पुराणों में वर्णित नक्षत्रों के बारे में विवरण

" /> ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्र के बारे में विस्तृत चर्चा

"/> Consultation & Coaching By Experts(Astrologer, Psychologist, Yoga/Naturopathy, Ayush Doctor, Career Consultant, Business Consultant, Finance Consultant, Legal Consultant, Startup Coach)

पुराणों में वर्णित नक्षत्रों के बारे में विवरण

Share

Astro Rakesh Periwal 21st May 2020

*पुराणों तथा संहिता में नक्षत्र विचार*
〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
नक्षत्र ग्रह विप्राणां वीरुधां चाप्यशेषतः | सोमं राज्ये दधह्रह्याम यज्ञानां तमसामापि || (श्री विष्णु पुराण) श्री विष्णु पुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं ही नक्षत्र रूपा हैं जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ है | इन्हीं 27 नक्षत्रों का भोग चन्द्र द्वारा किये जाने पर चैत्र आदि एक चन्द्र मास पूर्ण होता है |सभी पुराणों में नक्षत्रों के महत्व तथा शुभाशुभ फल का वर्णन किया गया है | ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों का उपयोग बालक/बालिका के जन्म के समय शुभाशुभ विचार , नामकरण, मुहूर्त विचार,ग्रह चार,मेलापक तथा जातक के अन्य सभी शुभ अशुभ फल विचारने के लिए किया जाता है | अग्नि पुराण,नारद पुराण ,गरुड़ पुराण मत्स्य पुराण तथा अन्य पुराणों तथा बृहत्संहिता,भद्रबाहु संहिता ,नारद संहिता ,वशिष्ठ संहिता आदि में नक्षत्रों का वर्णन निम्न प्रकार से वर्णित है। नक्षत्रों के देवता और नाम के प्रथम अक्षर 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण का एक अक्षर निश्चित है | बालक /बालिका का जन्म नक्षत्र के जिस चरण में होता है उस से सम्बंधित अक्षर पर उसका नामकरण किया जाता है| नक्षत्र का नाम। नक्षत्र का देवता। नक्षत्र के चरण अश्वनी। अश्वनी कुमार। चू चे चो ला भरणीं। यमली लू ले लो कृतिका। अग्नि। अ इ उ ए रोहिणी। ब्रह्मा। ओ वा वी वू मृगशिरा। चन्द्र। वे वो का की आर्द्रा। शिव। कु घ ड० छ पुनर्वसु। अदिति। के को हा ही पुष्य। बृहस्पति। हु हे हो डा आश्लेषा। सर्प। डी डु डे डो मघा। पितर। मा मी मू मे पूर्वाफाल्गुनी। भग। मो हा टी टू उत्तराफाल्गुनी। अर्यमा। हे हो पा पी हस्त। सूर्य। पु ष ण ठ चित्रा। त्वष्टा। पे पो रा री स्वाति। पवन। रू रे रो ता विशाखा। इन्द्राग्नि। ती तू ते तो अनुराधा। मित्र। ना नी नु ने ज्येष्ठा। इंद्र। नो या यी यु मूल। राक्षस। ये यो भा भी पूर्वाषाढ़। जल। भू ध फ ढ उत्तराषाढ। विश्वेदेव। भे भो जा जी श्रवण। विष्णु। खी खू खे खो धनिष्ठा। वसु। गा गी गु गे शतभिषा। वरुण। गो सा सी सू पूर्वा भाद्रपद। रूद्र। से सो दा दी उत्तरा भाद्रपद। अहिर्बुध्न्य` दु थ झ ञ रेवती। पूषा। दे दो चा ची अग्नि पुराण के अनुसार प्रति मास अपने जन्म नक्षत्र के दिन नक्षत्र देवता का विधिवत पूजन अर्चन करने से उस महीने का फल शुभ रहता है और कष्ट की निवृति होती है |जन्म नक्षत्र ज्ञात न हो तो प्रचलित नाम के पहले अक्षर से नाम नक्षत्र ज्ञात करें और उस नक्षत्र
के देवता की पूजा करें।
उर्ध्वमुख नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 रोहिणी ,आर्द्रा, पुष्य ,उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ ,श्रवण ,धनिष्ठा ,शतभिषा ,उत्तरा भाद्रपद ये नौ नक्षत्र उर्ध्वमुख अर्थात ऊपर मुख वाले हैं | इन में विवाह आदि मंगल कार्य,राज्याभिषेक ,ध्वजारोहण,मंदिर निर्माण,बाग़-बगीचे लगवाना ,चार दीवारी बनवाना ,गृह निर्माण आदि कार्य करवाना शुभ रहता है |

अधोमुखी नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 कृतिका, भरणीं ,आश्लेषा, विशाखा, मघा ,मूल, पूर्वाषाढ़ ,पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वा भाद्रपद ये नौ नक्षत्र अधोमुख अर्थात नीचे मुख वाले हैं | इन में तालाब कुएं खुदवाना ,नलकूप लगवाना ,चिकित्सा कर्म, विद्याध्ययन ,खनन,लेखन कार्य,शिल्प कार्य, भूमि में गड़े पदार्थों को निकालने का कार्य करना शुभ रहता है |

तिर्यङ्मुख नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 अनुराधा, मृगशिरा ,चित्रा, हस्त, ज्येष्ठा, पुनर्वसु ,अश्वनी, स्वाति, रेवती ये नौ नक्षत्र सामने मुख वाले हैं जिन में यात्रा करना ,खेत में हल जोतना ,पत्राचार करना ,सवारी करना ,वाहन निर्माण आरम्भ करना शुभ है |

ध्रुव संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी ,उत्तराषाढ ,उत्तरा भाद्रपद ये चार नक्षत्र ध्रुव नक्षत्र हैं जिनमें क्रय-विक्रय करना ,हल जोतना ,बीज बोना आदि कार्य करना शुभ हैं |

क्षिप्र संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 हस्त,अश्वनी,पुष्य ये तीन नक्षत्र क्षिप्र संज्ञक हैं जिनमें यात्रा करना ,दुकान लगाना,शिल्प कार्य,रति कार्य,ज्ञान अर्जन करना शुभ है | साधारण संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 विशाखा तथा कृतिका साधारण नक्षत्र हैं जिनमे सभी कार्य किये जा सकते हैं |

चर संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 धनिष्ठा ,पुनर्वसु,शतभिषा ,स्वाति तथा श्रवण नक्षत्र चार संज्ञक हैं जिन में यात्रा करना ,बाग- बगीचे लगाना ,तथा परिवर्तन शील कार्य करना शुभ है |

मृदुसंज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 मृगशिरा ,अनुराधा,चित्रा,रेवती मृदु नक्षत्र हैं जिनमें आभूषण निर्माण,खेल कूद,नवीन वस्त्र धारण करना ,गीत-संगीत से सम्बंधित कार्य करना शुभ रहेगा | नक्षत्रों की अन्धाक्षादि संज्ञाएँ 〰〰〰〰〰〰〰〰〰 रोहिणी नक्षत्र से आरम्भ करके क्रमशः चार चार नक्षत्र अंध,मंद,मध्य,तथा सुलोचन नक्षत्र कहलाते हैं | अंध नक्षत्र में खोई वस्तु बिना विशेष प्रयत्न के पुनः प्राप्त हो जाती है | मंद नक्षत्र में खोई वस्तु प्रयत्न करने पर बड़ी कठिनता से मिलती है | मध्य नक्षत्र में खोई वस्तु का पता तो चल जाता है पर प्राप्ति नहीं होती | सुलोचन नक्षत्र में खोई वस्तु का न तो पता चलता है और न ही प्राप्ति होती है | कुलाकुल संज्ञक नक्षत्र तथा उनके फल 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 अश्वनी,कृतिका ,मृगशिरा ,पुष्य,चित्रा,मूल ,उत्तराफाल्गुनी,उत्तराषाढ,उत्तराभाद्रपद,श्रवण,धनिष्ठा ,मघा,पूर्वाफाल्गुनी, विशाखा कुल संज्ञक नक्षत्र हैं जिन में अदालत में मुकद्दमा दायर करने वाला व्यक्ति हार जाता है तथा युद्ध के लिए प्रयाण करने वाले की पराजय होती है | रोहिणी, ज्येष्ठा,रेवती,पुनर्वसु, स्वाति,हस्त,अनुराधा ,भरणीं,पूर्वा भाद्रपद ,आश्लेषा अकुल संज्ञक नक्षत्र हैं जिनमें आक्रमणकारी शत्रु पर विजय प्राप्त करता है और अदालत में मुकद्दमा दायर करने वाला व्यक्ति जीत जाता है| आर्द्रा ,शतभिषा,पूर्वाषाढ़ कुलाकुल नक्षत्र है जिनमें मुकद्दमा दायर करने अथवा युद्ध आरम्भ करने पर दोनों पक्षों में संधि की संभावना रहती है |

नक्षत्रों की भूकंप आदि संज्ञाएँ 〰〰〰〰〰〰〰〰〰 विचारणीय काल में सूर्य जिस नक्षत्र में स्थित हो उस से पांचवें को विद्युत्, सातवें नक्षत्र को भूकंप, आठवें को शूल, दसवें को अशनि, चौदहवें की निर्घातपात ,पन्द्रहवें को दण्ड,अठारहवें को केतु,उन्नीसवें को उल्का, इक्कीसवें की मोह,बाइसवें की निर्घात,तेइसवें की कंप,चौबीसवें की कुलिश तथा पच्चीसवें की परिवेश संज्ञा होती है इन नक्षत्रों में कार्य आरम्भ करने पर प्रायः सफलता नहीं मिलती |
नक्षत्र एवम् वार के योग से उत्पन्न शुभाशुभ मुहूर्त 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 अश्वनी आदि 27 नक्षत्रों तथा रवि आदि 7 वारों के संयोग से उत्पन्न शुभाशुभ प्रभाव देने वाले योगों का विभिन्न पुराणों और संहिताओं में वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है।
औत्पातिक योग 〰〰〰〰〰
निम्नलिखित वार तथा नक्षत्र के योग से औत्पातिक योग होता है जिनमें यात्रा तथा अन्य शुभ कार्य आरम्भ करने से उत्पात,रोग,हानि होने की संभावना रहती है | वारनक्षत्ररविवारविशाखा अनुराधा ज्येष्ठासोमवारपूर्वाषाढ़ उत्तराषाढ श्रवणमंगलवारधनिष्ठा शतभिषा पूर्वा भाद्रपदबुधवारअश्वनी भरणीं रेवतीगुरूवाररोहिणी मृगशिरा आर्द्राशुक्रवारपुष्य आश्लेषा मघाशनिवारउत्तराफाल्गुनी हस्त चित्रा अमृत योग 〰〰〰〰
रविवार को मूल,सोमवार को श्रवण ,मंगलवार को उत्तरा भाद्रपद,बुधवार को कृतिका,गुरूवार को पुनर्वसु, शुक्रवार को पूर्वा फाल्गुनी तथा शनिवार को स्वाति नक्षत्र हो तो अमृत योग होता है जो सभी कार्यों में सिद्धि प्रदायक होता है |
सिद्धि योग 〰〰〰
रविवार को हस्त ,सोमवार को मृगशिरा ,मंगलवार को अश्वनी ,बुधवार को अनुराधा ,गुरूवार को पुष्य , शुक्रवार को रेवती तथा शनिवार को रोहिणी नक्षत्र हो तो सिद्धि योग होता है जो सभी कार्यों में सिद्धि देने वाला होता है |
विष योग 〰〰〰
रविवार को भरणी ,सोमवार को चित्रा ,मंगलवार को उत्तराषाढ ,बुधवार को धनिष्ठा ,गुरूवार को शतभिषा , शुक्रवार को रोहिणी तथा शनिवार को रेवती नक्षत्र हो तो विष योग होता है जो अपने नाम के अनुसार सभी कार्यों में अशुभ फलदायक होता है |
आनन्दादि योग 〰〰〰〰〰
क्रम रविवार सोमवार मंगलवार बुधवार गुरूवार शुक्रवार शनिवार आनन्दादि योग शुभाशुभ फल1.अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा हस्त अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा आनंदसिद्धि 2.भरणीं आर्द्रा मघा चित्रा ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद कालदंडमृत्यु 3.कृतिका पुनर्वसु पूर्वाफाल्गुनी स्वाति मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद धूम्रअसुख 4.रोहिणी पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती धातासौभाग्य 5.मृगशिरा आश्लेषा हस्त अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी सौम्यसुख
6.आर्द्रा मघा चित्रा ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं ध्वांक्षधनक्षय
7.पुनर्वसुपूर्वा फाल्गुनी स्वाति मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका ध्वजसौभाग्य
8.पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती रोहिणी श्रीवत्ससंपदा
9.आश्लेषा हस्त अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी मृगशिरा वज्रक्षय
10.मघा चित्रा ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मुद्गरधनक्षय
11.पूर्वाफाल्गुनी स्वाति मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु छत्रराजसम्मान 12.उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती रोहिणी पुष्य मित्रपुष्टि 13.हस्त अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा मानससौभाग्य 14.चित्रा ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मघा पद्मधनागम 15.स्वाति मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु पूर्वाफाल्गुनी लुम्बधनहानि 16.विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती रोहिणी पुष्य उत्तरा फाल्गुनी उत्पातसंकट
17.अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा हस्त मृत्युमृत्यु 18.ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मघा चित्रा काणक्लेश 19. मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु पूर्वा फाल्गुनी स्वाति सिद्धिकार्यसिद्धि 20.पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती रोहिणी पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा शुभकल्याण 21.उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा हस्त अनुराधा अमृत राज सम्मान 22.अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मघा चित्रा ज्येष्ठा मूसल धन हानि
23.श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु पूर्वाफाल्गुनी स्वाति मूल गदविद्यालाभ
24.धनिष्ठा रेवती रोहिणी पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ मातंग कुलवृद्धि 25.शतभिषा अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा हस्त अनुराधा उत्तराषाढ रक्ष महावृद्धि
26.पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मघा चित्रा ज्येष्ठा अभिजित चर कार्यसिद्धि
27.उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु पूर्वाफाल्गुनी स्वाति मूल श्रवण स्थिरगृहारम्भ 28.रेवती रोहिणी पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा प्रवर्द्धमानविवाह।
त्रिपुष्कर योग 〰〰〰〰
रवि, शनि तथा मंगलवार को भद्रा तिथि ( द्वितीया ,सप्तमी,द्वादशी )और तीन पाद एक ही राशि में होने वाले नक्षत्र कृतिका,पुनर्वसु,उत्तराफाल्गुनी,विशाखा ,उत्तराषाढ तथा पूर्वा भाद्रपद हो तो त्रिपुष्कर योग होता है जिसमें लाभ या हानि त्रिगुणित कही गयी है | द्विपुष्कर योग 〰〰〰〰 रवि ,शनि या मंगलवार को भद्रा तिथि (द्वितीया, सप्तमी,द्वादशी )और दो पाद एक ही राशि में होने वाले नक्षत्र मृगशिरा ,चित्रा या धनिष्ठा हो तो द्विपुष्कर योग होता है जिसमें लाभ या हानि दुगनी होती है | सिद्ध योग 〰〰〰 शुक्रवार को नंदा तिथि ( प्रतिपदा ,षष्टि ,एकादशी ) , बुधवार को भद्रा तिथि ( द्वितीया ,सप्तमी,द्वादशी ) , मंगलवार को जया तिथि ( तृतीया ,अष्टमी,त्रयोदशी ), शनिवार को रिक्ता तिथि ( चतुर्थी ,नवमी,चतुर्दशी ) तथा गुरूवार को पूर्णा तिथि ( पंचमी,दशमी,पूर्णिमा ) हो तो सिद्ध योग होता है जिसमें सभी कार्यों में सिद्धि मिलती है |
दग्ध योग 〰〰〰 सोमवार को एकादशी,मंगलवार को पंचमी ,बुधवार को तृतीया ,गुरूवार को षष्टि ,शुक्रवार को अष्टमी तथा शनिवार को नवमी हो तो दग्ध योग होता है जिसमें आरम्भ किये कार्य सफल नहीं होते |
संवर्त योग 〰〰〰〰 रविवार को सप्तमी ,बुधवार को प्रतिपदा हो तो संवर्त योग होता है जो शुभ कार्यों में बाधक होता है | चंडीशचंडायुध योग 〰〰〰〰〰〰 विचारणीय काल में सूर्य जिस नक्षत्र में स्थित हो उस से तत्कालीन आश्लेषा,मघा,चित्रा अनुराधा रेवती या श्रवण नक्षत्र तक की गणना करने पर जो संख्या आये वाही संख्या यदि अश्वनी नक्षत्र से तत्कालीन चन्द्र नक्षत्र की हो तो चंडीशचंडायुध योग होता है जिसमें शुभ कार्यों का आरम्भ वर्जित है |
पंचक नक्षत्र 〰〰〰〰 धनिष्ठा के अंतिम दो चरण ,शतभिषा,पूर्वा भाद्रपद ,उत्तरा भाद्रपद और रेवती इन पांच नक्षत्रों के समूह को पंचक कहा जाता है | ये पांचो नक्षत्र कुम्भ तथा मीन राशि के अंतर्गत हैं | पंचक लगने पर लकड़ी और घास का संग्रह,दक्षिण दिशा की यात्रा ,मृतक का दाह संस्कार ,खाट बनवाना त्याज्य होता है | पंचकों में उपरोक्त कार्य करने पर अग्नि भय ,रोग,दण्ड ,हानि,और शोक होता है |
गण्डमूल नक्षत्र पुराणों में गण्डमूल नक्षत्र 〰〰〰〰〰〰〰〰 पुराणों में अनेक स्थानों पर गंडांत नक्षत्रों का उल्लेख किय गया है | रेवती नक्षत्र की अंतिम चार घड़ियाँ ,अश्वनी नक्षत्र की पहली चार घड़ियाँ गंडांत कही गई हैं | मघा ,आश्लेषा ,ज्येष्ठा एवम मूल नक्षत्र भी गंडांत हैं | विशेषतः ज्येष्ठा तथा मूल के मध्य क&#


Like (3)

Comments

Post

Latest Posts

यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

Top