*अहोई अष्टमी आज संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है व्रत* यह पर्व हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को (अहोई अष्टमी) मनाई जाती है। इस बार यह "रविपुष्य योग" और "सर्वार्थसिद्धि योग" में 5 नवंबर रविवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन माताएं अपने अपने बच्चों की सुखी जीवन, खुशियां, लंबी उम्र और उनके जीवन में अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए पूरे दिन निर्जला का व्रत रखती हैं। शहर के "धारूहेड़ा चुंगी" स्थित "ज्योतिष कार्यालय" के ज्योतिषाचार्य अजय शास्त्री के अनुसार, यह व्रत वह महिला भी रखती हैं, जिन्हें अभी तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई है। इस दिन अहोई माता की पूजा करते हैं। शाम के समय व्रती तारों को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं। पूजा समय प्रदोषकाल में होता है,शाम 05:36 से 06:36 तक। *जानें पूजा की विधि* इस दिन महिलाएं व्रत का संकल्प करके संतान की मनोकामनाएं के लिए पूजा करती है। शाम के समय में घर की उत्तर या पूर्व दिशा में मुंह करके बैठ जाए फिर एक चौकी पर नया कपड़ा बिछाएं और उस पर अहोई माता की तस्वीर रखें। फिर पंचोपचार और षोडशोपचार से पूजन करें, अब अहोई माता को रोली चावल का टीका करें और भोग लगाएं। भोग के रूप में आठ पूड़ी और आठ मीठे मालपुए रखते हैं। वहीं पूजा के समय एक कटोरी में मां के सामने चावल, मूली और सिंघाड़े भी रखते हैं। फिर अहोई माता की कथा करें। दीपक जलाकर अहोई मां की आरती करें। फिर शाम के समय अर्घ्य देते। वहीं पूजा में शामिल भोग में लगी चीजों को ब्राह्मण को दान में दें,तारा दर्शन के बाद व्रत खोलती है। वहीं अहोई माता की तस्वीर को दिवाली तक लगा रहने दें।