ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तक
Share
वेद और वेदांग ज्योतिष को संक्षिप्त में समझने के बाद वैदिक शिक्षा में पुराणों को स्थान प्राप्त है । महर्षि पराशर के पुत्र महर्षि वेदव्यास ने अठारह पुराणों की रचना की सभी पुराणों में ज्योतिष ज्ञान की बात लिखी हुई है । विद्वानों का मत है कि वेदों में राशियों का वर्णन नहीं मिलता राशियों के विषय में जानकारी पुराणों से प्राप्त होती है ।
पुराणों की बात को यहीं समाप्त करते हुए सिर्फ इतना कहना चाहेंगे कि -
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचन द्वयम् ।
परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम ।
अठारह पुराणों में वेदव्यास जी ने सिर्फ दो ही बातों को प्रबलता से कहने का प्रयास किया है कि परोपकार से पुण्य की बृद्धि होती है और दुसरे को पीड़ा पहुंचाने से पाप की बृद्धि ।
आगे बढ़ते हुए यह कहना चाहेंगे कि वेद, पुराण, उपनिषद आदि हमारे धर्म, संस्कृति, शिक्षा आदि का साहित्य नहीं अपितु कोटि यागों तक चराचर जगत की रक्षा एवं विकास के लिए मार्गदर्शक है । जिसमें ज्योतिष का भी विशेष योगदान है ।
ज्योतिष शास्त्र नक्षत्र व राशि आदि की स्थिति के अनुकुल या प्रतिकुल गहों की गति की गणना का विज्ञान है । जिनके अठारह प्रवर्तक हमारे मनीषियों ने कहा है -
सूर्यः पितामहो व्यासो वसिष्ठोऽत्रि पराशरः ।
कश्यपो नारदो गर्गो मरीचिर्मनुरङ्गिराः।।
लोमशः पौलिशश्चैव च्यवनो यवनो भृगुः ।
शौनकोऽष्टादशश्चैते ज्योतिःशास्त्र प्रवर्तकः ।।
सूर्य, ब्रह्मा, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पौलिश, च्यवन, यवन, भृगु तथा शौनकादि ऋषि ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तक कहे गये हैं ।
इन महर्षियों के बाद हम आप सभी इसके संकलन कर्ता या किसी विशेष व्याख्या के साथ अपने आप को लेखक, व्याख्याकार या प्रचारक कह सकते हैं ।
मूलरूप से हमलोग पराशर एवं उनके परम शिष्य मंत्रेश्वर की वार्तावली को ही समझने का प्रयास करेंगे वैसे तो हमारे और आपके समक्ष ज्योतिष के अनेक रूप प्रचलित हैं हम किसे ग्रहण करें ये भी वर्तमान समय में एक कठिन समस्या है ।
पराशरी सिद्धांत को समझने के लिए होरा पराशर शास्त्र का अध्ययन करेंगे तथा मतान्तर तथा स्पष्टता से समझने के लिए अन्य पुस्तक जैसे - जातक परिजात, बृहत जातक, जातक भरणम, भृगु संहिता, नारद संहिता, मानसागरी, सारावली, कालामृत आदि पुस्तकों को भी समावेशित करेंगे ।
वेद और वेदांग ज्योतिष को संक्षिप्त में समझने के बाद वैदिक शिक्षा में पुराणों को स्थान प्राप्त है । महर्षि पराशर के पुत्र महर्षि वेदव्यास ने अठारह पुराणों की रचना की सभी पुराणों में ज्योतिष ज्ञान की बात लिखी हुई है । विद्वानों का मत है कि वेदों में राशियों का वर्णन नहीं मिलता राशियों के विषय में जानकारी पुराणों से प्राप्त होती है ।
पुराणों की बात को यहीं समाप्त करते हुए सिर्फ इतना कहना चाहेंगे कि -
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचन द्वयम् ।
परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम ।
अठारह पुराणों में वेदव्यास जी ने सिर्फ दो ही बातों को प्रबलता से कहने का प्रयास किया है कि परोपकार से पुण्य की बृद्धि होती है और दुसरे को पीड़ा पहुंचाने से पाप की बृद्धि ।
आगे बढ़ते हुए यह कहना चाहेंगे कि वेद, पुराण, उपनिषद आदि हमारे धर्म, संस्कृति, शिक्षा आदि का साहित्य नहीं अपितु कोटि यागों तक चराचर जगत की रक्षा एवं विकास के लिए मार्गदर्शक है । जिसमें ज्योतिष का भी विशेष योगदान है ।
ज्योतिष शास्त्र नक्षत्र व राशि आदि की स्थिति के अनुकुल या प्रतिकुल गहों की गति की गणना का विज्ञान है । जिनके अठारह प्रवर्तक हमारे मनीषियों ने कहा है -
सूर्यः पितामहो व्यासो वसिष्ठोऽत्रि पराशरः ।
कश्यपो नारदो गर्गो मरीचिर्मनुरङ्गिराः।।
लोमशः पौलिशश्चैव च्यवनो यवनो भृगुः ।
शौनकोऽष्टादशश्चैते ज्योतिःशास्त्र प्रवर्तकः ।।
सूर्य, ब्रह्मा, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पौलिश, च्यवन, यवन, भृगु तथा शौनकादि ऋषि ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तक कहे गये हैं ।
इन महर्षियों के बाद हम आप सभी इसके संकलन कर्ता या किसी विशेष व्याख्या के साथ अपने आप को लेखक, व्याख्याकार या प्रचारक कह सकते हैं ।
मूलरूप से हमलोग पराशर एवं उनके परम शिष्य मंत्रेश्वर की वार्तावली को ही समझने का प्रयास करेंगे वैसे तो हमारे और आपके समक्ष ज्योतिष के अनेक रूप प्रचलित हैं हम किसे ग्रहण करें ये भी वर्तमान समय में एक कठिन समस्या है ।
पराशरी सिद्धांत को समझने के लिए होरा पराशर शास्त्र का अध्ययन करेंगे तथा मतान्तर तथा स्पष्टता से समझने के लिए अन्य पुस्तक जैसे - जातक परिजात, बृहत जातक, जातक भरणम, भृगु संहिता, नारद संहिता, मानसागरी, सारावली, कालामृत आदि पुस्तकों को भी समावेशित करेंगे ।