रामचरित मानस में करोना वायरस के बारे में पूरा लेख

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करोना वायरस रामचरित मानस में विस्तार पूर्वक

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Astro Rakesh Periwal 20th Apr 2020

*कोरोना के चमगादड़ो से संवहन और इस संबंध में राम चरित मानस में वर्णित संदर्भो का उल्लेख करते हुए एक सुंदर पोस्ट अभी व्हाटसअप पर भेजी ,आप भी पढ़िए अदभुत जानकारी और अपनी संस्कृति और धर्म गर्न्थो पर गर्व करिए* 🙏🙏 *जिस भी मानस मर्मज्ञ ने यह अन्वेषण किया है वह धन्य है* 🙏🙏
*COVID-19* , *GOSWAMI TULSIDAS* and *SHRI RAMCHARIT MANAS interpretation.......*

"राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥ सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा॥
3॥" *इन दिनों COVID-19 की रोकथाम के विषय में मैंने काफी पढ़ा , कई वाइरोलोजी की पुस्तकों से और अन्य माध्यमो और अनुसंधानों से यह पता चला की यह महामारी चमगादडो से मनुष्यों में फैली है| यह ही पता चला कि इस वाइरस की रोकथाम तीन चीज़ों से की जा सकती है -* १. UV-C radiation
2. Soap water sanitization
3. heat near boiling point

*आज फैली इस महामारी के विषय में पढ़ते हुए दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण भी देखता रहा , बाद में अचानक ऐसी प्रेरणा हुई रामचरित मानस पढ़ी जाए , संयोगवश कहें या इश्वर अहैतुकी कृपा , जब रामचरित मानस को खोला तो उत्तरकाण्ड का दोहा १२० वाला पृष्ठ खुला पढना शुरू किया तो आश्चर्य चकित था* *गोस्वामी तुलसीदास जी इस महामारी के मूल स्रोत चमगादड के विषय में उत्तरकाण्ड दोहा १२० (14) में वर्षो पहले की बता गये थे जिससे सभी लोग आज दुखी है :-

* "सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं॥ सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दु:ख पावहिं सब लोगा॥

14॥" The fools who censure all, are reborn as bats. Note now, dear Garud, the diseases of the mind, from which everyone suffers.
इस महामारी के लक्षणों के बारे में वे आगे लिखते हैं जिसमे उन्होंने ये बता ही दिया है की इसमें कफ़ और खांसी बढ़ जायेगी और फेफड़ो में एक जाल या आवरण उत्पन्न होगा या कहें
lungs congestion जैसे लक्षण उत्पन्न हो जायेंगे , देखिये - "मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।। काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा।।

15|| Infatuation is the root of all ailments and from these again arise many other troubles. Lust is a counterpart of wind and inordinate greed corresponds to an abundance of phlegm; while anger represents bile, which constantly burns the breast.
गोस्वामी जी इसके आगे ये भी बताते हैं की इनसब के मिलने से "सन्निपात " या टाइफाइड फीवर होगा जिससे लोग बहुत दुःख पायेंगे - प्रीति करहिं जौं तीनिउ भाई। उपजइ सन्यपात दुखदाई।। बिषय मनोरथ दुर्गम नाना। ते सब सूल नाम को जाना।

।16|| When all these three combine, there results what is known as Sannipåta (a derangement of the aforesaid three humours of the body, causing fever which is of a dangerous type).
जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका। कहँ लागि कहौं कुरोग अनेका।।

19|| Thirst for enjoyment represents the most advanced type of dropsy; while the three types of craving (those for progeny, riches and honour) correspond to the violent quartan ague. Jealousy and thoughtlessness are the two types of fever. There are many more fell diseases, too numerous to mention. "quartan ague" shows the symptoms of maleria ....
आज शायद यही कारण है की "Hydroxychloroquine" जो की मलेरिया की दवा है इसका प्रयोग सभी लोग करने लग गए हैं ... और इसके आगे लिखते हैं : "एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि। पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि॥

121 क॥" People die even of one disease; while I have spoken of many incurable diseases which constantly torment the soul. How, then, can it find peace?
जब ऐसी एक बीमारी की वजह से लोग मरने लगेंगे , ऐसी अनेको बिमारियां आने को हैं ऐसे में आपको कैसे शान्ति मिल पाएगी ??? "नेम धर्म आचार तप ग्यान जग्य जप दान। भेषज पुनि कोटिन्ह नहिं रोग जाहिं हरिजान॥

121 ख॥" नियम, धर्म, आचार (उत्तम आचरण), तप, ज्ञान, यज्ञ, जप, दान तथा और भी करोड़ों औषधियाँ हैं, परंतु इन सब से ये रोग जाने वाले नहीं है....
There are sacred vows and religious observances and practices, austere penance, spiritual wisdom, sacrifices, Japa (muttering of prayers), charity and myriads of other remedies too; but the maladies just enumerated do not yield to these, O mount of ›r∂ Hari. (121 A-B)

इन सब के परिणाम स्वरुप क्या होगा गोस्वामी जी लिखते हैं :- एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी॥ मानस रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब कें लखि बिरलेन्ह पाए॥1॥ इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व के जीव जीव रोग ग्रस्त हो जायेंगे , जो शोक, हर्ष, भय, प्रीति और अपनों के वियोग के कारण और दुखी होते जायेंगे । गोस्वामी जी किहते हैं की मैंने ये थो़ड़े से मानस रोग कहे हैं। ये हैं तो सबको, परंतु इन्हें जान पाए हैं कोई विरले ही॥1॥यानि सबी में थोडा बहुत तो सभी में होगा पर बहुत कम लोगों को ही ठीक से detect भी हो पायेगा ...
Thus every creature in this world is ailing and is further afflicted with grief and joy, fear, love and desolation. I have mentioned only a few diseases of the mind; although everyone is suffering from them, few are able to detect them.
आज हम देख की रहे हैं की इस जगत की बड़ी बड़ी हस्तियाँ भी इस रोग से ग्रसित होती जा रही है , इसमें आम लोगों की बात ही क्या की जाए ..इस विषय के बारे में भी गोस्वामी जी ने पहले से लिख दिया था - जाने ते छीजहिं कछु पापी। नास न पावहिं जन परितापी।। बिषय कुपथ्य पाइ अंकुरे। मुनिहु हृदयँ का नर बापुरे।। प्राणियों को जलाने वाले ये पापी (रोग) जान लिए जाने से कुछ क्षीण अवश्य हो जाते हैं, परंतु नाश को नहीं प्राप्त होते। विषय रूप कुपथ्य पाकर ये मुनियों के हृदय में भी अंकुरित हो उठते हैं, तब बेचारे साधारण मनुष्य तो क्या चीज हैं
॥2॥ These wretches, the plague of mankind, diminish to a certain extent on being detected, but are not completely destroyed. Fed by the unwholesome diet of sensuality they sprout even in the mind of sages, to say nothing of poor mortals

यानी रोग पहचान लिए जाने पर या रोग के लक्षणों द्वारा रोग की पुष्टि हो जाने पर उन लक्षणों का इलाज किये ज हम यदि देखे तो चाइना में जो लोग ठीक हो कर घर चले गये उनमे भी कुछ दिनों बाद पुनः इस रोग के होने की पुष्टि हुई वो भी कईयों को तो बिना लक्षणों के .... अब सभी ये जानना चाहेंगे की इससे महामारी से हमे मुक्ति कैसे मिलेगी -- तो इस विषय पर गोस्वामी जी लिखते हैं - "राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥ सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा

॥3॥" रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी॥ एहि बिधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहिं त जतन कोटि नहिं जाहीं

॥4॥ All these ailments can no doubt be eradicated if by Shri Rama's grace If the following factors combine. 1. There must be faith in the words of the physician in the form of a true preceptor; and 2. The regimen is indifference to the pleasures of sense. Devotion to the Lord of the Raghus is the life-giving herb (to be used as a recipe); while a devout mind serves as the vehicle in which it is taken. By this process the ailments can certainly be eradicated; otherwise all our efforts will fail to get rid of them. The यदि श्रीराम जी की कृपा से इस प्रकार का संयोग बन जाए तो ये सब रोग नष्ट हो जाएँ। सद्गुरु रूपी वैद्य के वचन में विश्वास हो। विषयों की आशा न करे, यही संयम (परहेज) हो

॥3॥ *श्री रघुनाथजी की भक्ति संजीवनी जड़ी है। श्रद्धा से पूर्ण बुद्धि ही अनुपान (दवा के साथ लिया जाने वाला मधु आदि) है। इस प्रकार का संयोग हो तो वे रोग भले ही नष्ट हो जाएँ, नहीं तो करोड़ों प्रयत्नों से भी नहीं जाते॥4॥* "जय श्री राम " https://play.google.com/store/apps/details?id=futurestudyonline.vedicjyotishvidyapeeth&hl=en 💐🙏


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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