गर्भिणीपीडा शमन और गर्भस्थ संतान की सुरक्षार्थ गर्भमासिकबलिदान विधा संकल्प - देशकालौ संकीर्त्य मम सापत्यगर्भिण्याः अमुकमासपीड़ोपशमनरक्षार्थं च गर्भमासदेवताप्रीत्यर्थं बलिदानं करिष्ये.... *(१)प्रथममास* - 15cm श्वेतवस्त्र, मिट्टी का कुम्भ ,कुल्हड और शरावपात्र चन्दनकाष्ठ, पायस, ताम्बूल-सुपारी । सभी सामग्री को कुम्भ पर शरावपात्र रखकर रखे , कुल्हड़ में दूधघृत रखे।सब सामग्री सहित कुम्भ लेकर गोशाला के नजदीक जमीनपर नीचे रख देवे। श्वेतपुष्पचन्दन और अक्षत द्वारा कुम्भ में " *प्रजापतये नमः बलिद्रव्याय नमः* " मन्त्र से पूजन करे, धूपबत्ती और दीपप्रदान करे तदनन्तर - हथेली में जल लेकर बलिदान मन्त्र पढे़ -- *एह्येहि भगवन् ब्रह्मन् प्रजाकर्तः प्रजापते। परिगृहाण च बलिं स्वस्यां रक्ष गर्भिणीम् ।।* *(२) द्वितीयमास* - श्वेतवस्त्र से वेष्टित मिट्टी का घडेपर शरावपात्र रखकर उसमें दध्योदन, पायस, भूनी खील, तिल का कूट रखकर गोशाला के समीप जमीनपर नीचे रखकर , श्वेतचन्दन,पुष्प,अक्षत से *"नासत्यदस्राभ्यां नमः बलिद्रव्याय नमः"* मन्त्र से अश्विनीकुमारों की पूजा करे, धूपबत्ती दीपक प्रदान करे , हथेली में जल लेकर बलिदान मन्त्र पढे ---> *भगवन्तौ प्रगृह्णीतां प्रभावन्तौ बलिं त्विमम् सरूपौ देवभिषजौ रक्षितां गर्भिणीमिमाम्।।* *(३) तृतीय (४)चतुर्थ मास-* ("बलिर्मासि तृतीये च प्रोक्तो सौ च चतुर्थके") - मिट्टी के घडे में श्वेतवस्त्र ,श्वेतचन्दन रखकर शरावपात्र से घडे का मूँह ढंक दे , शरावपात्र में घृतमिश्रभात, भूनी हुई खील रखकर सायंकाल समय ईशान कोणस्थ जलाशय के पास जमीनपर कुम्भ रखकर *"एकादशरुद्रेभ्यो नमः बलिद्रव्याय नमः"* मन्त्र से श्वेतचन्दन-चम्पा के पुष्प और अक्षत से पूजन करे, धूपदीप प्रदान करने के बाद हथेली में जल रखकर बलिमन्त्र पढे -- > *महादेव शिवो रुद्रः शंकरो निललोहितः। ईशानो विजयो भौमो देवदेवो भवोद्भवः।। कपाली शंभुरीशानो रुद्रैकादशमूर्तयः।। रुद्रा एकादश प्रोक्ताः प्रगृह्णीत बलिं त्विमम्। युष्माकं तेजसा वृद्ध्या नित्यं रक्ष्या तु गर्भिणी। युयमत्रैव बुद्ध्यातु नित्यं रक्षत गर्भिणीम्।।* *(५)पञ्चममास* - गोमय में से सूपारी की तरह आकृति बना ले, वाँस की टोकरी में कच्चा पक्का अन्न, कच्चे पक्के उड़ीद, पायस, शहद, द्राक्ष, गुड, दूध, विविध फल, महुए के पुष्प, कमल की नाल, मूलक, लड्डु, नारिकेल, कन्दमूल, सर्षप की वनस्पति, सातधान्य, भूनी खील, जौ के आटे का हलुआ, तिल का कूट, ईंख, इक्षुरस आदि रखकर नदी के पुल- पर्वताग्र- जमीनपर- वृक्ष की छाया के नीचे चौकोर मिट्टी की वेदी बनाकर वहाँ गोबर की आकृति रखकर उनके सामने सभी सामग्री से पूर्ण वांस की टोकरी रख दैं , कुमकुम, रक्तपुष्प, रक्ताक्षत से गोबर की प्रतिकृति में *"ह्रीं गणेशाय नमः बलिद्रव्याय नमः"* मन्त्र से पूजन कर धूपदीप अर्पण करे फिर हथेली में जल लेकर बलिदान मन्त्र पढ़े --> *एकदन्ताम्बिकापुत्र त्रिनेत्र गणनायक। रक्ताम्बरधर श्रीमन् रक्तमाल्यानुलेपन।। स्कन्दप्रिय महाबाहो पाशहस्त नमोऽस्तु ते। प्रगृह्णीष्व बलिं चेमां सापत्यां रक्ष गर्भिणीम्।। बलिप्रदायकं मर्त्यमायुषा चाभिवर्द्धय। अलक्ष्मीनामकं पापं मम सद्यो विनाशय।।* गर्भिणी गणेशजी को नमस्कार करते हुए प्रार्थना करे(येन मन्त्रेण गर्भिणी नमस्करोति स एष मन्त्रः)--> *वक्रतुण्ड महावीर्य महाभाग महाबल। शिरसात्वामहं वन्दे सापत्यां रक्ष मां सदा।। अयं बलिर्मया देव त्वदर्थे प्रतिपादितः। रक्षेमं शिशुमानन्दरूप शैलसुतात्मज।।* *(६)षष्ठे मासि* - जलपूर्णकुम्भ पर शरावपात्र रखकर उसमें घृतमिश्र भात, हरिद्राखंड, भूनी हुई खील, पायस आदि रखकर किसी भी नदी के तट पर रखकर *"वसुभ्यो नमः बलिद्रव्याय नमः"* मन्त्र से पीतपुष्प, पीत गन्ध, पीताक्षत से पूजन करे, धूपदीप प्रदान करके हथेली में जल रखे --> *प्रभासः पावकः सोमः प्रत्यूषो मारुतोऽनलः धरो ध्रुव इति ह्येते वसवोऽष्टौ प्रकीर्तिता।। प्रगृह्णन्तु बलिं चेमां सर्वे रक्षन्तु गर्भिणाम्।।* *(७)सप्तमे मासि* - छठे मास में जो बलिद्रव्य कहे हैं तदनुसार सब इकठ्ठे करके नदी के तट पर रखे *" स्कन्दाय नमः बलिद्रव्याय नमः"* मन्त्र से पीतगन्धाक्षतपुष्पो से पूजन करके हथेली में जल रखकर बलिप्रदान मन्त्र पढे --> *स्कन्द षण्मुख देवेश शिवप्रीतिविवर्धन । प्रगृह्णीष्व बलिं चेमां सापत्यां रक्ष गर्भिणीम्।।* *(८)अष्टम मास* - जलपूर्ण कुम्भपर शरावपात्र में गुडयुक्त पायस, भूनी हुई खील,तृण, भात, घृत,उड़ीद के पूडे , तिलमिश्रखीचडी, भैस के दूध से बना दहीं,कन्दमूल, मूली,उड़ीद, वल्लक(राजमाष),मूँग, सामा(श्यामाक) आदि रखकर नदी के तट-पर्वत-देवस्थान- तालाव अथवा किसी वृक्ष के नीचे रखकर *"दुर्गायै नमः बलिद्रव्याय नमः"* रक्तगंधपुष्पाक्षत से पूजन करे, धूपदीप प्रदान करे और हथेली में जल लेकर बलिप्रदान मन्त्र पढे-- *कात्यायनि महादेवि ज्येष्ठे वन्द्ये निशामये। दुर्गे देवि महाकालि सिंहशार्दूलवाहने।। धनुष्खड्गधरे देवि दूष्टदैत्यविनाशिनि। नदीशैलप्रिये देवि कुमारि सुलगे शिवे ।। अष्टहस्ते चतुर्वक्त्रे पिङ्गले शुकनासिके। प्रगृह्णीष्व बलिं चेमं सापत्यां रक्ष गर्भिणीम्।।* अत्यधिक पीडाप्रद हो तो महिषीदान करना चाहिए। *(९) नवममास* -श्वेतवस्त्रवेष्टित जलपूर्ण कुम्भपर शरावपात्र रखकर उसमें दध्योदन, भूनी हुई खील, बेसन के लड्डु, दहीं, तिलमिश्रखीचडी, रखकर चौराहेपर रखे *"मातृकाभ्यो नमः बलिद्रव्याय नमः"* मन्त्र से श्वेतचन्दन-श्वेतपुष्पाक्षत द्वारा मातृकाओं की पूजा करे , धूपदीप प्रदान कर हथेली में जल रखकर बलिप्रदान मन्त्र पढ़े -- *प्रगृह्णीत बलिं चेमं मया दत्तं च मातरः। यूयं रक्षन्तु संतुष्टाः सापत्यां गर्भिणीमिमाम्।।* *(विधानमालायां कर्मविपाक समुच्चय,क्रियाकाल गुणोत्तरे च )*
very nice article by Astro Ravi ji
बहुत अच्छा लेख
Very important and informative meaningful important articles
बहुत ही गूढ़ और ज्ञानवर्द्धक आर्टिकल
nice explain by astrologer