शास्त्रों के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद जिसे हम आप भाषा में भादो का महीना भी बोल देते हैं की अष्टमी तिथि को अर्द्धरात्रि में हुआ था। इन्हीं के जन्म की खुशियां मनाने के तौर पर इनके भक्त जिनमें बच्चों से लेकर युवा सभी गोविंदा बनकर जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी का आयोजन करते हैं। देश भर में जगह-जगह चौराहों पर दही और मक्खन से भरी मटकियां लटकाई जाती हैं और गोविंदाओं द्वारा मानव पिरामिड बनाकर एक-दूसरे के ऊपर चढ़कर इसे तोड़ा जाता है।
जैसे कि इनके भक्त जानते हैं बचपन से ही भगवान कृष्ण को दही और मक्खन काफ़ी पसंद था। वह अक्सर गोपियों की मटकियों से माखन चुराकर खाया करते थे। इनकी इन्हीं शरारतों से तंग आकर यशोदा मैय्या से उनकी शिकायत किया करती थीं। यशोदा मैय्या कान्हा को समझाती-बुझाती, लेकिन पर वो कहां बाज़ आते थे अपनी इन नटखट शरारतों से। तब गोपियां उनसे अपना दही मक्खन बचाने के लिए मटकियों और हांडियों को ऊंचाई पर टांग देती थीं। मगर कान्हा भी चतुराई से अपने दोस्तों के ऊपर चढ़कर मटकी में से सारा दही और मक्खन चुराकर खा जात थे। कई बार वह शरारत में दही से भरी मटकियां फोड़ भी देते थे। कहा जाता है कि कृष्ण की इसी नटखट शरारत को याद करते हुए दही हांडी का उत्सव मनाया जाता है।