती है। ऐसे ही मर्यादा पुरुष सज्जन संत स्वभाव सरल चित्त ज्ञानी कथावाचक के द्वारा ही यह कथा कहे जाने योग्य है
*न तु कामी बिषयाबस बिमुख जे पद रघुवीर!*
कामी,विषयासक्त स्त्रैण्य और मर्यादा विहीन व्यक्ति के मुख से यह कदापि अच्छी नहीं लगेगी। वह कहने लगेगा तो आप सुन ही न सकोगे,आपको एक अजीब सी पीड़ा महसूस होगी----
( *छमिहंहि सज्जन मोरि ढिठाई* दुष्ट लोग गये ठेंगे पर😃 ) 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 🌷सीताराम जय सीताराम 🌷 🌷सीताराम जय सीताराम 🌷 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 * पवन कुमार पाण्डेय *
कुछ शर्म है कि सब बेच खाई।मेरे लेख को अपने नाम से जानता है