कुंडली में अकाल मृत्यु के योग एवं निवारण

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Astro Guru Shri Om Pareek 06th Nov 2019

कुंडली में अकाल मृत्यु के योग एवं निवारण कुंडली में अकाल मृत्यु के योग एवं निवारण मौत का नाम सुनते ही शरीर में अचानक सिहरन दौड़ जाती है। मृत्यु एक अटल सत्य है, जिसे कोई बदल नहीं सकता। कब, किस कारण से, किस की मौत होगी, यह कोई भी नहीं कह सकता। कुछ लोगों की अल्पायु में ही मौत हो जाती है। ऐसी मौत को अकाल मृत्यु कहते हैं। जातक की कुंडली के आधार पर अकाल मृत्यु के संबंध में जाना जा सकता है।
1- लग्नेश तथा मंगल की युति छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो जातक को शस्त्र से घाव होता है। इसी प्रकार का फल इन भावों में शनि और मंगल के होने से मिलता है।
2- यदि मंगल जन्मपत्रिका में द्वितीय भाव, सप्तम भाव अथवा अष्टम भाव में स्थित हो और उस पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक की मृत्यु आग से होती है।
3- लग्न, द्वितीय भाव तथा बारहवें भाव में क्रूर ग्रह की स्थिति हत्या का कारण बनती है।
4- दशम भाव की नवांश राशि का स्वामी राहु अथवा केतु के साथ स्थित हो तो जातक की मृत्यु अस्वभाविक होती है।
5- यदि जातक की कुंडली के लग्न में मंगल स्थित हो और उस पर सूर्य या शनि की अथवा दोनों की दृष्टि हो तो दुर्घटना में मृत्यु होने की आशंका रहती है।
6- राहु-मंगल की युति अथवा दोनों का समसप्तक होकर एक-दूसरे से दृष्ट होना भी दुर्घटना का कारण हो सकता है।
7- षष्ठ भाव का स्वामी पापग्रह से युक्त होकर षष्ठ अथवा अष्टम भाव में हो तो दुर्घटना होने का भय रहता है। अष्टम भाव और लग्न भाव के स्वामी बलहीन हो और मंगल ६ घर के साथ बैठा हो तो ये योग बनता है |
. क्षीण चन्द्र ८ भाव में हो तो भी योग बनता है या लग्न में शनि हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तथा उसके साथ सूर्य, चन्द्र , या सूर्य राहू हो तो भी योग बनता है |. ऐसे योंगों में मृत्यु के निम्न कारण होते है जैसे- १– शस्त्र से , २- विष से, ३- फांसी लगाने से , आग में जलने से , पानी में डूबने से या मोटर -वाहन दुर्घटना से |.
1- यदि जातक की कुंडली के लग्न में मंगल स्थित हो और उस पर सूर्य या शनि की अथवा दोनों की दृष्टि हो तो दुर्घटना में मृत्यु होने की आशंका रहती है।
2- राहु-मंगल की युति अथवा दोनों का समसप्तक होकर एक-दूसरे से दृष्ट होना भी दुर्घटना का कारण हो सकता है।
3- षष्ठ भाव का स्वामी पापग्रह से युक्त होकर षष्ठ अथवा अष्टम भाव में हो तो दुर्घटना होने का भय रहता है।
4- लग्न, द्वितीय भाव तथा बारहवें भाव में क्रूर ग्रह की स्थिति हत्या का कारण बनती है।
5- दशम भाव की नवांश राशि का स्वामी राहु अथवा केतु के साथ स्थित हो तो जातक की मृत्यु अस्वभाविक होती है।
6- लग्नेश तथा मंगल की युति छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो जातक क शस्त्र से घाव होता है। इसी प्रकार का फल इन भावों में शनि और मंगल के होने से मिलता है।
7- यदि मंगल जन्मपत्रिका में द्वितीय भाव, सप्तम भाव अथवा अष्टम भाव में स्थित हो और उस पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक की मृत्यु आग से होती है।
निवारण – लग्नेश को मजबूत करे उपाय के द्वारा और रत्ना के द्वारा और इसके बाद भी यदि दुर्घटना होती है तो सर महाम्रिन्त्युन्जय का जाप या मृत्संजनी का जाप ही ऐसे जातक को बचा सकता है उदारहण के लिए श्रीमती इंदिरा गाँधी के कुंडली देखे जिनके लग्न में कर्क राशी का शनि है और ६ भाव में राहू और शुक्र …और लग्न का स्वामी चन्द्र ७ भाव में है.. क्या आप दीर्घायु होना चाहते है तो निम्न मंत्रो का ११ बार जाप करें और चमत्कार अपने आप देख्ने… ” अश्वथामा बलीर व्यासो हनुमानाश च विभिशाना कृपाचार्य च परशुरामम सप्तैता चिरंजीवानाम ” १ अस्वधामा २- राजा बलि ३ व्यास ऋषि , ४-अनजानी नंदन श्री राम भक्त हनुमान ५- लंका के राजा विभीषण ६- महा तपश्वी परशुराम , ७- क्रिपाचार्य .. ये सात नाम है जो अजर अमर है और आज भी पृथ्वी पर विराजमान है… अद्भुत कवच: सफलता का मंत्र, समस्याओं का निदान- बग्लामुखी कवच :— यह समय घोर प्रतिस्पर्धा का है। आज व्यक्ति खुद के दुखों से ज्यादा दूसरों के सुख से दु:खी है। ऎसे में मनुष्य के कई शत्रु बन जाते हैं। दूसरों से आगे निकलने की होड में व्यक्ति एक-दूसरे का दुश्मन बनता चला जाता है। यहां तक की तांत्रिक प्रयोग करवाने से भी नहीं चूकते। इसलिए हमारे ग्रन्थों में शत्रुबाधा, मुकदमा, कलह, डर इत्यादि से रक्षा करने के लिए बग्लामुखी कवच धारण करना बताया गया है। बग्लामुखी कवच धारण करने के बाद व्यक्ति पर शत्रु द्वारा किया गए सभी तांत्रिक प्रयोग विफल हो जाते हैं। इस कवच को धारण करने से शत्रु भय दूर होता है व मुकदमों में विजय होती है। अभेद्य महामृत्युंजय कवच : —जब जन्म कुंडली में मृत्यु का योग न हो लेकिन फिर भी व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो जाए तो इसे अकाल मृत्यु कहा जाता है। हर समय किसी अनहोनी का डर लगा रहता है। इन्हीं कारणों से बचाव के लिए मां भगवती ने भगवान शिव से पूछा कि प्रभू अकाल मृत्यु से रक्षा करने और सभी प्रकार के अशुभों से रक्षा का कोई उपाय बताइए। तब भगवान शिव ने महामृत्युंजय कवच के बारे में बताया। महामृंत्युजय कवच को धारण करके मनुष्य सभी प्रकार के अशुभो से बच सकता है और अकाल मृत्यु को भी टाल सकता है। सर्वजन वशीकरण कवच : —आकर्षण, व्यक्तित्व, मधुरता, मोहकता ये सब शब्द किसी भी व्यक्ति विशेष के लिए बहुत मायने रखते हैं। आज के युग में हमें कई लोगों से मिलना पडता है जिसमें पुरूष, स्त्री, अधिकारी व अन्य तरह के लोग होते हैं। उन सब पर प्रभाव जमाने के लिए आवश्यक है कि हमारे व्यक्तित्व में कोई विशेष बात हो या हमारे चेहरे पर चुम्बकीय आर्कषण हो जिसे देखते ही सामने वाला प्रभावित हो जाए। सर्वजन वशीकरण कवच धारण करके आप महसूस करेंगे कि आपके व्यक्तित्व में एक अनोखा आर्कषण आ जाएगा। इसे धारण करने के बाद आप आर्कषण, शांति और सुकून महसूस करेंगे। साथ ही अपने आर्कषक व्यक्तित्व का परिणाम भी देखेंगे।
सौंदर्य कवच :— हर स्त्री की सदैव यही सोच बनी रहती है कि उसमें यौवन, रूप लावण्य, आर्कषण सदैव बना रहे। लेकिन कई लडकियों में विवाह योग्य उम्र हो जाने के बाद भी यौवन, रूप लावण्यता नहीं रहती है। ब्यूटी पार्लर अथवा सौंदर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल करके बढती उम्र को छुपाने की कोशिश की जाती है। तंत्र में ऎसी औरते अनंग मरू साधना द्वारा काम संतुष्टी प्राप्त कर सकती हैं। लेकिन जो औरते नौकरी या व्यवसाय में है अथवा जो मंत्र जाप या पूजा नहीं कर सकती वे सौंदर्य कवच को धारण कर अपने जीवन में यौवन व रूप लावण्यता प्राप्त कर सकती हैं। इस कवच को धारण करने से शारीरिक ही नहीं अपितु आत्मिक सुंदरता का भी विकास होता है। अकाल मृत्यु का भय नाश करतें हैं महामृत्युञ्जय—– ग्रहों के द्वारा पिड़ीत आम जन मानस को मुक्ती आसानी से मिल सकती है। सोमवार के व्रत में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं। सोमवार, सोलह सोमवार और सौम्य प्रदोष। इस व्रत को सावन माह में आरंभ करना शुभ माना जाता है। सावन में शिवशंकर की पूजा :—– सावन के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है। क्यों किया जाता है महादेव का अभिषेक ???? महादेव का अभिषेक करने के पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने के बाद जब महादेव इस विष का पान करते हैं तो वह मूर्चि्छत हो जाते हैं। उनकी दशा देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं और उन्हें होश में लाने के लिए निकट में जो चीजें उपलब्ध होती हैं, उनसे महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर तमाम उन चीजों से महादेव का अभिषेक किया जाता है। ‘मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये’ इसके पश्चात निम्न मंत्र से ध्यान करें- ‘ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्। पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥ ध्यान के पश्चात ‘ऊँ नम: शिवाय’ से शिवजी का तथा ‘ऊँ नम: शिवायै’ के अलावा जन साधारण को महामृत्युञ्जय मंत्र का जप करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है । अत: शिव-पार्वती जी का षोडशोपचार पूजन कर राशियों के अनुसार दिये मंत्र से अलग-अलग प्रकार से पुष्प अर्पित करें। राशियों के अनुसार क्या चढ़ावें भगवान शिव को..???? भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और समीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 88 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है। मेष:-ऊँ ह्रौं जूं स:, इस त्र्यक्षरी महामृत्युछञ्जय मंत्र बोलते हुए11 बेलपत्र चढ़ावें। वृषभ:- ऊँ शशीशेषराय नम: इस मंत्र से 84 शमीपत्र चढ़ावें। मिथुन:- ऊँ महा कालेश्वराय नम: (बेलपत्र 51)। कर्क:- ऊँ त्र्यम्बकाय नम: (नील कमल 61)। सिंह:- ऊँ व्योमाय पाय्र्याय नम: (मंदार पुष्प 108) कन्या:- ऊँ नम: कैलाश वासिने नंदिकेश्वराय नम:(शमी पत्र 41) तुला:- ऊँ शशिमौलिने नम: (बेलपत्र 81) वृश्चिक: ऊँ महाकालेश्वराय नम: ( नील कमल 11 फूल) धनु:- ऊँ कपालिक भैरवाय नम: (जंवाफूल कनेर108) मकर:- ऊँ भव्याय मयोभवाय नम: (गन्ना रस और बेल पत्र 108) कुम्भ:- ऊँ कृत्सनाय नम: (शमी पत्र 108) मीन:- पिंङगलाय नम: (बेलपत्र में पीला चंदन से राम नाम लिख कर 108) सावन सोमवार व्रत नियमित रूप से करने पर भगवान शिव तथा देवी पार्वती की अनुकम्पा बनी रहती है।जीवन धन-धान्य से भर जाता है। सभी अनिष्टों का भगवान शिव हरण कर भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं।


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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