ज्योतिष में वर्ग विन्यास और इसका महत्व।
हिन्दी वर्णमाला के सभी स्वरो और व्यंजनो को आठ वर्गो में क्रमानुसार बांटा गया है वो निम्नलिखित है, साथ में अवकहड़ा चक्र अनुसार नामाक्षर नक्षत्र चरण भी प्रस्तुत कर रहा हु :
गरुड़ वर्ग : अ, इ, ऊ, ए, ओ –- कृतिका 1,2,3,4, रोहिणी 1 ।
मार्जार वर्ग : क, ख, ग, घ, ङ –- मृगशिरा 3,4 आद्रा 1,2,3, पुनर्वसु 1,2 धनिष्ठा 1,2,3,4, शतभीषा 1, श्रवण 1,2,3,4।
सिंह वर्ग : च, छ, ज, झ, ञ –- अश्वनी 1,2,3, आद्रा 4, उत्तरा भादप्रद 3,4, रेवती 3,4 ।
श्वान वर्ग : ट, ठ, ड, ढ, ण – पुष्य 4, अश्लेषा 1,2,3,4, पूर्वा फाल्गुनी 2,3,4, उत्तरा फाल्गुनी 1,2, हस्त 3,4, पूर्वाषाढ़ 4 ।
सर्प वर्ग : त, थ, द, ध, न – स्वाति 4, विशाखा 1,2,3,4, अनुराधा 1,2,3,4, ज्येष्ठा 1, पूर्वाषाढ़ 2, पूर्वा भादप्रद 3,4, उत्तरा भादप्रद 1,2 रेवती 1,2 ।
मूषक वर्ग : प, फ, ब, भ, म – रोहिणी 2,3,4, मृगशिर 1,2, मघा 1,2,3,4, पूर्व फाल्गुनी 1, उत्तरा फाल्गुनी 3,4, हस्त 1, चित्रा 1,2, मूल 3,4, पूर्वाषाढ़ 1,3, उत्तराषाढ़ 1,2, (ब को व मानने के आधार पर) ।
मृग वर्ग : य, र, ल, व – अश्वनी 4, भरणी 1,2,3,4, रोहिणी 2,3,4, मृगशिर 1,2, चित्रा 3,4, स्वाति 1,2,3, ज्येष्ठा 2,3,4, मूल 1,2 ।
मेष वर्ग : श, ष, स, ह – पुनर्वसु 3,4, पुष्य 1,2,3, हस्त 2, शतभिषा 2,3,4, पूर्वा भादप्रद 1,2 (श को स मानने के आधार पर )
जिस क्रम से वर्ग निर्धारित किए गए है, प्रत्येक वर्ग से पाचवा वर्ग शत्रु वर्ग होता है :
गरुड़ और सर्प आपस में पारस्परिक शत्रु है ।
मार्जार और मूषक आपस में पारस्परिक शत्रु है ।
सिंह और मृग आपस में पारस्परिक शत्रु है ।
श्वान और मेष आपस में पारस्परिक शत्रु है ।
इसलिए जातक को अपनी नाम राशि के अनुसार वर्ग के पारस्परिक शत्रु वर्ग नामाक्षर नाम के जातक या शहर या कंपनी से बचना चाहिए ।
उदाहरण के तौर पर मेरा नाम “विजय” है जो ‘मृग’ वर्ग में आता है और मृग का शत्रु वर्ग ‘सिंह’ है जिस के अक्षर च, छ, ज, झ, ञ है । इन नाम के जातक जैसे ‘चन्द्रस्वामी’ , ‘चन्दन’ , ‘जावेद’ आधी से मुझे बचना चाहिए और इन नाम से शहर जैसे चंडीगढ़, चेन्नई , छतरपुर, झांसी आधी शहर में सफलता मिलने में परेशानी होगी । (अगर कोई नौकरी करता है तो इन शहर में न जाए ) । इन अक्षर की कंपनी ‘जिंदाल स्टील’, ‘जे के लक्ष्मी सीमेंट’, ‘चंबल पावर’, आधी नही जॉइन न करे।