नाडी ज्योतिष दक्षिण भारत में ज्योतिष की एक प्रचलित विधा है। इसमें और पराशरीय ज्योतिष में कुछ भिन्नताएं हैं। यथा जातक के बारे में बृहस्पति के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव से निर्णय किया जाता है। पुरुष जातक के लिए बृहस्पति और स्त्री जातक के लिए शुक्र को जीवकारक मानते हैं।और इन्हीं को लग्न मानकर फलादेश करते हैं जो सत्यता के अधिक निकट होता है।
किसी भी ग्रह से त्रिकोण में बैठे ग्रह को युति के समान मानते हैं। परन्तु ग्रहों का क्रम अंश के अनुसार ही रखा जाता है। जिस से तीन ग्रहों कि युति का परिणाम तीन प्रकार से आता है। नाडी में पति कारक गुरु को न मानकर मंगल को मानते है। इसी प्रकार सूर्य को पुत्र कारक मानते हैं। नाडी में सभी ग्रहों की तीन सात दस पर दृष्टि मानी गई है। राहु केतु की केवल नवम दृष्टि ली गई है। राहु को विस्तार कारक तथा केतु को मोक्षकारक मानते हैं। अनुभव में भी सत्य पाया गया है।
पाराशरी और नाडी ज्योतिष दोनों को सम्मिलित कर भारत के उत्तरी और दक्षिणी ज्ञान का सामंजस्य बिठाएं ,और तब परिणाम देखें ,आश्चर्य होगा। धन्यवाद।।