*ज्योतिष अनुसार दुर्भाग्य एवं हानि संबंधी विचार* : प्रारब्ध और कर्मो के आधार पर हर कोई अपना अलग भाग्य लेकर आता है, किसी का भाग्य कितना मज़बूत है वह जन्म कुण्डली में ग्रहों की स्थिति को देख कर पता लगता है ।
ज्योतिष अनुसार जन्म कुण्डली के शुभ और मज़बूत ग्रह अपनी दशा आने पर भाग्य वृद्धि करते हैं जबकि अशुभ ग्रह , शत्रु राशि में विराजमान ग्रह अपनी दशा आने पर भाग्य की हानि करते हैं । वैसे तो कुण्डली विश्लेषण कर फलादेश करना जटिल कार्य है लेकिन यह अनुभव में देखने में आया है कि जन्म कुण्डली में कोई भी ग्रह सिर्फ अपनी दशा आने पर ही प्रभाव देता है, माने प्रतिष्ठा का कारक ग्रह सूर्य नीच राशि का हो तो इसका मतलब यह नहीं कि उम्र भर वह व्यक्ति प्रतिष्ठा से विहीन रहेगा, बल्कि यह प्रभाव सिर्फ सूर्य की दशा अंतरदशा में ही होगा । इसी प्रकार अन्य ग्रहो से विचार करना चाहिए । लेकिन इनके इलावा कुछ अन्य कारण भी होते हैं जब किसी के प्रयास सफल नहीं होते, कोई भी कार्य हो उस में बाधा ही आती है और उसको ऐसा लगने लगता है कि उस के आस पास वाले या रिश्तेदार उस से बहुत आगे निकल गए हैं और वह अकेला ही संघर्ष कर रहा है , ऐसी परिस्थितियों के कारण पर चर्चा का प्रयास करते हैं :
#अष्टम_भाव_है_महत्वपूर्ण : कुण्डली का नवम भाव यदि भाग्य है तो अष्टम ( नवम से 12 ) भाव दुर्भाग्य है, जब आप कुछ करने में असमर्थ हो जाते हैं या फिर भरम अधीन होकर फैसले गलत कर जाते हैं या फिर खुद को विचारों में फंसा हुआ अनुभव करते हैं यह सब अष्टम भाव का ही प्रभाव होता है । बुद्धि बड़ी या भैंस वाली कहावत भी यही काम आती है कि ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति को अपनी बुद्धि से कार्य करना चाहिए ज्ञान की शरण मे जाना चाहिए , जबकि वह अंहकार के आधीन होकर अपने शरीर और ताकत को ही सब कुछ समझ कर समय नष्ट करता रहता है , इसी लिए अष्टम भाव को गूढ़ ज्ञान कहा जाता है कि जब भी अष्टमेश की अंतरदशा हो या अष्टम भाव में विराजमान ग्रह की अंतरदशा हो तो ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति को चाहिए कि वह भौतिक सुख की चाह ना रख कर आध्यात्मिक उन्नति की तरफ ध्यान दे , ऐसा करने से भले ही कमाई आपकी 2 पैसा कम हो जाये लेकिन जो भी आप प्राप्त करेंगे उस से सुख ज़रूर मिलेगा । इसी लिए जब भी अष्टम भाव से संबंधित कोई अंतरदशा हो तो शिव जी, दुर्गा, विष्णु जी, हनुमान जी, गायत्री , जिस में आपका मन ही उनकी आराधना करनी चाहिए , या फिर सिर्फ इष्ट देव की पूजा अराधना नियमित करनी चाहिए ।
#बाहरवें_भाव_से_संबंधित_दशा : जन्म कुण्डली के 12वे भाव को मोक्ष भाव , व्यय भाव कहा जाता है, सरल शब्दों में इस भाव को Loss in General कहा जाता है, जब भी किसी ऐसे ग्रह की अंतरदशा होती है जो 12वे भाव से संबंधित होता है तो उस दशा समय के दौरान व्यक्ति कोई भी कार्य करे वह असफल ही रहता है, इस के इलावा अगर 6 और 12 दोनो भावो से संबंधित ग्रहो की दशा हो तो 12वा भाव हानि और 6ठा भाव रोग यानी किसी वस्तु की रिपेयरिंग पर खर्च होने लगते हैं , और यदि 8th और 12th भावो से संबंधित दशा हो तो किसी वस्तु के खोने , जल जाने या खो जाने का भय उस समय में होता है । इस लिहाज से जन्म कुण्डली के 12 भावो में से 6, 8, 12वे भावो को ही सबसे ज़्यादा कष्ट देने वाला माना जाता है ।
#जातिकारक_ग्रह_है_महत्वपूर्ण : ज्योतिषअनुसार नवग्रहों में शनि ग्रह को सामान्य तौर पर दुख दर्द का कारक ग्रह यानी जातिकरक ग्रह माना जाता है इस लिए शनि ग्रह की दशा अंतरदशा में भी कार्यो में रुकावट आती है, इस के इलावा जैमिनी ज्योतिष अनुसार भी जातिकरक ग्रह को जानकर देखना चाहिए कि वह ग्रह कोनसा है और उसकी दशा कब होगी , उस दशा समय में भी कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करने से बचना चाहिए , इस के साथ ही उन ग्रहो को जानकर ग्रहो की अनुकूलता के लिए उचित उपाये करने चाहिए , इस से तरक्की भले ही ना हो लेकिन आपको यह कभी नहीं लगेगा कि बाकी लोग आपसे आगे निकल गए हैं और आप उनसे पीछे हैं , ऐसी नकारात्मकता को ज़रूर आप दूर कर पाएंगे , और सुख का अनुभव कर पाएंगे ।