मेरा ही नाम शनि है । लोगों ने बिना वजह मुझे हमेशा नुक्सान पहुंचाने वाला ग्रह बताया है , जो गलत है । मैं आपको यह स्पष्ट कर देना अपना दायित्व समझता हूं कि मैं किसी भी व्यक्ति को अकारण परेशान नहीं करता । हां यह बात अलग है कि मैंने जब भगवान शिव की उपासना की थी , तब उन्होंने मुझे दंडनायक ग्रह घोषित करके नव ग्रहों में स्थान दिया था । यही कारण है कि मैं मनुष्य को उनके कर्मानुसार दंड का निर्णय करता हूं और दंड देने में निष्पक्ष निर्णय लेता हूं । यहां यह भी उल्लेख करना प्रासंगिक समझता हूं कि यदि व्यक्ति ने पूर्व जन्म में अच्छे कर्म किए हैं , तो मैं उसकी जन्मपत्री में अपनी उच्च राशि या स्व - राशि में स्थित होकर उसे भरपूर लाभ भी पहुंचाता हूं । अब आप मेरी प्रवृत्ति के बारे में भली - भांति परिचित हो गए होंगे । आइए , आज मैं आपको अपने संपूर्ण परिचय से भी अवगत कराता हूं । ज्येष्ठ कृष्ण अमावस को मेरा जन्म हुआ । मेरे पिता का नाम सूर्य तथा माता का नाम छाया है । हम 3 भाई - बहन हैं । यमराज मेरे अनुज [ छोटे भाई ] हैं तथा यमुना मेरी बहन है । लोग मुझे अनेक नामों से जानते हैं- जैसे मंद , शनिश्चर , सूर्यसुनु , सूर्यज , अर्कपुत्र , नील , भास्करी , असित , छायात्मज आदि । मेरा अधिपत्य मकर एवं कुंभ राशि तथा मुख पर है और अनुराधा एवं उत्तरा भाद्रपद मेरे नक्षत्र हैं । मैं अस्त होने के 38 दिन अनंतर उदय होता हूं । तत्पश्चात 135 दिनों तक सामान्य गति तथा 105 दिनों तक वक्री गति से चलता हूं । मेरी उच्च राशि तुला तथा नीच मेष है । जन्म कुंडली के 12 भावों में मैं आठवें , दसवें तथा बारहवें भाव का कारक हूं । जब मैं तुला , कुंभ या मकर राशि पर विचरण करता हूं , यदि उस अवधि में किसी का जन्म हो तो मैं उसे राजा बनाने में देर नहीं करता । यदि जातक के जन्म के समय मैं मिथुन , कर्क , कन्या , धनु अथवा मीन राशि पर विचरण करता हूं तो परिणाम मध्यम मेष , सिंह तथा वृश्चिक में स्थित होने पर प्रतिकूल परिणाम देता हूं । हस्त रेखाशास्त्र में मध्यमा [ बड़ी ] अंगुली के नीचे मेरा स्थान है तथा अंक ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक माह की 8 , 17 , 26 तारीख का मैं स्वामी हूं । मैं 30 वर्षों में समस्त राशियों का भ्रमण कर लेता हूं । एक बार साढ़ेसाती आने के पश्चात 30 वर्षों के बाद ही व्यक्ति मुझसे प्रभावित होता है । अपवाद को छोड़ दिया जाए तो व्यक्ति अपने जीवन में 3 बार मेरी साढ़ेसाती से साक्षात्कार करता है । आपने यह कहावत सुनी ही होगी कि ' जाको प्रभु दारूण दुख देही , ताकि मति पहले हर लेई ' , मेरा भी यह सिद्धांत है । जिस व्यक्ति को मुझे दंड देना होता है मैं पहले उसकी बुद्धि पर अपना आक्रमण करता हूं अथवा उसे दंड देने के लिए किसी अन्य की बुद्धि का नाश करके जातक को दंड देने का कारण बना देता हूं । मैं आपको कुछ पौराणिक दृष्टांत से भी अवगत करा दूं - जब पांडवों की जन्मपत्री में मेरी दशा आई तो मैंने ही द्रौपदी की बुद्धि को भ्रमित करके कड़वे वचन कहलाए । परिणामस्वरूप उन्हें वनवास मिला । 6 शास्त्र और 18 पुराणों के प्रकांड पंडित रावण ने मुझे बंदी बनाकर उल्टा लटका दिया था । लंका को जलाते समय हनुमानजी ने मुझे उलटा लटका देखा और उन्होंने मुझे खोलकर छुटकारा दिलाया । मैंने हनुमानजी से मेरे योग्य सेवा बताने का अनुरोध किया , तो हनुमानजी ने यही कहा कि तुम मेरे भक्तों को कष्ट मत देना । मैंने तुरंत अपनी सहमति दे दी ।
यदि आप चाहते हैं कि मैं हमेशा आपसे प्रसन्न रहूं , तो आप निम्न उपाय करें । मैं आपकी परेशानियों को कम करूंगा हनुमानजी या सूर्य की उपासना करें , शनि चालीसा पाठ करें । पीपल के वृक्ष की पूजा करें , ज्योतिषी से सलाह लेकर नीलम या जामुनिया , काले घोड़े की नाल का छल्ला धारण करें तथा शनि अष्टक का पाठ करें ।
to do u u have you you are you have no one