प्रणाम विद्वानो 🙏 आज मै ईश्वर द्वारा प्रदत अल्पबुद्धि से बताऊँगा की शनि को न्याय का देवता क्यूँ कहा गया शनि अर्थात् शनेः शनेः इति चर शनिश्चरा अर्थात धीरे धीरे चलने वाला, सौरमण्डल मे शनि का पथ (💫 orbit) सबसे लंबी है (अरुण वरूण) को छोड़कर इसलिए ये सूर्य की परिक्रमा करने मे 29 साल 180 दिन लेता है, क्या धीमा चलना मूर्खता का परिचायक है?? धीमा चलने का कारण लम्बी दूरी तय करने के लिए धीमा धीमा ही चला जाता है आप देख सकते हैं चंद्रमा को छोड़कर (क्यूंकि ये प्रथ्वी का उपग्रह है) इसे नवग्रहों मे स्थान दिया गया है जो भारतीय संस्कृति की उदारता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को दर्शाता है, वैसे अगर विज्ञान की माने तो जो हमारे 9 ग्रह में से 5 ग्रह ही ठोस है सूर्य एक तारा है, चंद्र उपग्रह, राहु और केतु छाया ग्रह इसलिए आप देख सकते हैं कि जिस तरह सूर्य से ग्रहों की दूरी बढ़ती जाती है उसी तरह ग्रहों के परिक्रमा के काल में बढ़ता जाता है राशि प्रवेश का काल बुध लगभग 20 दिन से 30 दिन शुक्र 25 से 35 दिन मंगल 40 दिन से 60 दिन गुरु 13 माह शनि लगभग 30 माह एक राशि मे गुजारता है, जो कि आरोही कर्म मे व्यवस्थित है, अब बात आती है न्याय की, न्याय एक ऐसी प्रणाली होती है जिसमें तुरन्त निर्णय देना अर्थात् गलती के चांस अधिक होते हैं इसलिए उसका सूक्ष्म अवलोकन किया जाता है जिसमें समय लगता है, आप संसार की किसी भी वस्तु को चाहे खाने से लेकर व्यक्ति के व्यक्तित्व को देख लो जो धीरे धीरे बढ़ता है वही स्थाई होता है कोयला धीरे-धीरे जमीन मे जा के हीरा बनता है इसलिए उसके साथ न्याय होता है जब वो प्रथ्वी के अंदर की समस्त गर्मी को ग्रहण करके उसके थपेड़े को सहन करने के लायक बन जाता है, उसी तरह ये ग्रह शुरुआत से लगभग 90 प्रतिशत तक संघर्ष देता है फिर उस 10 प्रतिशत मे उतना कवर कर देता है जितना सूर्य से ले कर ब्रहस्पति भी ना कर सके, ब्रहस्पति की महादशा से उन्मत्त जातक का घमंड चूर चुर करके उसे बुद्ध यानी विवेकवान बनाता है (नोट - यहां मूल प्रकृति की बात हो रही है इसमे मारक शुभ अशुभ पापी धर्मी ग्रहों के किसी भी विषय को ना घसीटें अन्यथा पूरी पोस्ट खराब हो जाएगी, की Shubham Garg ने कहा कि शनि की महादशा अच्छी- जाएगी अंत में फिर अच्छा समय आएगा, ऐसा कुछ नहीं है किन्तु बहुत कुछ भी है) न्याय का अर्थ होता है हकदार को उसका हक मिले, जिम्मेदार को जिम्मेदारी, अर्थात् जिस तरह के कर्म उसी तरह के फल, शनि को न्याय चक्र का ग्रह मानने का एक कारण ये है कि सूर्य जो कि आत्मा होता है शनि उसका ग्रहों मे the end माना जाता है, जहां से शुरू(सूर्य) हो कहीं जा कर कोई भी घटना खत्म हो (शनि - आखिरी ग्रह) तब ही तो हम कहेंगे कि हमे मंजिल मिल गई या यूं ही कह देंगे कि मंजिल मिल गई, अब उस यात्रा का क्या सार रहा उसको जब पूरा कर लेंगे तब ही तो बता पायेगे की ये अनुभव वैसा रहा, जहां व्यक्ति का अस्तित्व समाप्त हो जाता है अर्थात मोक्ष मिल जाता है वहीं व्यक्ति के साथ न्याय होता है इसीलिए ही शनि को 12 घर का कारक कहा जाता है, लगन सूर्य से शुरू हो के द्वादश शनि पर खत्म इक न्यायधीश को अगर पूरे तथ्य ना दे के सिर्फ आधी अधूरी कहानी सुना दी जाए तो क्या वो न्याय कर पाएगा बिल्कुल नहीं इसलिए उसका end तक सुनना आवश्यक है इसलिए शनि end है और सूर्य beginning, इसलिए शनि को न्याय का ग्रह कहा जाता है पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने शनि को न्याय का दंडाधिकारी नियुक्त किया जिसकी शुरुआत शनि ने स्वयं अपने पिता सूर्य से की जहां वो अपनी माता संध्या के लिए न्याय करते हैं शनि की प्रकृति को लोग अशुभ मानते हैं क्यूँकि आपको आपके असली कर्मों की सजा देने वाला आपको अच्छा थोड़े लगेगा, अतः लोगों के बहकावे में ना के इसके वैज्ञानिक पहलू को समझेa और हाँ ये ना मैंने कहीं पढ़ा है ना मुझे कहीं पढ़ाया गया है ये आत्मचिंतन से उत्पन्न ज्ञान है जो ईश्वर का प्रसाद है त्रुटि हेतु क्षमाँ, सुझाव हेतु आमंत्रण जय 🙏 महाकाल 🔱 🔱 ✒️ Shubham Garg