रोजगार एवं व्यवसाय प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन निर्वाह करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। 2, 6, 10 अर्थ भाव होने से व्यक्ति की धन संबंधी आवश्यकता को पूरा करते हैं। दूसरा भाव हमारे कुटुंब व संचित धन को दर्शाता है। छठा भाव हमारी नौकरी व ऋण को दर्शाता है। दसवां भाव हमारे व्यवसाय को दर्शाता है। किसी व्यक्ति का दूसरा भाव बलवान हो तो उसकी धन संबंधी आवश्यकताएं कुटुंब से मिली हुई संपत्ति व धन से पूरी होती रहती है । किसी व्यक्ति का छठा भाव बलवान हो तो व्यक्ति नौकरी द्वारा सारा जीवन गुजार देता है। कुछ लोग जीवन भर उधार ही मांगते रह जाते हैं और उनके कार्य चलते रहते हैं। दशम भाव बलवान होने से व्यक्ति अपने स्वयं के कर्म से धन कमाता है। व्यक्ति किस तरह के व्यवसाय या नौकरी में अधिक सफलता प्राप्त करेगा इसका निर्धारण करने के लिए 1 , 2 , 7 ,10 , 11 , भाव में विराजमान ग्रह या इन भावो पर दृष्टि डालने वाले ग्रहों से किया जाता है । जिसकी कुंडली में प्रथम , द्वितीय , सप्तम , नवम , दशम एवं एकादश भाव के स्वामी एवं बुध प्रबल रहतें हैं , ऐसे लोग समान्यतः स्वयं के व्यवसाय में सफल होते है । अन्यथा नौकरी करने से आमदनी होती है । सूर्य – सूर्य उन्न्त दर्जे के काम धंधे को दर्शाता है । सूर्य स्वयं राजा है व राजपुरूष है इसलिए जब सूर्य से संबंधित व्यवसाय के बारे में विचार किया जाता है तो उन कार्यों का संबंध राज्य से अवश्य आता है । अगर सूर्य बलवान है तो सरकार से अच्छे लाभ की प्राप्ति में सहायक बनता है । यदि मध्यम बली हो तो व्यक्ति को राज्याधिकारी बनता है , इसी के साथ यदि सूर्य लग्न , लग्नेश , चंद्र राशीश के साथ मजबूत संबंध बनाता है तो व्यक्ति मंत्री पद , मंत्रालय का काम या अन्य प्रकार के उच्च स्तरीय कार्य देता है । सूर्य आत्मा के कारक ग्रह है. व्यक्ति की आजीविका में सूर्य सरकारी पद का प्रतिनिधित्व करता है । व्यक्ति को सिद्धान्तवादी बनाता है । इसके अतिरिक्त सूर्य कार्यक्षेत्र में कठोर अनुशासन अधिकारी , उच्च पद पर आसीन अधिकारी , प्रशासक , समय के साथ उन्नति करने वाला , निर्माता , कार्यो का निरिक्षण करने वाला बनाता है । कुण्डली में सूर्य के बल के मुताबिक जीवन में शक्ति होती है जिस कुंडली में सूर्य कमजोर रहता है वह जातक शारीरिक रूप से कमजोर होता है इसलिए वह पूर्ण फल नहीं दे पाता । कुंडली का अध्ययन करते समय कुंडली में सूर्य की स्थिति , बल तथा कुंडली के दूसरे शुभ तथा अशुभ ग्रहों के सूर्य पर प्रभाव को ध्यानपूर्वक देखना अति आवश्यक होता है ।सूर्य कि कुंडली में मजबूत स्थिति व्यक्ति को कुछ अधिक सशक्त बना देती है । सूर्य ग्रहों में सबसे प्रमुख हैं । आध्यात्मिक विद्या , अग्नि एवं तेज है , किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करता , वह आदेश देता है , अपने महत्व एवं मर्यादा को समझता हैं , जिसका सूर्य बलवान है , वह उन्नति , वृद्धि , निर्माण करने वाला होता है । व्यक्ति भावनाओं को नियंत्रण में रखना जानता है । कोई भी निर्णय सोच विचार कर ही लेता है , भावनाओं में बहकर नहीं लेता । अपने निर्णय पर अड़िग रहते हुए कभी कभी कठोर प्रतीत होता है । व्यवसाय से संबंध रखने पर इन सभी का होना महत्वपूर्ण व आवश्यक हो जाता है । सूर्य का बली होना व्यक्ति में जिम्मेदारियों को उठाने वाले बनाता है । यह ज्वलंत ग्रह है सूर्य कर्ता है , राजा है और मुखिया है ।सूर्य नेतृत्व और प्रभुत्व का भाव दर्शाता है इसलिए यह उन लोगों से जुडा़ हो सकता है जो उच्चाधिकारी , नेता , प्रतिष्ठित व्यक्ति हों । सरकारी नौकरी , सरकारी सेवा , उच्च स्तरीय प्रशासनिक सेवा , मजिस्ट्रेट , राजनीति , सोने का काम करने वाले , जौहरी , फाईनान्सर , प्रबन्धक , , राजदूत , चिकित्सक (फिजिशियन), दवाइयों से संबंधी मैनेजमेंट , , उपदेशक , मंत्र कार्य , फल विक्रेता , वस्त्र , घास फूस ( नारियल रेशा , बांस तृण आदि ) से निर्मित सामाग्री , तांबा , स्वर्ण, माणिक , सींग या हड्डी के बने समान , खेती बाड़ी , धन विनियोग , बीमा एजेंट , सरकारी मुखबीर , गेहूं से संबंधी , विदेश सेवा , उड्डयन , ओषधि , चिकित्सा , सभी प्रकार के अनाज , लाल रंग के पदार्थ , शहद , लकड़ी व प्लाई वुड का कार्य , चतुर्थ से संबंध बनाकर इमारत बनाने मे काम आने वाला लकड़ी , सर्राफा , वानिकी , ऊन व ऊनी वस्त्र , पदार्थ विज्ञान , अन्तरिक्ष विज्ञान , फोटोग्राफी , नाटक , फिल्मों का निर्देशन , इत्यादि | सूर्य के साथ पंचमेश या नवमेश का संबंध बनता हो तो जातक अपने पिता या पारीवारिक काम को आगे बढ़ सकता है । चंद्र – सूर्य राजा है तो चंद्रमा रानी है अतः राज्य से इसका घनिष्ठ संबंध है । जब चंद्रमा राज्य द्योतक सूर्य , गुरु आदि ग्रहों से योग बनाकर रोजगार का योग बनाता है तब राज्य संबन्धित कार्य जैसे शासन कार्य , राज्य अधिकारी , राज्य कर्मचारी आदि रूप में नियुक्ति देता है । व्यवसाय क्षेत्र में चंद्रमा एक जलीय ग्रह है अत: इसके कार्यों में जल से संबंधित वस्तुओं का व्यापार करने के अवसर देखे जा सकते हैं । जल से उपरत्न वस्तुएं , पेय पदार्थ , दूध , डेयरी प्रोडक्ट (दही, घी, मक्खन) खाद्य पदार्थ , आईसक्रीम , कोल्ड ड्रिंक्स , मिनरल वाटर , आइस क्रीम , श्वेत पदार्थ , चांदी , चावल , नमक ,चीनी , पुष्प सज्जा , मोती , मूंगा , शंख , क्रॉकरी ( चीनी मिट्टी ) , कोमल मिट्टी ( मुलतानी ) , प्लास्टर ऑफ पेरिस , सब्जी , वस्त्र व्यवसाय , रेडीमेड वस्त्र , जादूगर , फोटोग्राफिक्स व वीडियो मिक्सिंग , विदेशी कार्य , आयुर्वेदिक दवाएं , मनोविनोद के कार्य , आचार -चटनी -मुरब्बे , जल आपूर्ति विभाग , नहरी एवम सिंचाई विभाग , पुष्प सज्जा , मशरूम , , मत्स्य से सम्बंधित क्षेत्र , सब्जियां , लांड्री , आयात -निर्यात , शीशा , चश्मा , महिला कल्याण , नेवी ( नौ सेना ) , जल आपूर्ति विभाग , नहरी एवम सिंचाई विभाग , आबकारी विभाग , नाविक , यात्रा से संबंधित कार्य , अस्पताल , नर्सिंग , परिवहन , जनसंपर्क अधिकारी , कथा -कविता लेखन इत्यादि । चन्द्र + राहू – मादक पदार्थ , शराब । चन्द्र + शुक्र – सुगंधित तेल , इत्र । चंद्रमा को स्त्री ग्रह माना गया है अत: जब यह अपने ही जैसे दूसरे ग्रह के साथ संबंध बनाता है तो जातक स्त्री पक्ष के साथ मिलकर काम करने वाला बन सकता है । मंगल – ज्योतिष में मंगल को सेनापती के रुप में दर्शाया गया है । मंगल ग्रह अग्नि तत्व का ग्रह तथा भूमि का कारक माना गया है । इस ग्रह के संदर्भ में सेना संबंधी कार्यों और पुलिस विभाग से जुडे़ कामों को देखा जा सकता है । इस ग्रह के प्रभाव स्वरूप जातक में साहस और शौर्य के गुणों का निष्पादन होता है । इसके उन्नत प्रभाव के कारण ही जातक में निडरता की भावना देखी जा सकती है किंतु यदि यह ग्रह किसी कारण से पिडी़त हो तो व्यक्ति में साहस और शक्ति की कमी होना स्वभाविक होता है । मंगल व्यक्ति को यौद्धाओं का गुण देता है , निरंकुश , तानाशाही प्रकृति का बनाने वाला बनता है । पुलिस व सेना की नौकरी , अग्नि कार्य , बिजली का कार्य , विद्युत् विभाग , साहसिक कार्य , धातु कार्य , जमीन का क्रय –विक्रय , भूमि के कार्य , भूमि विज्ञान , रक्षा विभाग , खनिज पदार्थ , इलेक्ट्रिक एवम इलेक्ट्रोनिक इंजिनीयर , मकेनिक , वकालत , ब्लड बैंक , शल्य चिकित्सक , केमिस्ट , दवा विक्रेता , खून बेचना , सिविल इंजीनियरिंग , शस्त्र निर्माण , बॉडी बिल्डिंग , साहसिक खेल , कुश्ती , स्पोर्टस , खिलाड़ी , फायर ब्रिगेड , आतिशबाजी , रसायन शास्त्र , सर्कस , नौकरी दिलवाने के कार्य , शक्तिवर्धक कार्य , अग्नि बीमा , चूल्हा , ईंधन , पारा , पत्थर , मिट्टी का समान , तांबे से संबंधित कार्य , धातुओं से सम्बंधित कार्य क्षेत्र , लाल रंग के पदार्थ , बेकरी , कैटरिंग , हलवाई , रसोइया , इंटों का भट्ठा , बर्तनों का कार्य , होटल एवम रेस्तरां ,फास्ट -फ़ूड , जूआ , मिटटी के बर्तन व खिलौने , नाई , औज़ार , भट्ठी , इत्यादि । यदि कार्य क्षेत्र का स्वामी होते हुए मंगल केतु, सूर्य जैसे अग्नि युक्त ग्रहों से संबंध बनाता है तो व्यक्ति अग्नि संबंधि कामों से धनोपार्जन करता है. भठ्ठी के काम, बिजली के काम, भोजन बनाने संबंधी काम या कल-कारखानों में काम कर सकता है । जब मंगल चतुर्थेश के साथ मिलकर संबंध बना रहा होता है तो व्यक्ति भूमि किराया आदि से आय या धन पाता है । मंगल के कारण व्यक्ति प्रोपर्टी से संबंधित कामों को भी करने वाला होता है और इस क्षेत्र में उसे अच्छा लाभ भी मिलता है , दशम में स्थित होकर चौथे भाव पर दृष्टि दे रहा होता है ।मंगल की लग्नेश व चतुर्थेश पर दृष्टि हो और मंगल कर्म क्षेत्र का स्वामी बनकर स्थित हो तो जातक क्रूर क्रम करने की ओर प्रवृत्त रह सकता है ।जातक में प्रबंधन के गुण भी इस ग्रह से देखे जा सकते हैं. जब यह कर्म क्षेत्र को दर्शाता है तो व्यक्ति में प्रबंधक की योग्यता देखी जा सकती है , व्यक्ति दूसरों से काम लेने की कला जानता है और उसके गुण द्वारा वह अपने कर्मचारियों को बांधे रखने में भी सफल होता है ।मंगल तार्किक भाषा से युक्त होता है व्यर्थके भटकाव में नहीं रहता है , यह समझ के दायरे को विकसित करने में सहायक होता है , मंगल का पंचम भाव पर प्रभाव जातक को तीव्र बुद्धि वाला और तार्किक बनाने में सहायक होता है । जब कुण्डली में मंगल पंचम भाव का स्वामी होकर मजबूत स्थिति में होता है और व्यवसाय भाव से प्रभावित होता है तो व्यक्ति को शासक व मंत्री पद दिलाने में सहायक बनता है ।मंगल सेनापति है और योद्धा है, ऎसे में जब यह सूर्य ग्रह के साथ संबंध बन रहा होता है तो जातक राज्य से संबंधित कामों जैसे की रक्षा विभाग इत्यादि से जुडा़ हो सकता है । चतुर्थ भाव का स्वामी होकर मंगल चंद्र या शुक्र से प्रभावित होते हुए व्यवसाय का द्योतक बनता हो तो व्यक्ति को घर से आमदनी होती है, जायदाद का सुख मिलता है । बुध – बुध राजकुमार है अत: काम में भी यही भाव भी दिखाई देता है । किसी के समक्ष भी यह जातक को कम नहीं होने देता है । अपने काम में व्यक्ति को स्वतंत्रता प्राप्त होती है और जातक किसी के अधीन बंधे नहीं रहना चाहता है । यदि इस ओर अधिक ध्यान दिया जाए तो व्यक्ति को स्वतंत्र विचारधारा वाला बनाता है । जातक अपने ज्ञान कर्म में अधिक सृजनशील होता है और पहल करने में भी आगे रहता है । बुध के कारक तत्वों में जातक को कई अनेक प्रकार के व्यवसायों की प्राप्ति दिखाई देती है । बुध एक पूर्ण वैश्य रूप का ग्रह है । व्यापार से जुडे़ होने वाला एक ग्रह है जो जातक को उसके कारक तत्वों से पुष्ट करने में सहायक बनता है । इसी के साथ व्यक्ति को अपनी बौधिकता का बोध भी हो पाता है और उसे सभी दृष्टियों से कार्यक्षेत्र में व्यापार करने वाला बनाता है । यदि कुण्डली में बुध ग्रह दूसरे, पांचवें और नवम भाव इत्यादि बुद्धि स्थानों का स्वामी बनता हुआ व्यवसाय का प्रतिनिधित्व करे अर्थात लग्न-लग्नेश को चंद्रमा और सूर्य को प्रभावित करता हो तो व्यक्ति बुद्धिजीवी होता है । जातक शिक्षा द्वारा धनोपार्जन करता है ।बुध को वाणी का कारक कहा गया है अत: दूसरे स्थान या पंचम स्थान में बुध की स्थिति उत्तम हो तो व्यक्ति अपनी वाणी द्वारा कार्य-क्षेत्र अथवा सामाजिक क्षेत्र दोनों में ही दूसरों द्वारा प्रशंसित होता है और लोगों को अपनी वाक कुशला से प्रभावित करता है । व्यक्ति वकील , कलाकार , सलाहकार , प्रवक्ता इत्यादि कामों द्वारा अनुकूल फल प्राप्त करने में सफल रहता है ।बुध व्यक्ति के काम में व्यापार का प्रतिनिधित्व करता है । अगर कुण्डली में बुध ग्रह शनि व शुक्र जैसे व्यापार से प्रभावित ग्रहों के साथ संबंध बनाता है तो जातक व्यापार के क्षेत्र में अच्छे काम करने की चाह रख सकता है । बुध की प्रबलता जातक को इन ग्रहों के साथ मिलकर प्रभावित करने में सक्षम होती है । व्यापार कार्य , वेदों का अध्यापन , लेखन कार्य ( लेखक ) , ज्योतिष कार्य , प्रकाशन का कार्य , चार्टड एकाउटेंट , मुनीम , शिक्षक , गणितज्ञ , कन्सलटैंसी , वकील , ब्याज , बट्टा , पूंजी निवेश , शेयर मार्केट , कम्प्यूटर जॉब , लेखन , वाणीप्रधान कार्य , एंकरिंग , शिल्पकला , काव्य रचना , पुरोहित का कार्य , कथा वाचक , गायन विद्या , वैद्य , गणित व कोमर्स के अध्यापक , वनस्पति , बीजों व पौधों का कार्य , समाचार पत्र , दलाली के कार्य , वाणिज्य संबंधी , टेलीफोन विभाग , डाक , कोरिय , यातायात , पत्रकारिता , मीडिया , बीमा कंपनी, संचार क्षेत्र , ,दलाली , आढ़त , हरे पदार्थ , सब्जियां , लेखा कार , कम्प्यूटर ,फोटोस्टेट , मुद्रण , डाक -तार , समाचार पत्र , दूत कर्म , टाइपिस्ट , कोरियर सेवा , बीमा , सैल टैक्स , आयकर विभाग , सेल्स मैन , हास्य व्यंग के चित्रकार या कलाकार इत्यादि | बुध और शुक्र दोनों बलवान हों तो जातक को वस्त्र उद्योग में अच्छी सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाती है । बुध लेखन का कार्य देता है यदि यह सूर्य जो राज्य से संबंधित होता है उससे प्रभावित हो तो जातक किसी लेखन संस्था से जुड़ सकता है ।बुध यदि तीसरे स्थान का स्वामी होकर दशम से संबंध बनाता है अथवा लग्न लग्नेश अपना प्रभाव डालता है तो जातक लेखक बनकर धनोपार्जन कर सकता है ।जन्म कुण्डली में यदि बुध मंगल के साथ बली अवस्था में स्थित हो तथा कर्म स्थल का द्योतक बनता है तो व्यक्ति गणित के क्षेत्र में अथवा यान्त्रिक विभाग में कार्यरत होता है ।बुध विनोद प्रिय है इसलिए जब कुण्डली में यह चतुर्थेश , पंचमेश या शुक्र से संबंध बनाता हुआ दशम भाव को प्रभावित करता है तो जातक मनोविनोद के कार्यों व कलात्मक अभिव्यक्ति से आजीविका कमा सकता है ।बुध एक सलाहकार व मध्यस्थ व एजेंट की भांति भी कार्य करने में तत्पर रहता है । यदि बुध दशम भाव को प्रभावित करते हुए चतुर्थेश और मंगल से प्रभावित होता है तो जातक भूमि भवन का एजेन्ट हो सकता है ।बुध बुद्धि का कारक ग्रह है अत: व्यक्ति ऎसे क्षेत्रों में अधिक देखा जा सकता है जहां पर बुद्धिजीवीयों का स्थान होता है वहां यह अपना स्थान बनाता है । इसी के साथ साथ यदि जातक को अपनी शैक्षिक संस्था का निर्माण करने की चाह हो तो गुरू और बुध का संबंध होने पर यह सहायक बनता है । व्यवसाय के दृष्टिकोण में बुध एक बहुत अच्छा व्यवसायी होता है । इसके संदर्भ में व्यक्ति को वाक कुशलता और बुद्धि चातुर्य मिलता है । कुण्डली में बुध की स्थिति उत्तम होने पर जातक को इसके दूरगामी परिणाम प्राप्त होते हैं ।बुध के प्रभाव से जातक न्याय प्रिय होता है और किसी के साथ बुरा न करने की कोशिश करता है , यदि कुण्डली में बुध की स्थिति उच्चता को पाती है तो व्यक्ति मौलिक गुणों को बढा़ने में सहयोग करता है. , जातक वाणी में ओज रहता है वह भावों को अभिव्यक्त करने में भी सहयोगी रहती है । वाचाल होता है हर बात का जवाब है इनके पास , भाषण देने में काफी प्रभावशाली रह सकता है ।व्यवसाय में बुध का प्रभाव ।बुध की अभिव्यक्ति मिलने से व्यक्ति में काम काज करने की समझ विकसित होती है । जातक में दूसरों के साथ समझ का दायरा भी विकसित होता है । वह अपनी कार्यक्षमता को अच्छे रूप से दूसरों के समक्ष रखने में कामयाब रहता है । बुध के गुणों में जो भी प्रभाव फलित होते हैं वह उसके अनुकूल स्थिति पर होने से मिल सकते हैं । इसी के अनुरूप यदि बुध के साथ अन्य ग्रहों का संबंध बनता जाता है तो उसी के अनुरूप फलों की प्राप्ति भी होती जाती है ।बोलने में मधुर होता है और प्रेम भी पाता है. । जातक सामान्यतया व्यवहार कुशल होता है व कठिन परिस्थितियों व गंभीर मसलों को कूटनीति से सुलझा लेता है । जातक शांत स्वभाव का होते हैं कार्यों को पूरा करने में चतुराई से काम लेता है । जातक सांसारिक जीवन जीने में सफल होते हैं तथा अपनी धुन के बहुत पक्के होते हैं तथा लोगों की कही बातों पर विचार न करके अपने काम में रमे रहते हैं । बृहस्पति – बृहस्पति को समस्त ग्रहों में शुभ ग्रह माना गया है । इसी के साथ इन्हें ज्ञान , विवेक और धन का कारक माना जाता है । इस बात से यह सपष्ट होता है कि अगर कुण्डली में गुरू उच्च एवं बली हो तो स्वभाविक ही वह शुभ फलों को देता है । बृहस्पति सफलता और धन सम्पति देता है । जातक प्रसिद्धि , खुशहाली को पाता है , गुरू जनों का साथ मिलता है , विद्वता व सदगुणों का विकास होता है । कुण्डली में गुरू की अनुकूल स्थिति होने से जातक के लिए शुभता का आगमन होता है । जीवन में यश-कीर्ति पाता है । जातक को राजा तुल्य जीवन जीने का अवसर मिलता है । अपनी दशा या अन्तर्दशा में अच्छे फल देता है । गुरू को मंत्रालय व राज्य से संबंधित माना गया है ऎसी स्थिति में यदि बृहस्पति नवमेश होकर बली अवस्था में हो लग्न या लग्नेश के साथ संबंध बना रहा हो तथा दशम भी इसमें अपनी भागीदारी दे रहा हो तो जातक को राज्य से धन की प्राप्ति होती है । व्यक्ति उच्च राज्यअधिकारी होकर धनोपार्जन करता है । बृहस्पति धन का कारक व आर्थिक उन्नती देने में सहायक बनता है । ब्राह्मण का कार्य , धर्मोपदेश का कार्य , धर्मार्थ संस्थान , धार्मिक व्यवसाय , कर्मकाण्ड , ज्योतिष , राजनीति , न्यायालय संबंधित कार्य , नयायाधीश , कानून , वकील , बैंकिंग कार्य , कोशाध्यक्ष , राजनीति , अर्थशास्त्र , पुराण , मांगलिक कार्य , अध्यापन कार्य , शिक्षक , शिक्षण संस्थाएं , पुस्तकालय , प्रकाशन , प्रबंधन , पुरोहित , शिक्षण संस्थाएं , किताबों से संबंधित कार्य , परामर्श कार्य , पीले पदार्थ , स्वर्ण , पुरोहित , संपादन , छपाई , कागज से संबंधित कार्य , व्याज कार्य , गृह निर्माण , उत्तम फर्नीचर, शयन उपकरण , गर्भ संबंधित कार्य, खाने पीने की वस्तुएं, स्वर्ण कार्य , वस्त्रोंसे संबंधित , लकड़ी से संबंधित कार्य , सभी प्रकार के फल , मिठाइयाँ , मोम , घी , किरयाना इत्यादि | जब कुण्डली में बृहस्पति द्वितीयेश व एकादश भावों का स्वामी होकर लग्न , लग्नेश पर प्रभाव डालता हुआ दशम भाव से संबंध बनाता हो तो व्यक्ति बैंक अधिकारी , चल सम्पत्ति का से जुडा़ काम करके पैसा कमा सकता है अथवा किराया , सूद ब्याज द्वारा जीविकोपार्जन कर सकता है । बृहस्पति को नान टेक्निकल ग्रह कहा गया है यदि दशमेश का संबंध इससे बनता है तो यह जातक को नान टेक्निकल क्षेत्र से जोड़ता है और पाप ग्रहों का प्रभाव आने पर मिले जुले फल देने वाला बनता है , परंतु कुण्डली में खराब स्थिति में हो तो शुभता में कमी के संकेत देता है , जातक को अपने मनोकुल फल नहीं मिल पाते हैं ।बृहस्पति ग्रह कानून से संबंध रखने वाला होता है. यदि जन्म कुण्डली में बृहस्पति बलवान होकर अष्टमेश या एकादशेश हो तथा बुध या शुक्र के साथ मिलकर कर्म क्षेत्र को प्रभावित कर रहा हो तो जातक वकील या एडवोकेट के पद को पा सकता है इसके साथ लग्न या लग्नेश का शामिल होना भी बहुत अनुकूल होता है ।बृहस्पति का मंगल से संबंध बन रहा हो तो व्यक्ति फैजदारी से संबंधित कामों में शामिल होता है । यदि कुण्डली में इनकी स्थिति मजबूत है तो यह स्थिति जातक को न्यायाधीश का पद भी दिला सकती है । वाक चातुर्य में जितना महत्व बुध का रहा है उतना ही बृहस्पति का सहयोग भी काम आता है , जब कुण्डली में गुरू दूसरे या पंचम का स्वामी होकर उच्च के बुध के साथ कर्म भाव का द्योतक होता है तो व्यक्ति वाणी के कौशल द्वारा आजीविका कमाने वाला बनता है । अध्यापक या वकील के क्षेत्र में काम कर सकता है ।जन्म कुण्डली में बृहस्पति दशम भाव का स्वामी होकर जब नवमेश , द्वादशेश या पंचमेश से संबंध बनाता है तो जातक धर्म के कार्यों द्वारा धनार्जन करता है । व्यक्ति मंदिर , देवाल्य , धर्मशाला या पुरोहित कर्म करने वाला हो सकता है ।जन्म कुण्डली में गुरू और शुक्र एक दूसरे के साथ संबंध बनाते हों और लग्न या लग्नेश पर प्रभाव डालते हों तथा शनि का भी इसमें दशमेश होकर प्रभाव आ रहा हो तो व्यक्ति वकालत से जुड़ा हुआ हो सकता है और तर्कता पूर्ण विचार विमर्श करने वाला होता है । शुक्र – वैदिक ज्योतिष में शुक्र को मुख्य रूप से पत्नी का का कारक माना गया है । यह विवाह का कारक ग्रह है । पति- पत्नी का सुख देखने के लिए कुंडली में शुक्र की स्थिति को विशेष रुप से देखा जाता है । शुक्र को सुंदरता , ऐश्वर्य तथा कला के साथ जुड़े क्षेत्रों का अधिपति माना जाता है । शुक्र की प्रबल स्थिति जातक को शारीरिक रूप से सुंदर और आकर्षक बनाती है । शुक्र के प्रबल प्रभाव से महिलाएं अति आकर्षक होती हैं । शुक्र के जातक आम तौर पर फैशन जगत , सिनेमा जगत तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्रों में सफल होते हैं । शुक्र शारीरिक सुखों के भी कारक हैं । प्रेम संबंधों में शुक्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । शुक्र का प्रबल प्रभाव जातक को रसिक बनाता है शरीर के अंगों में शुक्र जननांगों के कारक होते हैं तथा महिलाओं के शरीर में शुक्र प्रजनन प्रणाली का प्रतिनिधित्व करते हैं । स्त्रियों की कुंडली में शुक्र पर बुरे ग्रह का प्रभाव होने पर उनकी प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव दालता है । शुक्र पर बुरे ग्रहों का प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन एवं प्रेम संबंधों में समस्याएं उत्पन्न कर सकता है । कुंडली में शुक्र पर राहु का प्रभाव जातक को वासनाओं से भर देता है । अशुभता के कारण व्यक्ति किसी गुप्त रोग से पीड़ित भी हो सकता है । शनि व बुध शुक्र के मित्र ग्रहों में आते है । शुक्र ग्रह के शत्रुओं में सूर्य व चन्द्रमा है । शुक्र के साथ गुरु व मंगल सम सम्बन्ध रखते हैं ।गुरु की भांति शुक्र भी कानून से संबंध रखता है । जब शुक्र गुरु से मिलकर लग्न लग्नेश पर अधिक प्रभाव डालता है तो व्यक्ति कानून से संबन्धित काम धन्धे करता है , जैसे वकालत , सेल्स टेक्स इंस्पेक्टर ( आयकर , सम्पत्ति कर ) , राजस्व , इन्कम टैक्स का वकील , शास्त्रकार , ग्रंथकार , सचिव , मंत्री इत्यादि । कलात्मक कार्य , संगीत (गायन , वादन , नृत्य), अभिनय , चलचित्र संबंधी डेकोरेशन , ड्रेस डिजायनिंग , मनोरंजन के साधन , फिल्म उद्योग , वीडियो पार्लर , मैरिज ब्यूरो , इंटीरियर डेकोरेशन , फैशन डिजाइनिंग , पेंटिंग , श्रृंगार के साधन , कोसमेटिक , इत्र , गिफ्ट हॉउस , चित्रकला तथा स्त्रियों के काम में आने वाले पदार्थ , विवाह से संबंधित कार्य , महिलाओं से संबंधित कार्य , विलासितापूर्ण वस्तु , गाड़ी , वाहन व्यापारी , ट्रांसपोर्ट , सजावटी वस्तुएं , मिठाई संबंधी , रेस्टोरेंट , होटल , खाद्य पदार्थ , श्वेत पदार्थ , दूध से बने पदार्थ , दूध उत्पादन ( दुग्धशाला ) , दही , चावल , धान , गुड़ , खाद्य पदार्थ , सोना , चांदी , हीरा , जौहरी , वस्त्र निर्माता , गारमेंट्स , पशु चिकित्सा , हाथी घोड़ा पालना , टूरिज्म , चाय – कॉफी , शुक्र + मंगल – रत्न व्यापारी , शुक्र + राहु या शनि – ब्यूटी पार्लर , शुक्र + चन्द्र – सोडावाटर फेक्ट्री , तेल , शर्बत , फल , तरल रंग , शुक्र आजीविका भाव में बली अवस्था में हो , दशमेश हो , या फिर दशमेश के साथ उच्च राशि का स्थित हो , तो व्यक्ति में कलाकार बनने के गुण होते है । वह नाटककार और संगीतज्ञ होता है । उसकी रुचि सिनेमा के क्षेत्र में काम करने की हो सकती है । भवन बनाने वाले इंजिनियर, दुग्धशाला, नौसेना, रेलवे, आबकारी, यातायात, बुनकर, आयकर, सम्पति कर आदि का कार्य करता है. शनि – शनि का भूमि क्षेत्र से विशेष संबंध है । शनि पृथ्वी के भीतर पाये जाने वाले पदार्थ का कारक है । लोहा संबन्धित कार्य , मशीनरी के कार्य , केमिकल प्रोडक्ट , ज्वलनशील तेल ( पैट्रोल, डीजल आदि ) , कुकिंग गैस , प्राचीन वस्तुएं , पुरातत्व विभाग , अनुसंधान कार्य , ज्योतिष कार्य , लोहे से संबंधित कच्ची धातु , कोयला , चमड़े का काम , जूते , अधिक श्रम वाला कार्य , नौकरी , मजदूरी , ठेकेदारी , दस्तकारी , मरम्मत के कार्य , लकड़ी का कार्य , मोटा अनाज , प्लास्टिक एवम रबर उद्योग , काले पदार्थ , स्पेयर पार्ट्स , भवन निर्माण सामग्री , पत्थर एवम चिप्स , ईट , शीशा , टाइल्स , राजमिस्त्री , बढ़ई , श्रम एवम समाज कल्याण विभाग , टायर उद्योग , पलम्बर , घड़ियों का काम , कबाड़ी का काम , जल्लाद , तेल निकालना , पी डब्लू डी , सड़क निर्माण , सीमेंट । शनि + गुरु + मंगल – इलेक्ट्रिक इंजिनियर । शनि + बुध + गुरु – मेकेनिकल इंजीनियर । शनि + शुक्र – पत्थर की मूर्ति , राहु – कम्प्युटर , बिजली , अनुसंधान , आकस्मिक लाभ वाले कार्य , मशीनों से संबंधित , तामसिक पदार्थ , जासूसी गुप्त कार्य , विषय संबंधी , कीट नाशक , एण्टी बायोटिक दवाईयां , पहलवानी , जुआ , सट्टा , मुर्दाघर , सपेरा , पशु वधशाला , जहरीली दावा , चमड़ा व खाल , केतू – समाज सेवा से जुड़े कार्य , धर्म, आध्यात्मिक कार्य , रहस्यमयी विज्ञान , आदि।