मोक्ष त्रिकोण योग*
जन्म कुण्डली में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नाम के 4 त्रिकोण बनते हैं।_
सभी त्रिकोणों का अपना अपना महत्व है।
*मोक्ष त्रिकोण*
इसमें 4-8-12 भाव से बनने वाले त्रिकोण को मोक्ष त्रिकोण कहा जाता है।
मोक्ष का मतलब होता है बंधनों से छुटकारा, इस त्रिकोण के माध्यम से हम सांसारिक मोह माया से ऊपर उठ कर वास्तविक सत्य को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं । चौथा भाव बताता है कि यह सत्य बाहरी संसार में नहीं बल्कि हमारे अन्तः करण अर्थात मन में स्थित होता है। आठवाँ भाव मृत्यु (आयु का अंत) के रूप में हमें शरीर से मुक्त करने कि शक्ति रखता है। बारहवां भाव का शास्त्रोक्त रूप है कि कैसे हम मन (चौथा) और शरीर (आठवां) से मुक्त होकर आत्म ज्ञान की ओर अग्रसर होते हैं लेकिन जब हम किसी भी इच्छा के लिए कैसे व्यय करके शांति पाएंगे ये भाव ही बताता है ।
जिसकी कुण्डली में मोक्ष त्रिकोण योग बनता है,
वह आध्यात्मिक होकर मोक्ष प्राप्त करता है।
ऐसे व्यक्तियों के आध्यात्मिक अनुभव बहुत अच्छे स्तर के होते हैं।
परालौकिक शक्तियों से इनका सम्पर्क बहुत जल्दी हो जाता है
और ये नीच तथा उच्च दोनों वर्ग की शक्तियों का अनुभव करते हैं।
भूत प्रेत देवी देवता सभी का अनुभव इनके पास होता है।
*परिभाषा -*
कुण्डली में यदि चतुर्थ भाव में बृहस्पति, अष्टम भाव में शनि और द्वादश भाव में केतु हो तो मोक्ष त्रिकोण योग बनता है।
*फल-* ऐसे जातक के जीवन में परालौकिक शक्तियों के अनुभव होते हैं जिनमें भूत प्रेत से लेकर देवी देवता सभी शामिल होते हैं, ऐसा व्यक्ति आध्यात्मिक होकर मोक्ष प्राप्त करता है।
*नोट -*
वैसे मोक्ष के लिए कुण्डली में योग होना अनिवार्य नहीं है क्योंकि मोक्ष तब होता है जब मो_ह का क्ष_य हो जाये।
मोह का (मो) तथा क्षय का (क्ष)
[ मो क्ष ]
समझा तो यही जाता है कि मरने के बाद मोक्ष होगा।
लेकिन ऐसे ऐसे ज्ञानी वैरागी इस दुनियाँ में मौजूद हो सकते हैं जो निष्काम भाव से कर्म करते हुए जी रहे होंगे ।
वो मोक्ष के अधिकारी हैं, उन्होंने जीते जी मोक्ष पा लिया है।
मोक्ष को समझने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का मोक्षसन्यासयोग नाम के 18वें अध्याय* में जानकारी हैं
🌺 रविन्द्र पारीक (वास्तुकार एवं ज्योतिर्विद) 🌺