*चैत्र नवरात्रि पर मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आएंगी* चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल से 17 अप्रैल तक। चैत्र महीना 26 मार्च से लेकर 23 अप्रैल हनुमान जयंती तक रहेगा चैत्र के महीने में बड़े और प्रमुख त्योहार भी आएंगे। शीतला सप्तमी, बसंत नवरात्र, नव संवत्सर, श्रीराम नवमी सहित हनुमान जन्मोत्सव दिवस भी होगा। अप्रैल महीने में सूर्य अपने उच्च राशि में प्रवेश करेगा। इन दिनों में वसंत ऋतु रहती है। पुराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्माजी ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की शुरुआत हुई थी। प्रत्येक 9 दिनों में मां दुर्गा की अलग-अलग स्वरूपों में पूजा होती है। इस बार नवरात्रि की शुरुआत सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग में हो रही है। इस वर्ष के प्रारंभ में पिंगल नाम संवत्सर रहेगा, लेकिन चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी शुक्रवार से 19 अप्रैल से कॉलयुक्त नामक संवत्सर का प्रवेश होगा।किंतु वर्षपर्यंत संकल्पादि में पिंगल संवत्सर का ही विनियोग करना चाहिए। नव संवत्सर का फल इस वर्ष का राजा मंगल तथा मंत्री शनि होगा। राजा तथा मंत्री में परस्पर मधुर संबंध नहीं है,अतः शासको में मतभेद की स्थिति बनी रहेगी। *नवरात्रि 9 दिन की* 1. प्रथम 9 अप्रैल, 8. अष्टमी 16 अप्रैल, 9. नवमी 17 अप्रैल, चैत्र नवरात्रि के दौरान घटस्थापना उत्तर या पूर्व दिशा की ओर करना चाहिए। शहर के धारूहेड़ा चुंगी स्थित ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य अजय शास्त्री के अनुसार घटस्थापना का मुहूर्त 9 अप्रैल प्रात: चल,लाभ,अमृत चौघड़िया 09:15 से 02:00 दोपहर तक तथा अभिजीत मुहूर्त 11:59 से 12:50 दोपहर तक।
वसन्ते च प्रकर्तव्यं तथैव प्रेमपूर्वकम् ।
द्वावृतू यमदंष्ट्राख्यौ नूनं सर्वजनेषु वै ।।
शरद्वसन्तनामानौ दुर्गमौ प्राणिनामिह ।
तस्माद्यत्नादिदं कार्यं सर्वत्र शुभमिच्छता ।।
वसन्तशरदावेव सर्वनाशकरावुभौ ।
तस्मात्तत्र प्रकर्तव्यं चण्डिकापूजनं बुधैः ।।
देवीभागवतपुराण ०३/२६/४-६
"*देवी भागवत पुराण में व्यासजी कहते हैं- वसंत ऋतु के नवरात्र में भी विधिपूर्वक (शरद काल के नवरात्रि की तरह) प्रेम पूर्वक व्रत एवं पूजा करनी चाहिए। समस्त प्राणियों के लिए शरद और वसन्त- दोनों ऋतुएँ यमदंष्ट्र नाम से कही गई है।
अतः कल्याण कामी पुरुष यत्नपूर्वक दुर्गार्चन में तत्पर हो जाय। इन ऋतुओं के आने पर विद्वानों को भगवती चण्डी की आराधना में संलग्न हो जाना चाहिये।
वसंत नवरात्र में दुर्गा आराधना श्रेष्ठकर है। नवरात्रि में दुर्गासप्तशती का पाठ, दुर्गा चालीसा, देवी मंत्र, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे, इस मंत्र का जप करने से सारी इच्छाओं की पूर्ति होती है। दुर्गा सप्तशती व्यास जी द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण से ली गई है इसमें 700 श्लोक व 13 अध्यायों का समावेश होने के कारण इसे सप्तशती का नाम दिया गया है। तंत्र शास्त्रों में इसका सर्वाधिक महत्व प्रतिपादित है और तांत्रिक क्रियाओं का इसके पाठ में बहुधा उपयोग होता है दुर्गा सप्तशती में 360 शक्तियों का वर्णन है। शास्त्री जी ने बताया है कि शक्ति पूजन के साथ भैरव पूजन भी अनिवार्य है। दुर्गा सप्तशती का हर मंत्र ब्रह्मवशिष्ठ विश्वामित्र ने साबित किया है, शापोद्धार के बिना पाठ का फल नहीं मिलता दुर्गासप्तशती के 6 अंगों सहित पाठ करना चाहिए। कवच,अर्गला,कीलक, और तीनों रहस्य महाकाली महालक्ष्मी और महासरस्वती का रहस्य बताया गया है। दुर्गा सप्तशती के चरित्र का क्रमानुसार पाठ करने से शत्रुनाश और लक्ष्मी कि प्राप्ति व सर्वदा विजय होती है, सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।