जन्म कुंडली में नवग्रहों की विशोंत्तरी दशाओं की अवधि व विशोंत्तरी महादशा क्रम
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नवग्रहों की विंशोत्तरी महादशाएं :-
विंशोत्तरी महादशा 120 वर्ष की होती है तथा इसमें सभी 9 ग्रहों की दशाओं का समावेश किया गया है। जन्म के वर्ष, माह ,समय व जन्म के स्थान को आधार बनाकर ही किसी भी जन्मपत्रिका को बनाया जाता है। जन्म के समय पर चंद्रमा के गोचर के नक्षत्र व नक्षत्र के चरण की गणना की जाती है। एक नक्षत्र कोे चार चरणों में विभाजित कर दिया जाता हैं। नक्षत्र के चार चरणों का विभाजन गोचर में नक्षत्र की रहने वाली कुल समयावधि के आधार पर होता हैं, कुल मिलाकर नक्षत्र के गोचर में शुरू होने से लेकर नक्षत्र की समाप्ति तक के समय की गणना कर 4 से विभाजित कर घंटे, मिनिट व सेकिन्ड तक की गणना कर नक्षत्र के बराबर 4 चरणों का विभाजन कर दिया जाता हैं। अब इसमें महत्वपूर्ण स्थान है नक्षत्र के स्वामी ग्रहों का।क्योंकि हर एक ग्रह के निर्धारित विंशोत्तरी दशा वर्ष होते है।जितने कुलदशा वर्ष ग्रह के होते हैं,वही जन्म के समय से शुद्ध रूप से शुरुआत होने वाली ग्रह दशा का आधार हैं,जन्म के समय चंद्रमा के नक्षत्र के चरण को जानकर यह पता चलता है। ग्रहों के विंशोत्तरी दशा में निर्धारित वर्ष निम्न हैं:-
क्रमांक ग्रह विंशोत्तरी दशा अवधि
1 सूर्य - 06 साल
2 चंद्रमा - 10 साल
3 मंगल - 7 साल
4 राहू - 18 साल
5 बृहस्पति - 16 साल
6 शनि - 19 साल 7 बुध - 17 साल
8 केतु - 07 साल 9 शुक्र - 20 साल नक्षत्रों के नाम नक्षत्रों के स्वामी ग्रह
अश्विनी - केतु
मघा - केतु
मूल - केतु
भरणी - शुक्र
पूर्वाफाल्गुनी - शुक्र पूर्वाषाढ़ा - शुक्र
कृतिका - सूर्य
उत्तराफाल्गुनी - सूर्य
उत्तराषाढ़ा - सूर्य
रोहिणी - चंद्र
हस्त - चंद्रमा
श्रवण - चंद्रमा
मृगशिरा - मंगल
चित्रा - मंगल
धनिष्ठा - मंगल
आर्द्रा - राहू
स्वाति - राहू
शतभिषा - राहू
पुनर्वसु - बृहस्पति
विशाखा - बृहस्पति
पूर्वाभाद्रपद - बृहस्पति
पुष्य - शनि
अनुराधा - शनि
उत्तराभाद्रपद - शनि
अश्लेषा - बुध
ज्येष्ठा - बुध
रेवती - बुध
चंद्रमा जन्म के समय पर जिस नक्षत्र में होगा, उस नक्षत्र के स्वामी ग्रह के विंशोत्तरी दशा के साल के आधार पर
तथा नक्षत्र के जन्म समय पर चरण का ज्ञात करके और सूक्ष्मता से नक्षत्र स्वामी के ग्रह के भुक्त और भोग्य दशा वर्षों का ज्ञात किया जाता है। 27 नक्षत्रों के आरंभिक राशि,अंश,कला,विकला तक की सारिणियां ज्योतिष की गणतीय व्याख्या प्रस्तुत करनेवाली पुस्तकों तथा गणित व फलित ज्योतिष की जानकारी वाली पुस्तकों में उपलब्ध है। एक ग्रह की दशा समाप्ति का क्रम इस तरह ही होता है जो कि हम आपको बता रहे हैं और यह निम्न लिखित क्रम से ही होगी:- केतु, शुक्र, सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहू, बृहस्पति, शनि, बुध।
किसी भी ग्रह की दशा का फलादेश जन्म कुंडली में उपरोक्त ग्रह की भाव स्थिति,अन्य ग्रहों मे से उसकी युति,उस दशा ग्रह के ऊपर जन्मकुंडली में पडने वाली अन्य ग्रहो की दृष्टि, अन्य किसी ग्रह से उसके परस्पर भाव परिवर्तन के साथ साथ उसके स्वयं के राशि, अंश,कला,विकला की जन्म कुंडली में स्थिति , किस नक्षत्र में वह ग्रह, नक्षत्र स्वामी ग्रह कहाँ पर है,किन ग्रहों के प्रभाव में पहले ही ऊपर यहीं बताये गये अन्य किसी ग्रह के किस तरह के प्रभाव में है इस आधार पर, दशा ग्रह की नवांश कुंडली में भाव के साथ साथ राशि- गत स्थिति,जन्मकुंडली में दशा ग्रह की स्वयं की राशिगत स्थिति में वह दशा ग्रह स्वराशि, मित्र ग्रह की राशि, सम ग्रह की राशि, शत्रु ग्रह की राशि,अधिशत्रु के ग्रह की राशि,साथ ही साथ दशा ग्रह के द्रेष्काण के चरण को ज्ञात किया जाता है,दशा ग्रह के जन्म कुंडली में उसके अंश,कला व विकला से। 0-10 अंश तक पहला द्रेष्काण,10-20 अंश तक दूसरा द्रेष्काण, और 20-30 तक तीसरा द्रेष्काण होता है। इस तरह से द्रेष्काण का ज्ञान कर दशा ग्रह के शुभ या अशुभ फल ग्रह की विंशोत्तरी दशा के उसके कुल दशा वर्षों में से कब प्राप्ति होगी इसको भी ज्ञात किया जाता है, दशा ग्रह की जन्मकुंडली में उच्च या नीच राशि का भी ज्ञान भी किया जाता हैं के समय का ज्ञान कला,विकला से। उपरोक्त सभी के आधार पर ही विंशोत्तरी महादशा व अन्तरदशा के फलों को लेकर फलादेश किया जा सकता है।
मनीष दुबे, ज्योतिष पारंगत, ज्योतिष गौरव सम्मान प्राप्त, श्रेष्ठ कुंडली निर्माण व फलित ज्योतिष में मानद उपाधि प्राप्त.