गायत्री मंत्र उपासनीय तीन भाव

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Prem Sagar Pandey 02nd May 2021

*गायत्री महामंत्र के तीन (त्रिपदा) चरण हैं-*

पहले चरण में हम परमात्मा की स्तुति करते हैं, दूसरे चरण में हम परमात्मा की उपासना करते हैं और अंतिम चरण में परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।

*१. "ॐ भूर्भुव स्व तत्सवितुर्वरेण्यं"*

गायत्री महामंत्र के इस चरण में हम श्रद्धा- भक्ति संचार हेतु परमात्मा की स्तुति करते हैं। ॐ अक्षर, अमृत और अभय स्वरूप ब्रह्म ही है। भूः, भुवः, स्वः यह तीन व्याहृतियां हैं जो पृथ्वी लोक, अंतरिक्ष लोक एवं स्वर्ग लोक के लिए हैं। पर आध्यात्म प्रयोजनों में ये क्रमशः स्थूल, सूक्ष्म व कारण शरीर के लिए प्रयुक्त होती हैं।

वह तेजस्वी, प्रकाशवान, श्रेष्ठ ॐकार परमेश्वर बाह्य जगत और अंतर्जगत के तीनों लोकों में संव्याप्त है।

*२. "भर्गो देवस्य धीमहि"*

गायत्री महामंत्र के इस चरण में हम गायत्री के माध्यम से उपासना करते हैं। स्वयं को ब्राह्मी चेतना के साथ गुँथा जाता है। भर्गो- पाप नाशक, देवस्य-दिव्य स्वरूप को धारण करें। इस चरण में हम सविता (सब को उत्पन्न करने वाला एवं सबमे संव्याप्त)  प्रकाश स्वरूप परमात्मा का ध्यान करते हैं।
         
इस ध्यान प्रक्रिया के द्वारा हम परमात्मा के निकट पहुँच जाते हैं। साधक - सविता का एकीकरण हो जाता है। आत्मसमर्पण की स्थिति ले आने से चमत्कारिक परिणति अविलंब बन पड़ती है।

*३. "धियो यो नः प्रचोदयात्"*

गायत्री महामंत्र के इस चरण में हम गायत्री के माध्यम से परमात्मा से समष्टि बुद्धि को प्रेरित करने के लिए प्रार्थना करते हैं। ऋषियों ने कहा है कि यदि तुम उस परम तत्व को नहीं जानते जिस परम तत्व का बोध ही तुम्हारे कल्याण का हेतु है तो वेद की ऋचाएं तुम्हें कुछ भी लाभ नहीं पहुंचा सकती।      
        
परम तत्व का बोध विशुद्ध बुद्धि से होता है। विशुद्ध बुद्धि की प्राप्ति गायत्री मंत्र से होती है। यदि कोई साधक गायत्री महामंत्र का जप करता है तो उसकी प्रार्थना सबकी सद्बुद्धि को प्रेरित करती है।

अतः बुद्धि को संस्कार रहित विशुद्ध कर ब्रह्म ज्ञान को उपलब्ध करवाने वाली सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना को गायत्री मंत्र कहते हैं। यही हमारी राष्टीय प्रार्थना हो सकती है। इसीलिए गायत्री मंत्र को इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भविष्य का ब्लू प्रिंट कहा गया है।

*शुभ प्रभात। आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलमय हो।*


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