शिक्षा में ज्योतिष का महत्व

Share

Gurvinder Singh 13th Nov 2018

 

शिक्षा में ज्योतिष का महत्व 

 

आज के युग में सभी अपना व अपने परिवार का शिक्षा का स्तर उच्च रखने की इच्छा रखते हैं I आज के समय में सभी माता पिता या अभिभावक भी अपने बच्चो की शिक्षा को लेकर  चिन्तित रहते हैं और उन्हें अच्छी शिक्षा देने की कोशिश करते हैं I प्राचीन समय में गुरुकुल हुआ करते थे तथा ब्राह्मण का कार्य शिक्षा प्रदान करना था I विद्यार्थी आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे I लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे शिक्षा के क्षेत्र में काफी बदलाव आया है, वर्तमान समय में तो शिक्षा का स्वरुप बहुत बदल गया है I आज अच्छी आजीविका पाने के लिए अच्छी शिक्षा ग्रहण करना आवश्यक समझा जाता है I आज के समय की मांग व क्षमतानुसार तथा मानसिकता के अनुसार शिक्षा प्राप्त करानी चाहिए जो आगे चलकर जीवन निर्वाह व राष्ट्र की प्रगति के लिए सहायक सिद्ध हो सके I आधुनिक समय में बच्चा शिक्षा कुछ पाता है और आगे चलकर व्यवसाय कुछ कुछ ओर करता  है I ज्योतिष्य गणना  के आधार पर बच्चे की शिक्षा के क्षेत्र में सहायता की जा सकती है I शिक्षा किस क्षेत्र में प्राप्त करने के लिए कुंडली के अनुसार शिक्षा से जुड़े भावों पर विचार करना आवश्यक है, जिससे की उसी क्षेत्र में सफलता मिल सके I कुण्डली के दूसरेचतुर्थ तथा पंचम भाव से शिक्षा का प्रत्यक्ष रुप में संबंध होता है

इन भावों पर विस्तार से विचार करके ही शिक्षा क्षेत्र को चुने ताकि सफलता प्राप्त हो सके

द्वितीय भाव को कुटुम्ब भाव भी कहते हैं I बच्चा पांच वर्ष तक के सभी संस्कार अपने परिवारिक वातावरण से पाता है I पांच वर्ष तक जो संस्कार बच्चे के पड़ जाते हैंवही अगले जीवन का आधार बनते हैंइसलिए दूसरे भाव से परिवार से मिली शिक्षा अथवा संस्कारों का पता चलता है I इसी भाव से पारीवारिक वातावरण के बारे में भी पता चलता है I बच्चे की प्रारम्भिक शिक्षा के बारे में इस भाव की मुख्य भूमिका है I जिन्हें बचपन में औपचारिक रुप से शिक्षा नहीं मिल पाती हैवह भी जीवन में सफलता इसी भाव से पाते हैं I  इस प्रकार बच्चे के आरंभिक संस्कार दूसरे भाव से देखे जाते हैं I 

चतुर्थ भाव कुण्डली का सुख भाव भी कहलाता है I  आरम्भिक शिक्षा के बाद स्कूल की पढा़ई का स्तर इस भाव से देखा जाता है I इस भाव के आधार पर ज्योतिषी भी बच्चे की शिक्षा का स्तर बताने में सक्षम होता है I  वह बच्चे का मार्गदर्शनविषय चुनने में कर सकता है I चतुर्थ भाव से उस शिक्षा की नींव का आरम्भ माना जाता हैजिस पर भविष्य की आजीविका टिकी होती है अक्षर के ज्ञान से लेकर स्कूल तक की शिक्षा का आंकलन इस भाव से किया जाता है I 

पंचम भाव को शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण भाव माना गया है I इस भाव से मिलने वाली शिक्षा आजीविका में सहयोगी होती है I  वह शिक्षा जो नौकरी करने या व्यवसाय करने के लिए उपयोगी मानी जाती हैउस पर विचार  पंचम भाव से किया जाता है I  आजीविका के लिए सही विषयों के चुनाव में इस भाव की महत्वपूर्ण भूमिका है I

शिक्षा प्रदान करने वाले ग्रह बुध को बुद्धि का कारक ग्रह माना गया है I गुरु ग्रह को ज्ञान व गणित का कारक ग्रह माना गया है जिस बच्चे की कुंडली में गुरु अच्छी स्थिति में हो उसका गणित अच्छा होता है I बच्चे की कुण्डली में बुध तथा गुरु दोनों अच्छी स्थिति में है तो शिक्षा का स्तर भी अच्छा होगा I  इन दोनों ग्रहों का संबंध केन्द्र या त्रिकोण भाव से है तब भी शिक्षा क स्तर अच्छा होगा I इसके आलावा कुंडली में पंचमेश की स्थिति क्या है,  इस पर भी विचार करना अति आवश्यक होता है I इस के अतिरिक वर्ग कुण्डलियों से शिक्षा से जुडे़ भाव तथा ग्रहों का विचार करना भी आवश्यक है लेकिन इन भावों के स्वामी और शिक्षा से जुडे़ ग्रहों की वर्ग कुण्डलियों में स्थिति कैसी है इसका पर विशेष आंकलन करना  बहुत आवश्यक है I कई बार जन्म कुण्डली में सारी स्थिति बहुत अच्छी होती हैलेकिन फिर भी शिक्षा का स्तर बहुत अच्छा नहीं होता है, क्योंकि वर्ग कुण्डलियों में संबंधित भाव तथा ग्रह कमजोर अवस्था में स्थित हो सकते हैं I  

शिक्षा के लिए नवाँश कुण्डली तथा चतुर्विंशांश कुण्डली का विचार अवश्य करना चाहिए I जन्म कुण्डली के पंचमेश की स्थिति इन वर्ग कुण्डलियों में देखने से शिक्षा स्तर का आंकलन किया जा सकता है I चतुर्विशांश कुण्डली को वर्ग- 24 भी कहा जाता है I  इस में किसी विशेषज्ञ की सलाह लेना उचित रहता है, तथा कुंडली विद्या के सम्बन्धित ग्रहों के उपाय करके भी कुछ समाधान किया जा सकता है I 

 

 प० गौतम एवं गुरविन्दर सिंह चंड़ीगढ़ 

 

 


Like (0)

Comments

Post

Latest Posts

यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

Top