कुंडली के बारह भावों का फल

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कुंडली के बारह भावों का फल

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Astro Manish Tripathi 27th Jun 2020

🌻🌻🌻🌞🌞🌻🌻 जन्म कुंडली के 12 भावों के नाम स्वरूप और कार्य। शास्त्रों में 12 भावों के स्वरूप हैं और भावों के नाम के अनुसार ही इनका काम होता है। पहला भाव तन, दूसरा धन, तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ, पंचम पुत्र, छठा अरि, सप्तम जाया, आठवाँ आयु, नवम धर्म, दशम कर्म, एकादश आय और द्वादश व्यय भाव कहलाता है़। प्रथम भाव : इसे लग्न कहते हैं। अन्य कुछ नाम ये भी हैं : हीरा, तनु, केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, प्रथम। इस भाव से मुख्यत: जातक का शरीर, मुख, मस्तक, केश, आयु, योग्यता, तेज, आरोग्य आदि विषयों का पता चलता है। द्वितीय भाव : यह धन भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं, पणफर, द्वितीय। इससे कुटुंब-परिवार, दायीं आंख, वाणी, विद्या, बहुमूल्य सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि विषयों का पता चलता है। तृतीय भाव : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है। इसे भातृ भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं आपोक्लिम, उपचय, तृतीय। इस भाव से भाई-बहन, दायां कान, लघु यात्राएं, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, नौकर-चाकर, भाई बहनों से संबंध, पडौसी, लेखन-प्रकाशन आदि विषयों का पता चलता है। चतुर्थ भाव : यह सुख भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुष्टय। इस भाव से माता, जन्म समय की परिस्थिति, दत्तक पुत्र, हृदय, छाती, पति-पत्नी की विधि यानी कानूनी मामले, चल सम्पति, गृह-निर्माण, वाहन सुख आदि विषयों का पता चलता है। पंचम भाव : यह सुत अथवा संतान भाव भी कहलाता है। अन्य नाम है-त्रिकोण, पणफर, पंचम। इस भाव से संतान अर्थात् पुत्र। पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या, प्रतिष्ठा आदि विषयों का पता चलता है। षष्ट भाव : इसे रिपुभाव कहते हैं। अन्य नाम हैं रोग भाव, आपोक्लिम, उपचय, त्रिक, षष्ट। इस भाव से मुख्यत: शत्रु, रोग, मामा, जय-पराजय, भूत, बंधन, विष प्रयोग, क्रूर कर्म आदि विषयों का पता चलता है। सप्तम भाव : यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं-केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, सप्तम। इस भाव से पति अथवा पत्नी, विवाह संबंध, विषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यभिचार, आंतों, साझेदारी के व्यापार आदि विषयों का पता चलता है। अष्टम भाव : इसे मृत्यु भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं-लय स्थान, पणफर, त्रिक, अष्टम। आठवें भाव से आयु, मृत्यु का कारण, दु:ख-संकट, मानसिक पीड़ा, आर्थिक क्षति, भाग्य हानि, गुप्तांग के रोगों, आकस्मिक धन लाभ आदि विषयों का पता चलता है। नवम भाव : इसे भाग्य भाव कहलाता हैं। अन्य नाम हैं त्रिकोण और नवम। भाग्य, धर्म पर आस्था, गुरू, पिता, पूर्व जन्म के पुण्य-पाप, शुद्धाचरण, यश, ऐश्वर्य, वैराग्य आदि विषयों का पता चलता है। दशम भाव : यह कर्म भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुष्टय-उपचय, राज्य, दशम। दशम भाव से कर्म, नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीविका, यश, सम्मान, राज-सम्मान, राजनीतिक विषय, पदाधिकार, पितृ धन, दीर्घ यात्राएं, सुख आदि विषयों का पता चलता है। एकादश भाव : यह भाव आय भाव भी कहलाता है। अन्य नाम हैं- पणफर, उपचय, लब्धि, एकादश। इस भाव से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु आदि विषयों का पता चलता है। द्वादश भाव : यह व्यय भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- अंतिम, आपोक्लिम, एवं द्वादश। इस भाव से धन व्यय, बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश, दैवी आपत्तियां, दुर्घटना, मृत्यु के उपरान्त की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य, राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्म-हत्या, एवं मोक्ष आदि विषयों का पता चलता है। आइए इनके बारे में विस्तार से जानें: प्रथम भाव : इस भाव से व्यक्ति की शरीर यष्टि, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है। इससे हमें शारीरिक आकृति, स्वभाव, वर्ण चिन्ह, व्यक्तित्व, चरित्र, मुख, गुण व अवगुण, प्रारंभिक जीवन विचार, यश, सुख-दुख, नेतृत्व शक्ति, व्यक्तित्व, मुख का ऊपरी भाग, जीवन के संबंध में जानकारी मिलती है। विस्तृत रूप में इस भाव से जनस्वास्थ्य, मंत्रिमंडल की परिस्थितियों पर भी विचार जाना जा सकता है। द्वितीय भाव : इसे भाव से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, परिवार का सुख, घर की स्थिति, दाईं आँख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि के बारे मे जाना जाता है। इससे हमें कुटुंब के लोगों के बारे में, वाणी, विचार, धन की बचत, सौभाग्य, लाभ-हानि, आभूषण, दृष्टि, दाहिनी आँख, स्मरण शक्ति, नाक, ठुड्डी, दाँत, स्त्री की मृत्यु, कला, सुख, गला, कान, मृत्यु का कारण जाना जाता है। इस भाव से विस्तृत रूप में कैद यानी राजदंड भी देखा जाता है। राष्ट्रीय विचार से राजस्व, जनसाधारण की आर्थिक दशा, आयात एवं वाणिज्य-व्यवसाय आदि के बारे में भी इसी भाव से जाना जा सकता है तृतीय भाव : इस भाव से जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें भाई, पराक्रम, साहस, मित्रों से संबंध, साझेदारी, संचार-माध्यम, स्वर, संगीत, लेखन कार्य, वक्षस्थल, फेफड़े, भुजाएँ, बंधु-बांधव आदि का ज्ञान मिलता है। राष्ट्रीय ज्योतिष के लिए इस भाव से रेल, वायुयान, पत्र-पत्रिकाएँ, पत्र व्यवहार, निकटतम देशों की हलचल आदि के बारे में जाना जाता है। चतुर्थ स्थान : इस भाव से मातृसुख, गृह सौख्य, वाहन सौख्य, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें माता, स्वयं का मकान, पारिवारिक स्थिति, भूमि, वाहन सुख, पैतृक संपत्ति, मातृभूमि, जनता से संबंधित कार्य, कुर्सी, कुआँ, दूध, तालाब, गुप्त कोष, उदर, छाती आदि का पता किया जाता है। राष्ट्रीय ज्योतिष हेतु शिक्षण संस्थाएं, कॉलेज, स्कूल, कृषि, जमीन, सर्वसाधारण की प्रसन्नता एवं जनता से संबंधित कार्य एवं स्थानीय राजनीति, जनता के बीच पहचान आदि देखा जाता है। पंचम भाव : इस भाव से संतति, बच्चों से मिलने वाला सुख, विद्या बुद्धि, उच्च शिक्षा, विनय-देशभक्ति, पाचन शक्ति, कला, रहस्य शास्त्रों की रुचि, अचानक धन-लाभ, प्रेम संबंधों में यशनौकरी परिवर्तन आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें विद्या, विवेक, लेखन, मनोरंजन, संतान, मंत्र-तंत्र, प्रेम, सट्टा, लॉटरी, अकस्मात धन लाभ, पूर्वजन्म, गर्भाशय, मूत्राशय, पीठ, प्रशासकीय क्षमता, आय जानी जाती है। छठा भाव : इस भाव से जातक के शत्रुक, रोग, भय, तनाव, कलह, मुकदमे, मामा-मौसी का सुख, नौकर-चाकर, जननांगों के रोग आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें शत्रु, रोग, ऋण, विघ्न-बाधा, भोजन, चाचा-चाची, अपयश, चोट, घाव, विश्वासघात, असफलता, पालतू जानवर, नौकर, वाद-विवाद, कोर्ट से संबंधित कार्य, आँत, पेट, सीमा विवाद, आक्रमण, जल-थल सैन्य के के बारे में पता चलता है। सातवाँ भाव : इस भाव से विवाह सौख्य, शैय्या सुख, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार, पार्टनरशिप, दूर के प्रवास योग, कोर्ट कचहरी प्रकरण में यश-अपयश आदि का ज्ञान होता है। इससे हमें स्त्री से संबंधित, विवाह, सेक्स, पति-पत्नी, वाणिज्य, क्रय-विक्रय, व्यवहार, साझेदारी, मूत्राशय, सार्वजनिक, गुप्त रोग तथा राष्ट्रीय दृष्टिकोण से नैतिकता, विदेशों से संबंध, युद्ध का पता चलता हैं। आठवाँ भाव : इस भाव से आयु निर्धारण, दु:ख, आर्थिक स्थिति, मानसिक क्लेश, जननांगों के विकार, अचानक आने वाले संकटों का पता चलता है। इससे हमे मृत्यु, आयु, मृत्यु का कारण, स्त्री धन, गुप्त धन, उत्तराधिकारी, स्वयं द्वारा अर्जित मकान, जातक की स्थिति, वियोग, दुर्घटना, सजा, लांछन आदि का पता चलता है। नवम भाव: इसे भाव से आध्यात्मिक प्रगति, भाग्योदय, बुद्धिमत्ता, गुरु, परदेश गमन, ग्रंथपुस्तक लेखन, तीर्थ यात्रा, भाई की पत्नी, दूसरा विवाह आदि के बारे में बताया जाता है। इससे हमें धर्म, भाग्य, तीर्थयात्रा, संतान का भाग्य, साला-साली, आध्यात्मिक स्थिति, वैराग्य, आयात-निर्यात, यश, ख्याति, सार्वजनिक जीवन, भाग्योदय, पुनर्जन्म, मंदिर-धर्मशाला आदि का निर्माण कराना, योजना विकास कार्य, न्यायालय से संबंधित कार्य पता चलते है। दसवाँ भाव : इस भाव से पद-प्रतिष्ठा, बॉस, सामाजिक सम्मान, कार्य क्षमता, पितृ सुख, नौकरी व्यवसाय, शासन से लाभ, घुटनों का दर्द, सासू माँ आदि के बारे में पता चलता है। इससे हमें पिता, राज्य, व्यापार, नौकरी, प्रशासनिक स्तर, मान-सम्मान, सफलता, सार्वजनिक जीवन, घुटने, संसद, विदेश व्यापार, आयात-निर्यात, विद्रोह आदि के बारे में पता चलता है। एकादश भाव : इसे भाव से मित्र, बहू-जँवाई, भेंट-उपहार, लाभ, आय के तरीके, पिंडली के बारे में जाना जाता है। इससे हमें मित्र, समाज, आकांक्षाएँ, इच्छापूर्ति, आय, व्यवसाय में उन्नति, ज्येष्ठ भाई, रोग से मुक्ति, टखना, द्वितीय पत्नी, कान, वाणिज्य-व्यापार, परराष्ट्रों से लाभ, अंतरराष्ट्रीय संबंध आदि पता चलता है। द्वादश भाव: इस भाव से से कर्ज, नुकसान, परदेश गमन, संन्यास, अनैतिक आचरण, व्यसन, गुप्त शत्रु, शैय्या सुख, आत्महत्या, जेल यात्रा, मुकदमेबाजी का विचार किया जाता है। इससे हमें व्यय, हानि, दंड, गुप्त शत्रु, विदेश यात्रा, त्याग, असफलता, नेत्र पीड़ा, षड्यंत्र, कुटुंब में तनाव, दुर्भाग्य, जेल, अस्पताल में भर्ती होना, बदनामी, भोग-विलास, बायाँ कान, बाईं आँख, ऋण आदि के बारे में जाना जाता है। जन्म कुंडली के कारकत्व अर्थात 12 भावों से ज्ञात किये जा सकने वाले विषयों की जानकारी : 1. प्रथम लग्न, उदय, आद्य,तनु,जन्म, विलग्न, होय शरीर का वर्ण, आकृति, लक्षण, यश, गुण, स्थान, सुख दुख, प्रवास, तेज बल 2. द्वितीय स्व कुटुंब, वाणी, अर्थ, मुक्ति, नयन धन, नेत्र, मुख, विद्या, वचन, कुटुंब, भोजन, पैतॄक धन, 3. तॄतीय पराक्रम, सहोदर, सहज, वीर्य, धैर्य, भ्राता, पराक्रम, साहस, कंठ, स्वर, श्रवण, आभरण, वस्त्र, धैर्य, बल, मुल, फ़ल। 4. चतुर्थ सुख, पाताल, मातृ, विद्या, यान, यान, बंधु, मित्र, अंबु विद्या, माता, सुख, गौ, बंधु, मनोगुण, राज्य, यान, वाहन, भूमि, गॄह, हॄदय 5. पंचम बुद्धि, पितॄ, नंदन, पुत्र, देवराज, पंचक देवता, राजा, पुत्र, पिता, बुद्धि, पुण्य, यातरा, पुत्र प्राप्ति, पितृ विचार (सूर्य से) 6. षष्ठ रोग, अंग, शस्त्र, भय, रिपु, क्षत, रोग, श्त्रु, व्यसन, व्रण, घाव (मंगल से भी विचारणीय), 7. सप्तम जामित्र, द्यून, काम, गमन, कलत्र, संपत, अस्त। संपूर्ण यात्रा, स्त्री सुख, पुत्र विवाह (शुक्र से भी विचारणीय) 8. अष्टम आयु, रंध्र, रण, मॄत्यु, विनाश, आयु (शनि से भी विचारणीय) 9. नवम धर्म, गुरू, शुभ, तप, नव, भाग्य, अंक। भाग्य, प्रभाव, धर्म, गुरू, तप, शुभ (गुरू से भी विचारणीय) 10. दशम व्यापार, मध्य, मान, ज्ञान, राज, आस्पद, कर्म, आज्ञा, मान, व्यापार, भूषण, निद्रा, कॄषि, प्रवज्या, आगम, कर्म, जीवन, जिविका, वृति, यश, विज्ञान, विद्या, 11. एकादश भव, आय, लाभ संपूर्ण धन प्राप्ति, लोभ, लाभ, लालच, दासता 12. द्वादश व्यय, लंबा सफ़र, दुर्गति, कुत्ता, मछली, मोक्ष, भोग, स्वप्न, निद्रा, (शनि राहु से भी विचारणीय) जन्म कुंडली में दशम घर या दशमेश से व्यवसाय का निर्धारण होता है। दशमेश की विभिन्न भावो में स्थिति के अनुसार कार्य। 1. दशमेश यदि पहले भाव में हो तो व्यक्ति सरकारी सेवा करता है या उसका निज का स्वतंत्र व्यवसाय होता है। 2. दूसरे भाव में हो तो बैंकिंग, अध्यापन, वकालत, पारिवारिक काम, होटल व रेस्तरां, आभूषण एवम नेत्रों का चिकित्सक या ऐनकों से सम्बंधित व्यवसाय होगा। 3. तीसरे भाव में हो तो रेलवे, परिवहन, डाक एवम तार, लेखन, पत्रकारिता, मुद्रण, साहसिक कार्य, नौकरी, गायन-वादन से सम्बंधित व्यवसाय होगा। 4. चौथे भाव में हो तो खेती -बाड़ी, नेवी, खनन, जमीन-जायदाद, वाहन उद्योग, जनसेवा, राजनीति, लोक निर्माण विभाग, जल परियोजना, आवास निर्माण, आर्किटेक्ट, सहकारी उद्यम इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 5. पांचवें भाव में हो तो शिक्षण, शेयर मार्केट, आढत-दलाली, लाटरी, प्रबंधन, कला-कौशल, मंत्री पद, लेखन,फिल्म निर्माण इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 6. छठे भाव में हो तो जन स्वास्थ्य, नर्सिंग होम, अस्त्र -शस्त्र, सेना, जेल, चिकित्सा, चोरी, आपराधिक कार्य, मुकद्दमेबाजी तथा पशुओं इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 7. सातवें भाव में हो तो विदेश सेवा, आयात-निर्यात, सहकारी उद्यम, व्यापार, यात्राएं, रिश्ते कराने का काम इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 8. आठवें भाव में हो तो बीमा, जन्म -मृत्यु विभाग,वसीयत, मृतक का अंतिम संस्कार कराने का काम, आपराधिक कार्य, फाईनैंस इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 9. नवें भाव में हो तो पुरोहिताई, अध्यापन, धार्मिक संस्थाएं, न्यायालय, धार्मिक साहित्य, प्रकाशन शोध कार्य इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 10. दसवें भाव में हो तो राजकीय एवम प्रशासकीय सेवा, उड्डयन क्षेत्र, राजनीति, मौसम विभाग, अन्तरिक्ष, पैतृक कार्य इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 11. ग्यारहवें भाव में हो तो लोक या राज्य सभा पद, आयकर, बिक्री कर, सभी प्रकार के राजस्व, वाहन, बड़े उद्योग इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 12. बारहवें भाव में हो तो कारागार, विदेश प्रवास,राजदंड इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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