शिवलिंग और जल
Shareसंस्कृत भाषा में लिंग का अर्थ चिन्ह निशान या प्रतीक होता है अज्ञानियों और हिंदु धर्म विरोधी इसे पुरुष की जननेंद्रिय के रूप में देखते है जो सरासर गल टीवीत है पुरुष की जननेंद्रिय को संस्कृत मे शिश्न कहा जाता है. लिंग शब्द अगर पुरुष जननेन्द्रिय से जुड़ा हुआ होता तो हमारे दक्षिणभारतीय भाइयों के सरनेम में लिंग शब्द की आवृत्ति देखने में कदापि नहीं मिलती जैसे कि लिंगास्वामी, ,रामालिंगम, नागलिंगम, इत्यादि. शिवलिंग (अर्थात प्रतीक, निशान या चिह्न) इसे लिंगा, पार्थिव-लिंग, लिंगम् या शिवा लिंगम् भी कहते हैं। यह हिंदू भगवान शिव का प्रतिमाविहीन चिह्न है। यह प्राकृतिक रूप से स्वयम्भू व अधिकतर शिव मंदिरों में स्थापित होता है। शिवलिंग असल में शिव का लिंग नहीं शिव का पिंडी स्वरूप है कुछ मंदिरो में सिर्फ स्वयम्भू विराजवान होते है बाकी मंदिरो में शिवलिंग के चारो और उनके परिवार की मुर्तिया होती है दोनों जगह जल चढाने का अलग अलग विधान है (ऐसा मेरा अनुभव है ) जिसे अधिकतर भगत जन अनजान है आइये जानते है कुछ जल चढाने के नियम
• शिवलिंग पर जल सुबह 5 बजे से सुबह 12 बजे तक ही चढ़ाना चाहिए
• शाम को शिवलिंग पर जल नहीं चढ़ता हालांकि कई मंदिरो में अज्ञानता वश लोग चढ़ाते है जो सरासर गलत है
• पूर्व दिशा की ओर मुंह करके शिवलिंग पर जल न चढ़ाएं. पूर्व दिशा को भगवान शिव का मुख्य द्वार माना जाता है. इस दिशा की ओर मुख करके जल चढ़ाने से शिव के द्वार में अवरोध उत्पन्न होता है.
• उत्तर दिशा को शिव जी का बायां अंग माना जाता है जो माता पार्वती को समर्पित है। इस दिशा की ओर मुंह करके जल अर्पित करने से भगवान शिव और माता पार्वती दोनों की कृपा दृष्टि प्राप्त होती है। • दक्षिण , पूर्व और पश्चिम दिशा में भगवान शिव की पीठ, कंधा आदि होते हैं इसलिए इन दिशाओं में मुख करके शिवलिंग पर जल चढ़ाने से शुभ फल प्राप्त नहीं होता.
• जल चढ़ाने के लिए सबसे अच्छे पात्र तांबे, चांदी और कांसे के माने जाते हैं।
• स्टील और लोहे के पात्र से कदापि जल नहीं चढ़ाना चाहिए
• भूलकर भी तांबे के पात्र से शिव जी को दूध न चढ़ाएं क्योंकि तांबे में दूध विष के समान बन जाता है।
• यथा संभव श्रृंगी से या एक धार से धीरे धीरे जल चढ़ाना अति उत्तम है
• शिवलिंग पर शंख से जल नहीं चढ़ाना चाहिए शिवपुराण के अनुसार, शिवजी ने शंखचूड़ नाम के दैत्य का वध किया था। ऐसा माना जाता है कि शंख उसी दैत्य की हड्डियों से बने होते हैं। इसलिए शिवलिंग पर शंख से जल नहीं चढ़ाना चाहिए।
• हो सके तो शिवलिंग पर केवल जल चढ़ाएं उसमें कोई भी सामग्री न मिलाएं
• शिवलिंग पर खड़े होकर नहीं बल्कि हो सके तो बैठकर ही जल चढ़ाएं
• शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद कभी भी भगवान शिव की पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि भगवान शिव को अर्पित किया गया जल लांघना निषेद्ध है
• भगवान को हमेशा दाहिने हाथ से जल चढ़ाएं और बाएं हाथ से दाहिने हाथ का स्पर्श करें.
• यदि बेलपत्र चढ़ा रहे है तो बेलपत्र चढाने के बाद जल ही अर्पित करे
• लोटे में ऊँगली डालकर जल कदापि न चढ़ाये
• खंडित अक्षत भूल कर भी न चढ़ाये
• जल चढाते समय शिव मंत्र का जाप अवश्य करे
• मंदिर में सिर्फ स्वयम्भू है तो सर्वप्रथम जलहरी के दाईं ओर चढ़ाएं, जो गणेश जी का स्थान माना जाता है। फिर बाईं ओर जल चढ़ाएं। इसे भगवान कार्तिकेय का स्थान माना जाता है।दाएं और बाएं ओर चढ़ाने के बाद जलहरी के बीचों-बीच जल चढ़ाएं। इस स्थान को शिव जी की पुत्री अशोक सुंदरी की मानी जाती है।अशोक सुंदरी को जल चढ़ाने के बाद जलधारी के गोलाकार हिस्सा में जल चढाएं। इस स्थान पर मां पार्वती का हस्तकमल होता है।अंत में शिवलिंग पर धीरे-धीरे शिव मंत्र बोलते हुए जल चढ़ाएं।
• यदि शिवलिंग के चारो और उनके परिवार की मुर्तिया है तो सर्वप्रथम गणेश जी(प्रथम देवता) को फिर क्रमशः शिवलिंग , माँ पार्वती , कार्तिकेय , गणेश जी (पुत्र रूप में), नंदी जी , नाग देवता ,कलश(शिवलिंग पर यदि है तो ) और अंत में सारा जल धीरे धीरे शिवलिंग पर शिव मंत्र का जाप करते हुए अर्पित करे
• वस्त्र/मोली चढ़ानी है तो हीं मूर्तियों के सर पर जल चढ़ाये अन्यथा उनके चरणों मे जल अर्पित करें
• कई जगह शिवलिंग के कमरे के बाहर नंदी जी विराजमान होते है तो वहा पर नंदी जी को जल पहले भी अर्पित कर सकते है