ग्रहो के अनुसार रोग
Shareज्योतिष द्वारा रोगों के कारण और उपचार
हर बीमारी का समबन्ध किसी न किसी ग्रह से है जो आपकी कुंडली में या तो कमजोर है या फिर दुसरे ग्रहों से बुरी तरह प्रभावित है | कुंडली में षष्ठम भाव को रोग कारक व शनि को रोग जन्य ग्रह माना जाता है।
ज्योतिष के अनुसार किसी रोग विशेष की उत्पत्ति जातक के जन्म समय में किसी राशि एवं नक्षत्र विशेष में पाप ग्रहों की उपस्थिति, उन पर पाप प्रभाव, पाप ग्रहों के नक्षत्र में उपस्थिति एवं पाप ग्रह अधिष्ठित राशि के स्वामी द्वारा युति या दृष्टि रोग की संभावना को बताती है। ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उनको नुकसान पहुंचाता है |
मानव शरीर पर प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में विस्तारपूर्वक विचार किया गया है। मानव शरीर में भी समुद्र के जल के अनुपात के बराबर ही जल है। अत: उस जल पर भी पूर्णमासी के चंद्र, पूर्ण चंद्र एवं अमावस्या के चंद्र का भी विशेष प्रभाव पड़ता है। अतः जो व्यक्ति कृष्ण पक्ष में पैदा होते हैं, उनमें हृदय रोग आमतौर पर होता है। जबकि शुक्ल पक्ष में जन्मे व्यक्ति कम से कम इस हृदय रोग के शिकार होते हैं।
ज्योतिष शास्त्र में बारह राशियों को बारह भाव के नाम से जाना जाता है। इन भावों के द्वारा क्रमश: शरीर, धन, भाई, माता, पुत्र, ऋण-रोग, पत्नी, आयु, धर्म, कर्म, आय और व्यय का चक्र मानव के जीवन में चलता रहता है।
इसमें जो राशि शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व करती है, उसी राशि में बैठे ग्रहों के प्रभाव के अनुसार रोग की उत्पत्ति होती है कोई भी ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उन अंगों को नुकसान पहुंचाता है। कुंडली में बैठे ग्रहों के अनुसार किसी भी जातक के संभावित रोगों का अनुमान लगाया जा सकता है |
1 कुंडली में यदि सूर्य के साथ पापग्रह शनि या राहु आदि बैठे हों तो जातक के शरीर में विटामिन की कमी रहती है। साथ ही विटामिन सी की कमी रहती है जिससे आंखें और हड्डियों की बीमारी का भय रहता है।
2 चंद्र और शुक्र के साथ जब भी पाप ग्रहों का संबंध होगा तो जलीय रोग जैसे शुगर, मूत्र विकार और स्नायुमंडल जनित बीमारियां होती है।
3 मंगल शरीर में रक्त का स्वामी है। यदि ये नीच राशिगत, शनि और अन्य पाप ग्रहों से ग्रसित हैं तो व्यक्ति को रक्तविकार और कैंसर जैसी बीमारियां होती हैं।
4 हृदय रोग चंद्रमा के दूषित या कमजोर होने पर ही होता है। अत: इस रोग के रोगी को चंद्रमा को शुभ रखने का सदैव प्रयत्न करना चाहिए।
5 शनि रोग से जातक लम्बे समय तक पीड़ित रहता है। राहु किसी रोग का कारक होता है, तो बहुत समय तक उस रोग की पता नही हो पाता है। ऐसे में रोग अधिक अवधि तक चलता है।
यदि रोगों का पूर्वज्ञान हो तो ज्योतिषीय उपाय एवेम जीवन शैली को बदलते हुए रोग को काबू में लाया जा सकता है |कई बार अध्यात्मवाद ,ज्योतिष तथा इष्ट साधन बहुत सहायक होते है |
रोग का मस्तिष्क से सीधा संबंध पाया गया है एवेम मस्तिष्क का सीधा सम्बन्ध कुंडली के ग्रहो से होता है मस्तिष्क जैसा सोचता है वैसा ही शरीर करता है | मस्तिष्क व्यक्ति की सोच के अनुरूप शरीर में विभिन्न रसों का स्राव करता है जो कि रोग का मुख्य कारण बनते हैं।
ज्योतिष उपायों से भी रोगों का इलाज संभवित है , जैसे कोई रोग हो जाता है तो उसे जप , तप , दान , रत्न के माध्यम से अच्छा किया जाता है | जिससे जातक के शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है तथा नकारात्मक ऊर्जा का निष्काशन हो जाता है जिससे शरीर में अनुकूल रासायनिक क्रियाऐं होने से जातक अपने को रोगामुक्त और स्वस्थ महसूस करता है , हमारे शरीर और मस्तिष्क का नियंत्रण व संतुलन बना रहता है और हम स्वस्थ महसूस करते हैं।
किसी भी कुंडली में सूर्य और चंद्रमा की स्थिति को देखते हुए रोग का प्रभाव कैसा रहेगा ये जाना जा सकता है , इन दोनों ग्रहो का मनुष्य के शरीर और मन से सीधा सम्बन्ध है और इन दोनों ग्रहो को ज्योतिषीय और वास्तु दोषो के उपयो द्वारा मजबूत बनाया जा सकता है
सूर्य ग्रहों का राजा है इसलिए यदि सूर्य आपका बलवान है तो बीमारियाँ कुछ भी हों आप कभी परवाह नहीं करेंगे | क्योंकि आपकी आत्मा बलवान होगी | आप शरीर की मामूली व्याधियों की परवाह नहीं करेंगे |
चन्द्र संवेदनशील लोगों का अधिष्ठाता ग्रह है | यदि चन्द्र दुर्बल हुआ तो मन कमजोर होगा और आप भावुक अधिक होंगे | कठोरता से आप तुरंत प्रभावित हो जायेंगे और सहनशक्ति कम होगी |
ज्योतिष आयुर्वेद की पैथोलोजी की तरह है जैसे चिकित्सक डाक्टर विभिन्न लैब टैस्ट करवाते है और रोग का निदान करते है ,उसी तरह आयुर्वेद वैद्य ज्योतिष का साहरा लेकर रोग का निदान करते हैं ।
यदि समय रहते इनका चिकित्सकीय एवं ज्योतिषीय उपचार दोनों कर लिए जाएं तो इन्हें घातक होने से रोका जा सकता है।
जन्मकुंडली, प्रश्नजन्म कुंडली एवं ग्रह गोचर से रोगों का कारण एवं स्वरूप जाना जा सकता है। इसी कारण जातक की जन्मकुंडली का अध्ययन करके भविष्य में उसे कौन-से रोग कष्ट देने वाले हैं इसकी जानकारी मिलती है।
ग्रहों के द्वारा उत्पन्न रोगों में अपने सम्बंधित चिकित्सक की सलाह पर दवा का सेवन करना चाहिए। कुशल ज्योतिषी की सलाह पर बीमारी से सम्बंधित भाव , भावेश तथा कारक ग्रह से सम्बंधित ज्योतिषीय उपाय करते हुए रोग के प्रभाव को कम करना चाहिए।