गायत्री मंत्र महा वैज्ञानिक व आद्यात्मिक शक्ति मन्त्र

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गायत्री मंत्र महा वैज्ञानिक व आद्यात्मिक शक्ति मन्त्र

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Ravinder Pareek 21st Jun 2020

*गायात्री महाविज्ञान* *अथ गायत्री माहात्म्य* गायत्री की महिमा का वेद, शास्त्र, पुराण सभी वर्णन करते हैं। अथर्ववेद में गायत्री की स्तुति की गयी है, जिसमें उसे आयु, प्राण, शक्ति, पशु, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है—  *ॐ स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानाम् ।*  *आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम् । मह्यं दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकम् ।।* —अथर्व. 19/71/1  अथर्ववेद में स्वयं वेद भगवान् ने कहा है—  मेरे द्वारा स्तुति की गई, द्विजों को पवित्र करने वाली वेदमाता गायत्री, आयु, प्राण, शक्ति, पशु, कीर्ति, धन एवं ब्रह्मतेज उन्हें प्रदान करें।  *यथा मधु च पुष्पेभ्यो घृतं दुग्धाद्रसात्पयः ।*  *एवं हि सर्ववेदानां गायत्री सारमुच्यते ।।* —वृहद् योगियाज्ञवल्क्यस्मृति 4.16  ‘‘जिस प्रकार पुष्पों का सारभूत मधु, दूध का घृत, रसों का सारभूत पय है, उसी प्रकार गायत्री मन्त्र समस्त वेदों का सार है।’’  *तदित्यृचः समो नास्ति मन्त्रो वेदचतुष्टये* ।  *सर्वे वेदाश्च यज्ञाश्च दानानि च तपांसि च ।*  *समानि कलया प्राहुर्मुनयो न तदित्यृचः ।।*  —विश्व‍ामित्र  ‘‘गायत्री मन्त्र के समान मन्त्र चारों वेदों में नहीं है। सम्पूर्णवेद, यज्ञ, दान, तप, गायत्री मन्त्र की एक कला के समान भी नहीं हैं, ऐसा मुनि लोग कहते हैं।’’  *गायत्री छन्दसां मातेति ।।*  —महानारायणोपनिषद 15/1  ‘‘गायत्री वेदों की माता अर्थात् आदि कारण है।’’  *त्रिभ्य एव तु वेदेभ्यः पादम्यादमदूदुहत् ।*  *तदित्यृचोऽस्याः सावित्र्याः परमेष्ठी प्रजापतिः ।।*  —मनु. अ. 2/77 ‘‘परमेष्ठी प्रजापति ब्रह्माजी ने तीन ऋचा वाली गायत्री के तीनों चरणों को तीन वेदों से सारभूत निकाला है।’’  *गायत्र्यास्तु परन्नास्ति शोधनं पापकर्मणम् ।*  *महाव्याहृतिसंवुक्ता प्रणवेन च संजपेत् ।।*  —सम्वर्त स्मृ. शलो. 214 ‘‘पाप को नाश करने में समर्थ गायत्री के समान अन्य कोई मन्त्र नहीं है, अतः प्रणव तथा महाव्याहृतियों के सहित गायत्री मन्त्र का जाप करें।’’  *नान्नतोय-समं दानं न चाहिंसापरं तपः ।*  *न गायत्री समं जाप्यं न व्याहृति-समं हुतम् ।।*  —सूत संहिता यज्ञ वैभव खण्ड अ. 6/30 ‘‘अन्न और जल के समान कोई भी दान, अहिंसा के समान तप, गायत्री के समान जप, व्याहृति के समान अग्निहोत्र कोई भी नहीं है।’’  *हस्तत्राणप्रदा देवी पततां नरकार्णवे ।*  *तस्मात्तामभ्यसेन्नित्यं ब्राह्मणो हृदये शुचिः ।।* ‘‘गायत्री, नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़कर बचाने वाली है, अतः द्विज नित्य ही पवित्र हृदय से गायत्री का अभ्यास करें अर्थात् जपें।’’  *गायत्री चैव वेदांश्च तुलया समतोलयत् ।*  *वेदा एकत्र सांगास्तु गायत्री चैकतः स्थिता ।।*  —योगी याज्ञवल्क्य. 480 ‘‘गायत्री और समस्त वेदों को तराजू में तोला गया। षट् अंगों सहित वेद एक ओर रखे गये और गायत्री को एक ओर रखा गया।’’  *सारभूतास्तु वेदानां गुह्योपनिषदो मताः ।*  *ताभ्यः सारस्तु गायत्री तिस्रो व्याहृतयस्तथा ।।*  —योगी याज्ञ. 4.77 ‘‘वेदों के सार उपनिषद् हैं और उपनिषदों का सार गायत्री और तीनों महा व्याहृतियां हैं।’’  *गायत्री वेदजननी गायत्री पापनाशिनी ।*  *गायत्र्यास्तु परन्नास्ति दिवि चेह च पावनम् ।।*  —शंख स्मृति 12/24 गायत्री वेदों की जननी है। गायत्री पापों को नाश करने वाली है। गायत्री से अन्य कोई पवित्र करने वाला मन्त्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है।  *यद्यथाग्निर्देवानां, ब्राह्मणो मनुष्याणाम् ।*  *वसन्त ऋतूनामियं गायत्री चास्ति छन्दसाम् ।।*  ‘‘जिस प्रकार देवताओं में अग्नि, मनुष्यों में ब्राह्मण, ऋतुओं में वसन्त ऋतु श्रेष्ठ है, उसी प्रकार छन्दों में गायत्री श्रेष्ठ है।’’  *अष्टादशसु विद्यासु मीमांसाति गरीयसी ।*  *ततोऽपि तर्कशास्त्राणि पुराणं तेभ्य एव च ।।*  *ततोऽपि धर्मशास्त्राणि तेभ्यो गुर्वी श्रुतिर्द्विज !*  *ततोऽप्युपनिषच्छ्रेष्ठा गायत्री चे ततोऽधिका ।।*  *दुर्लभा सर्वमन्त्रेषु गायत्री प्रणवान्विता ।*  —स्कन्द पु. 4/9/49-51 ‘‘अठारह विद्याओं में मीमांसा अत्यंत श्रेष्ठ है। मीमांसा से तर्कशास्त्र श्रेष्ठ है और तर्कशास्त्र से पुराण श्रेष्ठ हैं। पुराणों से भी धर्मशास्त्र श्रेष्ठ हैं। हे द्विज! धर्मशास्त्रों से वेद श्रेष्ठ हैं और वेदों से उपनिषद् श्रेष्ठ हैं और उपनिषदों से गायत्री मन्त्र अत्यधिक श्रेष्ठ है।’’  प्रणव युक्त यह गायत्री समस्त वेदों में दुर्लभ है।  *नास्ति अंश समं तीर्थं न देवः केशवात्परः ।* *गायत्र्यास्तु परं जाप्यं न भूतं न भविष्यति ।।* —बृ. यो याज्ञ. अ. 10.10.-11 ‘‘गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं हैं, केशव से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं है। गायत्री मन्त्र के जप से श्रेष्ठ कोई जप न आज तक हुआ है और न होगा।’’  सर्वेषां जयसूक्तानामृचां च यजुषां तथा ।  साम्नां चैकाक्षरादीनां गायत्री परमो जपः ।।  —बृ. पाराशर स्मृति अ. 3/4  ‘‘समस्त जप सूक्तों में, ऋक्-यजु एवं सामवेद में तथा एकाक्षरादि मन्त्रों में गायत्री मन्त्र जप परम श्रेष्ठ है।’’  एकाक्षरं परं ब्रह्म प्राणायामः परन्तपः ।  सावित्र्यास्तु परन्नास्ति पावनं परमं स्मृतम् ।।  —अग्नि पुराण 166/18   ‘‘एकाक्षर अर्थात् ‘ओ३म्’ परब्रह्म है। प्राणायाम परम तप है और गायत्री मन्त्र से बढ़कर पवित्र करने वाला कोई मन्त्र नहीं है।’’  गायत्र्याः परमं नास्ति दिवि चेह च पावनम् ।  हस्तत्राणप्रदा देवी पततां नरकार्णवे ।।  —शंख स्मृति अ. 12/25   ‘‘नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़ कर बचाने वाली गायत्री के समान पवित्र करने वाली वस्तु या मन्त्र पृथ्वी पर तथा स्वर्ग में भी नहीं है।’’  गायत्री चैव वेदाश्च ब्रह्मणा तोलिताः पुरा ।  वेदेभ्यश्च चतुर्भ्योऽपि गायत्र्यतिगरीयसी ।।  —बृ. पाराशर स्मृति अ. 4/16   ‘‘प्राचीनकाल में ब्रह्माजी ने गायत्री को वेदों से तोला। चारों वेदों से भी गायत्री का पलड़ा भारी रहा।’’  सोमादित्यान्वयाः सर्वे राघवाः कुरवस्तथा ।  पठन्ति शुचयो नित्यं सावित्री परमां गतिम् ।।  —महाभारत अनु. पर्व अ. 150/77   ‘‘हे युधिष्ठिर! सम्पूर्ण चन्द्रवंशी, सूर्यवंशी, रघुवंशी तथा कुरुवंशी नित्य ही पवित्र होकर परम गतिदायक गायत्री मन्त्र का जप करते हैं।’’  बहुना किमिहोक्तेन यथावत् साधु साधिता ।  द्विजन्मानामियं विद्या सिद्धा कामदुघा स्मृता ।।  यहां पर अधिक कहने से क्या लाभ? अच्छी प्रकार सिद्ध की गयी गायत्री विद्या, द्विज जाति के लिए कामधेनु कही गई है।’’  सर्ववेदोद्धृतः सारो मन्त्रोऽयं समुदाहृतः ।  ब्रह्मादिदेवा गायत्री परमात्मा समीरितः ।।  ‘‘यह गायत्री मन्त्र समस्त वेदों का सार कहा गया है। गायत्री ही ब्रह्मा आदि देवता है। गायत्री ही परमात्मा कही गयी है।’’  या नित्या ब्रह्मगायत्री सैव गंगा न संशयः ।  सर्वतीर्थमयी गंगा तेन गंगा प्रकीर्तिता ।।  —गायत्री तन्त्र 3/143  ‘‘गंगा सर्व तीर्थमय होने से ‘गंगा’ कहलाती है। वह गंगा ब्रह्म गायत्री का ही रूप है।’’   सर्वशास्त्रमयी गीता गायत्री सैव निश्चिता ।  यागतीर्थं च गोलोकं गायत्रीरूपमद्भुतम् ।।  —गायत्री तन्त्र 3/144 ‘‘गीता में सब शास्त्र भरे हुए हैं। वह गीता निश्चय ही गायत्री रूप है। याग, तीर्थ और गोलोक यह भी गायत्री के ही रूप हैं।’’  अशुचिर्वा शुचिर्वापि गच्छन्तिष्ठन् यथा तथा ।  गायत्रीं प्रजपेद्धीमान् जपात् पापान्निवर्तते ।।  —गायत्री तन्त्र   ‘‘अपवित्र हो अथवा पवित्र हो, चलता हो अथवा बैठा हो, जिस भी स्थिति में हो, बुद्धिमान् मनुष्य गायत्री का जप करता रहे। इस जप के द्वारा पापों से छुटकारा होता है।’’  मननात् पापतस्त्राति मननात् स्वर्गमश्नुते ।  मननात् मोक्षमाप्नोति चतुर्वर्गमयो भवेत् ।।  —गायत्री तन्त्र   ‘‘गायत्री का मनन करने से पाप से छूटते हैं, स्वर्ग प्राप्त होता है और मुक्ति मिलती है तथा चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) सिद्ध होते हैं।  गायत्री तु परित्यज्य अन्यमन्त्रानुपासते ।  त्यक्त्वा सिद्धान्नमन्यत्र भिक्षामटति दुर्मतिः ।।  ‘‘जो गायत्री को छोड़कर दूसरे मन्त्रों की उपासना करता है, वह दुर्बुद्धि मनुष्य पकाये हुए अन्न को छोड़कर भिक्षा के लिए घूमने वाले पुरुष के समान है।’’  नित्ये नैमित्तिके काम्ये तृतीये तपो वर्धने ।  गायत्र्यास्तु परं नास्ति इह लोके परत्र च।।  ‘‘नित्य, नैमित्तिक, काम्य की सफलता तथा तप की वृद्धि के लिये इस लोक तथा परलोक में गायत्री से बढ़कर कोई नहीं है।’’  सावित्री - जाप्यनिरतः स्वर्गमाप्नोति मानवः ।  तस्मात् सर्वप्रयत्नेन स्नातः प्रयतमानसः ।  गायत्रीं तु जपेत् भक्त्या सर्वपापप्रणाशिनीम् ।।  —शंख. 12/30-31  ‘‘गायत्री मन्त्र जानने वाला मनुष्य स्वर्ग को प्राप्त करता है। इसी कारण स्नान कर समस्त प्रयत्नों से स्थिर चित्त हो सारे पापों के नाश करने वाली गायत्री का जाप करे।’’  ज्योतिष एवं वास्तु विज्ञान संकलन कर्ता ज्योतिर्विद रविन्द्र पारीक


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

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