घनी (अमीर )वनने का स्वप्न

Share

Acharya Rajesh Acharya Rajesh 28th Jul 2019

यह पोस्ट उन मित्रों के लिए जो  ज्योतिष सीख रहे हैं पोस्ट को पढ़ कर शेयर करें ताकि दुसरे भी लाभ ले सकें

घनी(अमीर )बनने का स्वप्न

जीवन स्वप्न के रूप मे ही समझा बेहतर होता है लोग अपने अपने अनुसार स्वप्न बुना करते है और उन स्वप्नो को पूरा करने के लिये अपनी अपनी युक्तियां लगाया करते है उद्देश्य केवल चार ही होते है जो पुरुषार्थ के रूप मे माना जाता है,धर्म अर्थ काम और मोक्ष यही चार पुरुषार्थ है। धर्म की तरफ़ जाने से जातक अपने आप को आगे दुनिया मे दिखाना चाहता है,वह दिखावा भले ही शरीर की बनावट से हो या शरीर के द्वारा किये जाने वाले करतबो से हो वह चाहे शरीर की विशेष क्रिया के द्वारा भगवान के प्रति अपने को दिखाना चाहता हो या वह अपने को खुद ही ईश्वर बनाकर दिखाने की चेष्टा मे हो। अर्थ के मामले मे जातक अपने को अधिक से अधिक धनी बनाने के लिये युक्तियां बनाया करता हो या अपने को हर प्रकार का साधन धन से प्राप्त करने की योजना मे लगा रहता हो,चमक दमक से अपने जीवन को सभी के सामने प्रस्तुत करने के लिये भी आर्थिक रूप से बढावा देने के लिये माना जाता हो,इसी प्रकार से काम नाम के पुरुषार्थ की बढोत्तरी के लिये वह लोगो से अपने कार्यों को सिद्ध करने की कला को प्रस्तुत करना जानता हो अपने साथ समाज को भी साथ लेकर चलने के लिये अपनी योजनाओ को बनाया करता हो या अकेले मे अपने जीवन साथी और पुत्र पुत्री आदि सन्तान के रूप मे अपने आप को आगे बढाने के लिये प्रयास रत हो आदि बाते काम नामक पुरुषार्थ की श्रेणी मे आती है इसी प्रकार से जब व्यक्ति इन तीनो प्रकार के पुरुषार्थो को या तो प्राप्त कर चुका हो या उनके प्रति लगाव खत्म हो गया हो अथवा इतना भोग लिया हो कि वह बुरा लगने लगा हो या फ़िर अपने परिवार समाज या रीति रिवाज घर परिवार मे वह किसी बात से हमेशा ही तरसता रहा हो इसी के नाम को मोक्ष का प्रकार का कहा जाता है। मोक्ष का मतलब होता है सन्तुष्ट हो जाना,घनु लग्न की कुंडली हैं इस कुंडली में चौथा आठवा और बारहवा भाव जीवन की संतुष्टि के लिये की जाने वाली इच्छाओं के लिये माना गया है।धनु लगन है,लगनेश गुरु चौथे भाव मे है,गुरु का पंचम नवम योग राहु से अष्टम भाव मे है और जातक का बारहवा भाव खाली है। जातक का यह त्रिकोण पूरा नही है केवल चन्द्रमा से इस त्रिकोण को महिने मे सवा दो दिन के लिये पूरा किया जाता है,यह कारण जातक की इच्छा की तृप्ति के लिये अपनी कमी को बता रहा है।इच्छा की तृप्ति क्यों पैदा हो रही है इस बात को जानने के लिये जातक के दादा पिता माता नाना आदि की इच्छाओं की तृप्ति के लिये भी देखना जरूरी है जातक के किस सम्बन्धी की इच्छा की तृप्ति हो रही है,इस बात का विवेचन इसलिये जरूरी होता है क्योंकि जातक को इच्छाओं की तृप्ति के लिये सोच केवल अपने परिवार से ही प्राप्त हुयी होती है वह अलग से लेकर नही आता है। दादा के लिये जातक के राहु को देखेंगे,राहु के बारहवे भाव मे शुक्र है,राहु के चौथे भाव मे मंगल वक्री है,राहु का अष्टम भाव खाली है,इसका मतलब है कि दादा की उन्नति के कारण उनके पिता थे और शादी के बाद दादा के जीवन को उनकी पत्नी यानी दादी ने सम्भाल लिया था (बारहवा शुक्र).दादा की मानसिक इच्छा एक व्यवसायिक स्थान बनाने की थी लेकिन वह व्यवसायिक स्थान निर्माण मे अधूरा रह गया (वक्री मंगल तुला राशि का),जातक के दादा मे रिस्क लेने जोखिम लेने पूर्वजो के ऊपर ही अपने को निर्भर करने जितना कमाना और उतना ही खर्च लेना की आदत से उनकी इच्छायें पूरी नही हो पायीं (राहु से अष्टम भाव खाली कुम्भ राशि). पिता के लिये देखने के लिये सूर्य की स्थिति को देखते है,सूर्य से बारहवे भाव मे गुरु है सूर्य से चौथे भाव मे राहु है और सूर्य से अष्टम में कोई भी ग्रह नही है,इस प्रकार से जातक के पिताजी तीन भाई और तीन भाइयों मे जातक के पिता का स्थान बडप्पन के स्थान मे होने से तथा जातक के पिता के द्वारा अपने परिवार का पालन पोषण शिक्षा विवाह शादी आदि करने मे अपने धन को लगाया गया,चौथे भाव मे राहु के होने से जो भी कमाया गया वह किसी न किसी कारण से आक्समिक रूप से खर्च कर दिया गया और अपने नाम को कमाने के चक्कर मे या सामाजिक मर्यादा को दिखाने के चक्कर मे सयंत नही रखा गया,पिता का भी अष्टम खाली होने के कारण पिता मे भी जोखिम लेने की आदत नही थी जो भी हो रहा है सीधे से होने और सीधे से चलने मे ही विश्वास था। जातक की माता के लिये देखते है तो चन्द्रमा के चौथे भाव मे गुरु है,जातक की माता पूजा पाठ धर्म कर्म आदि से पूर्ण थी और अपने घर मे ही सामाजिक संगठन आदि के लिये अपने अनुसार कार्य करती थी उनका ध्यान धर्म संस्कृति और लोगो के साथ उच्चता मे जाने का था बडे समुदाय के रूप मे उन्होने भी अपने पति के परिवार के लिये कार्यों मे योगदान दिया,तीन लोगो की परवरिस और उन्हे आगे बढाने की योग्यता प्रदान की,माता के अष्टम मे राहु होने से जातक की माता को अक्समात रिस्क लेने की आदत थी वह किसी भी प्रकार से अपने को सोच विचार कर कार्य करने के लिये नही जाना जाता है,सभी कुछ सामने होने के बाद भी वह केवल आकस्मिक सोच के कारण नही प्राप्त कर पायीं। यही बात जातक के नाना के लिये देखने पर केतु से बारहवे भाव मे चन्द्रमा के होने से जातक के नाना का प्रभाव धर्म और पराशक्तियों की सहायता से अच्छा था वे बडे धार्मिक स्थानो और धार्मिक लोगो के लिये अपने विचार सही रखते थे लेकिन उनके चौथे भाव मे सूर्य बुध शनि के होने से जातक के नाना के पास घर मे वही काम थे जो सुबह शाम किये जाते है और अक्सर उनके पास केवल पिता के दिये गये कार्य और सरकार आदि से मिलने वाली मामूली सहायता को ही माना जा सकता है उन्होने भी अपनी तीन सन्तानो को आगे बढाने पढाने लिखाने मे खर्च किया,केतु से अष्टम भाव खाली होने से भी जातक के नाना को भी रिस्क लेने और जोखिम लेने की आदत नही थी इस कारण से वे भी अतृप्त रह गये।


इस प्रकार से जातक के लिये भी जातक की माता की तरह से ही बारहवे भाव के त्रिकोण को पूरा करने के लिये किये जाने वाले खर्चे जीवन को संयत बनाने के लिये आहार विहार और जो भी आकस्मिक प्राप्त होता है उसे छठे भाव को भरने के लिये जमा करने और रोजाना के कार्यों मे सोचने से अधिक कार्य करने अपने जीवन को खाने पीने और दोस्त आदि के लिये कार्य करने कमन्यूकेशन के साधनो को केवल काम तक ही सीमित करने के लिये अक्समात ही बीमार आदि होने से बचने के लिये अन्जान स्थान के रिस्क लेने वाले कारण अथवा गुपचुप रूप से शिक्षा वाले समय को गंवाने आदि के लिये माना जा सकता है। अगर जातक अष्टम राहु का उपयोग उसी प्रकार से करे जैसे बिजली को प्रयोग करने के लिये उसके उपयोग को जानना,अगर जातक अपने द्वारा किये जाने वाले खर्चो से अपने को संभाल कर रखे तो जातक को धनी बनाने से कोई नही रोक सकता है। मित्रों अगर आप अपनी कुंडली दिखाकर उपाय चाहते हैं तो ही आप संपर्क करें  आप future study के किसी भी ज्योतिषी से सम्पर्क कर लाभ ले सकते हैं


Like (0)

Comments

Post

Latest Posts

यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

Top