*7 सितंबर से शुरू होगा गणेश उत्सव,गणपति बप्पा होंगे विराजमान* गणेश जी की प्रतिमा को पूर्व या उत्तर में विराजमान करें। भगवान गणेश,मंगल और शुभ के देवता हैं। यह जहां स्थापित होते हैं वहां शुभ हो जाता है। गणेश पुराण के अनुसार सुख_समृद्धि शुभ_लाभ और वैभव बना रहता है। इसलिए इन्हें मंगल मूर्ति कहा जाता है। गणेश स्थापना के साथ शुभ_लाभ रिद्धि_सिद्धि की स्थापना भी होती है। ये शक्तियों अपने नाम से ही प्रभाव देती हैं। शहर के धारूहेड़ा चुंगी स्थित ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य अजय शास्त्री के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को मध्यान्ह काल में हुआ था।यह गणेश उत्सव 10 दिनों तक चलता है। जिसमें बड़े-बड़े पंडालों में गणपति बप्पा को विराजमान कर उनकी पूजा उपासना की जाती है। शास्त्रों के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है। कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथी को संकष्टी और शुक्लपक्ष के चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में मनाते हैं। मान्यता के अनुसार गणेश जी की पीठ पर दरिद्रता का वास होता हैं। इसलिए गलती से पीठ के दर्शन नहीं करना चाहिए। घर में गणेश जी बाएं हाथ की ओर सुंडवाली मूर्ति स्थापित करना चाहिए। घर में मिट्टी की बनी प्रतिमा स्थापित करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य शास्त्री के अनुसार *भगवान गणपति का पूजन कैसे करें* भगवान गणेश की मूर्ति को विराजमान कर, मध्यान्हकाल,अभिजित मुहूर्त 11:56 से 12:46 व वृश्चिक लग्न 11:25 से 01:44 गणपति पूजा करें पंचोपचार व षोडशोपचार गंध,अक्षत,पुष्प, दूर्वा,फल और मोदक के लड्डू का भोग लगाएं भगवान गणेश को दूर्वा और मोदक अति प्रिय है_अथर्ववेद में लिखा है " यो मोदक सहस्त्रेन यजति। जो व्यक्ति हजार मोदक के लड्डू भगवान गणेश को चढ़ता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। गणेश अथर्वशीर्ष, गणेश सहस्त्रनाम, गणेश चालीसा, संकट नाशक स्तोत्र, ॐ गं गणपतये नमः, गणेश जी 12 नाम आदि मंत्रों का जप करें। ज्योतिषाचार्य ने बताया कि भगवान गणेश को सनातन धर्म में गणेश जी को विद्या_बुद्धि प्रदाता, विघ्न विनाशक ,मंगलकारी, सिद्धि दायक ,रक्षा कारक, समृद्धि ,शक्ति और सम्मान दिलाने वाले देव माने जाते हैं। भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करने से बचना चाहिए।ऐसी मान्यता है कि चंद्र दर्शन करने से मानहानि कि आशंका बढ़ जाती है। 17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी, के साथ गणेश विसर्जन। 18 सितंबर से शुरू होंगे श्राद्ध पक्ष।
*क्यों करते है गणेश विसर्जन*
क्यों किया जाता है गणपति विसर्जन_ महर्षि वेदव्यास ने जब महाकाव्य (महाभारत) की रचना प्रारंभ की तो भगवान ने उन्हें प्रथम पूज्य बुद्धि निधान श्री गणेश जी की सहायता लेने के लिए कहा।
गणेश जी, गणेश चतुर्थी के दिन वेदव्यास जी के पास गए उन्होंने आदर सत्कार करके आसन स्थापित कर विराजमान कराया।
तत्पश्चात वेदव्यास जी ने बोलना प्रारंभ किया और गणेश जी उसे लिपिबद्ध करना लगातार 10 दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा और अनंत चतुर्दशी के दिन इसका समापन हुआ।
कथा में बताया जाता है कि भगवान लीलाओं और गीता का रसपान करते-करते गणेश जी का (अष्टसात्विक भाव)आठ प्रकार के भाव का आवेग हो गया जिससे उनका शरीर गर्म हो गया था। गणेश जी की इस तपन को शांत करने के लिए।
वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया इसके बाद फिर उन्होंने गणेश जी को जलाशय में स्नान कराया।
जिससे उनकी तपन शांत हुई।
(जिससे यह विसर्जन की प्रथम प्रारंभ हुई)