पुनर्वसु नक्षत्र चरण फल ।
प्रथम चरण - इसके स्वामी मंगल है। इसमे बुध, गुरु, मंगल का प्रभाव है। मिथुन 80।00 से 83।20 अंश । नवमांश मेष। यह गति, साहसिक / जोखिम के काम, दर्शन, आध्यात्मिक मार्ग, मित्रता का द्योतक है।
जातक ताम्र वर्ण, अरुण और समुन्नत नेत्र, विशाल वक्ष, शिक्षा व कला मे निपुण, मज़ाकी स्वाभाव का होता है।
जातक कुशल, गुणी, सृजनात्मक होता है। कार्य प्रारम्भ मे जल्दबाज बाद मे सामान्य और सफल होता है। ये आसानी से मित्र और महिला मित्र बना लेते है। इनकी संतान समर्पित होती है। बिना ओरो को नुकसान पहुंचाये धन कमाने मे माहिर होते है।
द्वितीय चरण - इसके स्वामी शुक्र है। इसमे बुध, गुरु, शुक्र का प्रभाव है। मिथुन 83।20 से 86।40 अंश। नवमांश वृषभ। यह स्थाईत्व, भौतिकता, यात्रा का द्योतक है।
जातक श्याम वर्णी, मोटा शरीर, लम्बे श्वेत नेत्र, मनस्वी (मनन, चिंतन, विचार) मधुर भाषी कलाविद होता है। जातक संपत्ति का संग्रहक, बिना मेहनत किये कमाने मे कलाविद, संचार कुशल, सफल व्यापारी होता है।
तृतीय चरण - इसके स्वामी बुध है। इसमे बुध, गुरु, बुध का प्रभाव है। मिथुन 86।40 से 90।00 अंश। नवमांश मिथुन। यह कल्पना, मानसिक केंद्र, विज्ञान का द्योतक है।
जातक गोल श्वेत नेत्र, सुन्दर देह निपुण, मेघावी, रति क्रीड़ा दक्ष, कला साहित्य विज्ञान का ज्ञाता होता है। इस चरण मे धन अर्जित करने की ऊर्जा होती है। जातक उच्च शिक्षा प्राप्त, साहित्य प्रेमी, संधर्ष से धनी होता है।
चतुर्थ चरण - इसके स्वामी चन्द्र है। इसमे चन्द्र, गुरु,चंद्र का प्रभाव है। कर्क 90।00 से 93।00 अंश। नवमांश कर्क। यह माँ बनना, मातृत्व, फैलाव, पोषण का द्योतक है।
जातक स्वच्छ, सुन्दर गौर वर्ण, बड़ा पेट अथवा कमर. दिव्य आभा युक्त मुखड़ा, बड़े नेत्र, छोटी भुजा होती है। इस पाद में पुनर्वसु के सबसे घनात्मक प्रभाव होते है। जातक अत्यधिक देख-भाल करने वाला, दानी, आध्यत्मिक ज्ञान के लिए परिश्रमी, रचनात्मक लेखक, नाम और शोहरत वाला होता है।
आचर्यों ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है परन्तु अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : पुनर्वसु के प्रथम चरण मे सुखी, द्वितीय मे विद्वान, तृतीय मे रोगी, चतुर्थ में मृदुभाषी होता है।
मानसागराचार्य : पुनर्वसु के पहले चरण मे चोर, दूसरे मे महात्मा, तीसरे मे देव-गुरु भक्त, चौथे मे धनी होता है।
पुष्य नक्षत्र चरण फलादेश।
प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे चन्द्र, शनि, सूर्य का प्रभाव है। कर्क 93।20 से 96।40 अंश। नवमांश सिंह। यह तीव्र प्रकाश का आकर्षण, उपलब्धता, सम्पदा, सकारात्मकता, पैतृक गर्व का द्योतक है।
जातक लाल गुलाबी कान्ति वाला, बिलाव (बिल्ली) के सामान चेहरा वाला, लम्बे हाथ तथा पैर, विवाह के लिए प्रवासी, कला प्रिय होता है।
जातक जबाबदारी के लिए विश्वनीय, व्यवसायिक जीवन के लिए गंभीर, परिवार के प्रति चिन्तित, विवाह मे अड़चन, दाम्पत्य जीवन दुःखद होता है। कोई-कोई जातक मजदुर होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे चन्द्र, शनि, बुध का प्रभाव है। कर्क 96।40 से 100।00 अंश। नवमांश कन्या। यह धैर्य, निरतन्तर उद्योग, शुक्र के आलावा सभी ग्रहो के लाभ का द्योतक है।
जातक सुन्दर नेत्र, सुकुमार कोमल देह, गौर वर्ण, युवती के सामान सुडोल व पुष्ट अंगो वाला, मधुर वाणी युक्त, बुद्धिमान, अालसी लेकिन प्रभावी वक्ता होता है।
नौकर समान कार्यकारी, स्त्री या पुरुष जातक निज सचिव या शासकीय नौकर होते है। स्वास्थ सम्बन्धी बाधा और शरीरिक गड़बड़ी होती है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे चन्द्र, शनि, शुक्र का प्रभाव है। कर्क 100।00 से 103।20 अंश। नवमांश तुला। यह आराम, सुविधा, समाज प्रियता, अनुकूलता, अनुरूपता, सतही प्रगाढ़ता का द्योतक है।
जातक श्याम वर्णी, स्थूल देह, धनुषाकार भौंहे, सुंदर नाक व आंख, विलासी, क्षीणभाग्य, जाति बन्धु का हित करने वाला होता है।
जातक सामाजिक, यौन क्रिया का इच्छुक, पारिवारिक जीवन की अपेक्षा व्यावसायिक जीवन चाहने वाला, जीवन मे आराम और सुविधा भोगने वाला कार्य के प्रति लगनशील होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे चन्द्र, शनि, मंगल का प्रभाव है। कर्क 103।20 से 106।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। यह स्वर्गीय ज्ञान, अत्याचार, जुल्म, निर्भरता का द्योतक है।
जातक घड़ियाल / घंटे के समान सिर वाला, बाकी तिरछी भौंहे, लंबी भुजाए, सेवारत, अल्पबुद्धि, दुष्कर्मी, असहनशील होता है।
यह चरण विशेष शुभ नही होता, इसमे नक्षत्र के सभी ऋणात्मक लक्षण होते है। जातक की प्रारम्भिक शिक्षा मे स्वास्थ के कारण व्यवधान, युवावस्था मे प्रेम प्रसंग के कारण शिक्षा मे परेशानी होती है। 36 वर्ष की उम्र तक व्यवसाय मे रूकावट अड़चने आती है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है, लेकिन अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : पुष्य के पहले चरण मे दीर्घायु, दूसरे मे तस्कर, तीसरे मे योगी, चौथे मे बुद्धिमान होता है।
मानसागराचार्य : पुष्य पहले चरण मे राजा, दूसरे में मुनियो मे श्रेष्ट, तीसरे मे विद्वान, चौथे मे धर्मात्मा होता है।
आश्लेषा नक्षत्र चरण फल ।
प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे चन्द्र, बुध, गुरु का प्रभाव है। कर्क 106।40 से 110।00 अंश। नवमांश धनु। यह भय, रोग, शत्रु का द्योतक है। जातक लम्बा, स्थूल देह, सुन्दर नेत्र और नाक, गौर वर्ण, लबे-चौड़े दांत, वक्ता प्रतापी होता है।
स्त्री अथवा पुरुष जातक लक्ष्य पाने के लिए मेहनती होते है। ये शत्रु को वश मे करने की कला के ज्ञाता, साथियो और वरिष्ठो से प्रतिस्पर्धा मे विशिष्ट होते है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे चन्द्र, बुध, शनि का प्रभाव है। कर्क 110।00 से 113।20 अंश। नवमांश मकर। यह तृप्ति, लोगो से सौदा या व्यवहार, ठगबाजी, ईच्छा, स्वत्व उन्मुखता, वित्त का द्योतक है। जातक छितरे अल्प रोम युक्त, स्थूल देह, दीर्घ सर व जांघ, रक्षक अथवा चौकीदार, कौआ के सामान चौकन्ना, स्फूर्तिवान होता है।
नक्षत्र के नकारात्मक लक्षण इस चरण मे देखे जाते है। जातक अत्यधिक मक्कार, बेहिचक दूसरो के लक्ष्य को रोकने वाला, अविश्वनीय होता है। जातक को काबू मे रखना अत्यंत दुष्वार होता है। इसका खुद का मकान नही होता है यदि होता भी है तो किराये के मकान मे रहता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे चन्द्र, बुध, शनि का प्रभाव है। कर्क 113।20 से 116।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह गोपनीयता, छुपाव, योजना, माता पर कुप्रभाव का द्योतक है। जातक घड़ियाल के सामान सिर वाला, सुन्दर मुख व भुजा, कछुवे के समान गति, चपटी नाक, श्यामवर्णी, कुशिल्पी होता है। इस पाद मे जातक विश्वनीय होता है। परन्तु दूसरे सभी लक्षण दूसरे पाद जैसे ही होते है। इन्हे चर्म रोग रहता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे चन्द्र, बुध, गुरु का प्रभाव है। कर्क 116।40 से 120।00 अंश। नवमांश मीन। यह भ्रम, अति प्रयास या संघर्ष (ग्रीक पौराणिकता अनुसार इसमे सर्प का कत्ल किया जाता है) खतरनाक धोखा, आमना-सामना, पिता के स्वास्थ पर दुष्प्रभाब का द्योतक है। जातक गौरवर्ण, मस्य सामान नेत्र, कोमल उदर, बड़ा वक्ष, लम्बी दाड़ी, पतले होंठ, बड़ी जांघे पतले घुटने वाला होता है।
इस पाद का जातक दूसरो को शिकार बनाने के बजाय खुद शिकार होता है। जीवन में सम्बन्ध बनाये रखने के लिये कठिन परिश्रम करता है। नक्षत्र दुष्प्रभाव मे हो, तो गंभीर मनोरोग होते है।
नक्षत्रो के चरण फल आचर्यों ने सूत्र रूप मे कहे है लेकिन अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : आश्लेषा के प्रथम चरण मे संतान हीन, द्वितीय मे पराया काम करने वाला, नौकर या एजेन्ट, तृतीय मे रोगी, चतुर्थ मे गण्डांत रहित भाग मे सुभग या सौभाग्यशाली होता है। गण्डान्त मे अल्पायु होता है।
मनसागराचार्य : पहले चरण मे चोर, दूसरे मे निर्धन, तीसरे मे देश मे पूज्य, चौथे मे कुल भूषण होता है।
मघा नक्षत्र चरण फल ।
प्रथम चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे सूर्य, केतु, मंगल का प्रभाव है। सिंह 120।00 से 123।20 अंश। नवमांश मेष। यह शक्ति, शूरता, नेतृत्व, दया का द्योतक है।
जातक मंदाग्नि से ग्रस्त, साहसी, नाशिक का अग्र लाल भाग, बड़ा सिर, उन्नत मांशल वक्ष, शूरवीर होता है।
यह पाद जातक का बहुत मजबूत स्वभाव दर्शाता है। जातक अत्यंत शक्तिशाली, अहंमानी, उच्च स्थिति प्राप्तक, विख्यात न्यायाधीश या अभिभाषक, अधिकार युक्त होता है। इसे कट्टर दुश्मनी कारक अधिक शक्ति के उपयोग पर नियंत्रण रखना चाहिए।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे सूर्य, केतु, शुक्र का प्रभाव है। सिंह 123।20 से 126।40 अंश। नवमांश वृषभ। यह चेतना, कर्तव्य, संगठन, अनुग्रह का द्योतक है।
जातक चौड़ा ललाट, चार कोने वाला शरीर, छोटे नेत्र, लम्बी भुजा, उन्नत वक्ष, लम्बी ऊंची नाक वाला, अल्प क्रोधी होता है। यह पाद व्यवहार मे शालीनता और निम्न स्तरीय अहंकार को दर्शाता है। इसके पास अधिकार और शक्ति होते हुए भी कूटनीति से भौतिक लक्ष्य को प्राप्त करता है। इस कारण जातक कुटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ, प्रबंधक, प्रशासक आदि होता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे सूर्य, केतु, बुध का प्रभाव है। सिंह 126।40 से 130।00 अंश। नवमांश मिथुन। यह विद्ववता, खोज, रचनात्मकता का द्योतक है।
जातक घने रोम वाला, चकोर, ऊंची नाक, लम्बी भुजा, गोल गले वाला, मोह ममता से परे होता है। जातक अत्यंत मेघावी, समय निकाल कर मित्रो मे व्यतीत करने वाला, कार्यालय समय बाद तनाव मुक्ति का ज्ञाता होता है। यह अति उच्च शिक्षा प्राप्त बुद्धि जीवी होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी चन्द्र है। इसमे सूर्य, केतु, चन्द्र का प्रभाव है। सिंह130।00 से 133।20 अंश। नवमांश कर्क। यह संस्कार, पैतृकता, खुशहाली, दान का द्योतक है।
जातक चिकनी तैलीय त्वचा वाला, गौर वर्ण, लम्बे सुन्दर नेत्र, बेसुरी आवाज वाला, कोमल केश, मेढक के सामान पेट, कम खुराक
वाला होता है। अधिकार प्राप्त जातक के लिए यह शुभ नही है। महत्वपूर्ण निर्णय के समय यह भावुक होकर अपने लगाव के प्रति झुक जाता है। यह छान-बीन करने वाला पुरातत्ववेत्ता होता है।
आचर्यों ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है परन्तु फलादेश मे बहुत अंतर है।
यवनाचार्य : मघा के पहले चरण मे पुत्रहीन, दूसरे मे पुत्रवान, तीसरे मे रोगी, चौथे मे विद्वान, बुद्धिमान होता है।
मानसागराचार्य : पहले चरण मे राजमान्य, दूसरे मे धनवान, तीसरे मे तीर्थयात्री, चौथे मे पुत्रवान होता है।
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र चरण फल ।
प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे सूर्य, शुक्र, सूर्य का प्रभाव है। सिंह 133।20 से 136।40 अंश। नवमांश सिंह। यह स्व प्रतिष्ठा, वैभव, शान का द्योतक है। जातक घड़ियाल समान सिर, अल्प केश, श्वेत आंखे, लोमड़ी सामान शरीर, लम्बा पेट, साहसी, मोटे चौड़े तीखे दांत वाला होता है।
जातक साहसी, पत्नी युक्त, माता का भक्त होता है। विपरीत लिंग से अड़चन, रसायन या हॉस्पिटल से आजीविका होती है। पुरुष जातक कच्चे माल का व्यापारी, जीवन के उत्तरार्ध मे सुखी, धनार्जन और व्यापार के लिए यात्राएं करने वाला होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे सूर्य, शुक्र, बुध का प्रभाव है। सिंह 136।40 से 140।00 अंश। नवमांश कन्या। यह धैर्य, संयम, व्यापार, उद्योग का द्योतक है। जातक अल्प रोम, कोमल मटमैले नेत्र, लम्बा, श्याम वर्णी, स्त्री सुलभ सौन्दर्य युक्त, चतुर, शेखी मारने वाला, कार्य साधने में निपुण होता है।
जातक महा क्रोधी, जीवन के मध्य मे वासना युक्त, जीवन के अंत मे शांत और चिंता मुक्त होता है। पुरुष जातक नम्र, स्त्रियो का शौकीन, शराबी, नृत्य संगीत में रुचिवान, शिल्पकार, परिवार से दूर रहने वाला होता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे सूर्य, शुक्र, शुक्र का प्रभाव है। सिंह 140।00 से 143।20 अंश। नवमांश तुला। यह सृजन, तनाव मुक्ति, समान विचार, यात्रा, परिष्कृत, प्रशंसा, परामर्श का द्योतक है। जातक लम्बा मुंह, लम्बा मोटा सिर, हृष्ट-पुष्ट, मांसल देह, श्याम वर्ण, घने रोम, स्त्रियो से कपटी, कूटनीतिज्ञ, ठग, कठोर भाषी होता है।
जातक आक्रामक, संताप रहित, अनेक जबाबदारियो से परिपूर्ण होता है। घर मे चोरी होती है, परन्तु नुकसान कम होता है या चोरी गया मॉल मिल जाता है। पुरुष जातक प्रहार का शौकीन, बॉक्सर या पहलवान, वंश परम्परा का आदर करने वाला, परिवार और रिस्तेदारो का घनिष्ट, जीवन के अंत मे अकेला होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे सूर्य, शुक्र, मंगल का प्रभाव है। सिंह 143।20 से 146।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। यह लालसा, वीरता, रंग रूप का द्योतक है। जातक के जीवन मे कलह विशेष होता है। यदि जन्मांग मे सूर्य गुरु अच्छी स्थति मे हो, तो कलह कम होता है। जातक शिष्ट भाषी, स्थिर अंग, गंभीर स्वभाव, कपट दृष्टि, निषिद्ध कार्य करने वाला, गुप्तचर, कुशल होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है परन्तु अन्तर बहुत है।
यवनाचार्य : पहले पाद मे समर्थ व धार्मिक राजा, दूसरे मे रोगी, तीसरे मे क्रूर, चौथे मे अल्पायु होता है।
मानसागराचार्य : पूर्वा फाल्गुनी के पहले पाद मे स्वपक्ष जनहीन, दूसरे मे माता-पिता का भक्त, तीसरे मे राजमान्य चौथे मे धनी होता है।
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र चरण फल।
प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे सूर्य, सूर्य, गुरु का प्रभाव है। सिंह 146।40 से 150।00 अंश। नवमांश धनु। यह आचार, नियम, सलाह, भाग्य, भौतिक फैलाव का द्योतक है। जातक अश्व मुखी, मटमैले नेत्र, लम्बी भुजा, सुन्दर एड़ी और जांघ, पतली कमर, दमा रोग से पीड़ित होता है।
जातक धनी, प्रसिद्ध, बहादुर, सृमद्ध, पारिवारिक, सुकार्यकर्ता, साफ-स्वच्छ, वश मे करने वाला, क्ले या प्लास्टिक वस्तुए के मॉडल निर्माता होता है। जातक परिवार से 22 या 36 वे वर्ष से अलग रहता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे सूर्य, बुध, शनि का प्रभाव है। कन्या 150।00 से 153।20 अंश। नवमांश मकर। यह आयोजन तथा भौतिक सफलता का द्योतक है। जातक मृगनयनी, सुन्दर, लम्बा कद, वक्ता, दान का उपभोग करने वाला, धनवान, सहृदयी होता है।
जातक मिश्रित स्वभाव वाला, भारी नुकसान से पीड़ित, कन्या बहुल, नेक और धर्मत्मा, रहस्यवादी, वातावरण मे हमेशा परिवर्तन का इच्छुक, निर्धन, क्रूर, अनिर्णीत होता है।
कोई-कोई जातक छिद्रान्वेषी, अस्थिर, भिक्षुक, कृषि मे आंशिक सफल, दुश्चरित्र होते है। पुरुष जातक काश्य शिल्पकार, अहंकार रहित, गणितज्ञ, कोशिश और योग्यता से कमाने वाला, सामान्य धनी होता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे सूर्य, बुध, शनि का प्रभाव है। कन्या 153।20 से156।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह बुद्धि, विश्व प्रेम या मानव प्रेम, गुलामी, सामाजिक जबाबदारियो का द्योतक है। जातक गोल मुख, सुन्दर नेत्र, लम्बोदर, मोटी जांघे, कोमल शरीर और वाणी, चंचल, जिंदादिल होता है।
जातक कृतघ्न, झगड़ालू, विनोदी, दिखावटी, वासना युक्त, स्वच्छ, महाज्ञानी होता है। यह कन्या सन्तति वाला, भाई बहनो से कटु सम्बन्ध वाला, कार्य करने मे चतुर, लालच रहित, धार्मिक साहित्य और धार्मिक लेखन मे रुचिवान तथा 40 वर्ष पश्चात इसी क्षेत्र मे प्रसिद्द होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे सूर्य, बुध, गुरु का प्रभाव है। कन्या 156।40 से 160।00 अंश। नवमांश मीन। यह बुद्धि, विस्तृत क्षितिज, आध्यात्म, भौतिक सफलता का द्योतक है। जातक चौड़ी नाक, उभार युक्त रंध्र, खूबसूरत पैर, लम्बे हाथ व पैर, गौर वर्ण, उच्च स्वर, प्रत्यक्ष कांतिवान होता है।
जातक खुशहाली युक्त, ज्ञानी और पंडित, पुत्रवान सुस्वभावी, विनोदी, एहशान फरामोश, अपराधी, प्रभावी, धनाढ्य, लोभ-लालच रहित, अल्प लाभ पाने वाला होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है लेकिन अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : उत्तरा फाल्गुनी के पहले चरण मे पण्डित, दूसरे मे राजा या जमींदार, तीसरे मे विजयी और सफल, चौथे में धार्मिक होता है।
मानसागराचार्य : उ. फा. प्रथम चरण मे निर्धन, दूसरे मे धन हीन, तीसरे मे पुत्र हीन, चौथे मे शत्रुहंता होता है।