मेष राशि के जातक का गुण स्वरूप के विषय में जानकारी दे रहा हूं पसंद आए तो अपना कमेंट दें । हमारे आस-पास जो ज्योतिष का परिचय मिलता है हम उससे दुःखी हैं इसलिए हमेशा शास्त्रों की बात करते हैं हम सभी समान रूप से जिम्मेदार हैं जो इस बात को बढ़ावा देते हैं कि मन में उपजे बातों से या सुनी-सुनायी बातों से ज्योतिष चलता है तो गलत है । हम जैसे ज्योतिषियों को नित्य कुछ न कुछ पढ़ना चाहिए और उसी से अपने जीवन में रोशनी लाना चाहिए साथ ही दुसरे को रोशनी प्रदान करना चाहिए ।
आइये समझते हैं होरा पराशर में मेष राशि के विषय में क्या लिखा है -
रक्तवर्णो बृहदगात्रश्चतुष्पाद्रात्रिविक्रमी ।
पूर्ववासी नृपज्ञातिः शैलचारी रजोगुणी ।
पृष्ठोदयी पावकी च मेषराशिः कुधिपः ।।
मेष राशि के विषय में बताया जा रहा है कितना आसान है एक ही श्लोक में बहुत कुछ -..........
रक्तवर्ण, लंबाकद, चतुष्पद, पर्व दिशा में निवास, क्षत्रिय, पर्वताचारी, रजोगुणी, पृष्ठोदयी, अग्नि तत्त्व के स्वामी मेष हैं और इनका स्वामी मंगल है ।
भेड़ या मेढ़ा भी कहा जाता है, भेड़ के चार पैर होते हैं इसलिए चतुष्पद कहा गया है अपवाद छोड़ दिया जाय तो चतुष्पद और कीट राशि पृष्ठोदयी होते हैं, पर्वत पर विचरण करने वाले कहे गये हैं ।
चर प्रकृति के धनी, अग्नि तत्व और रजोगुणी स्वभाव जातक को कितना पराक्रमी, समझदार के साथ-साथ उग्र प्रकृति का बनाता है । कालपुरूष के लग्न की राशि मेष ही है इसी को आधार मानकर कालपुरूष के आधार पर प्रत्येक भावों का स्वामी सभी जातक के लिए विशेष स्थान रखता है ।
आप सभी समझ रहे होंगे न केवल राशि से जातक के गुण स्वरूप का पता चलता है बल्कि उसके कार्य करने की क्षमता, क्षेत्र और बहुत कुछ आप जान सकते हैं ।
लग्न की राशि हो तो विशेष रूप से शारीरिक संरचना इसी के आधार पर होगी और यदि चन्द्रमा मेष राशि में हो तो जो गुण उपर बताए गए हैं उसकी व्याख्या कर आप समझ सकेंगे कि मानसिक स्थिति कैसी होगी । जातक के सोचने, समझने के साथ-साथ कार्य को करने की प्रवृत्ति के उपर मेष का प्रभाव व्याप्त होगा ।
धन्यवाद !ं