कौन हरे मन की पीड़ा ?
Shareकितनी शसक्त हैं दुःख की दीवारें,
और उनको भोगने के मोह का बंधन,
वेदना ही शाश्वत हो जैसे नश्वरता में |
नीरसता में सरसता की आसक्ति,
क्षीण करती है दुःख से मुक्ति की शक्ति।
द ुःख हम सभी के जीवन मेंककसी न ककसी प्रकार सेअपनी उपस्तिकि का अहसास कराता रहता है। जीवन मेंअपनी अच्छी या ब री, दोनोोंपररस्तथिकतयोोंके किए कही ोंन कही ोंहम स्वयों ही कजम्मेदार होतेहैं। अपनी पीड़ा को हम अपनेक्रोध सेपाितेहैं, घृणा सेसी ोंचतेंहैं, प्रकतशोध की भावना सेिगातार उसकी चीड़-फाड़ करतेरहतेहैंऔर समस्या को एक नासूर बना मानकसक रूप सेकट और कवषैिेहो जातेहैं। स्वयों को दयनीय बना अपने अस्तित्व को क ों ठा और कहोंसा सेभर िेतेहैं। मन और हृदय मेंजमी वेदना न कसफफ हमें मानकसक क्षकत पहुँचाती है, अकपत हमारेचारोोंओर के वातावरण को नकारात्मक ऊजाफसे वैसेही भर देती हैजैसेजमा हआ पानी गोंकदगी फै िाता है। अतीत के सोंताप को हम कजतना सहेज कर रखतेहैंउतना ही वतफमान की स न्दर सोंभावनाओों सेदू र हो जातेहैं। कजतना समय और शस्ति हम अपनी वेदना को भोगनेमेंिगातेहैंउससेबहत कम शस्ति में उसस म ि हो सकतेहैं। कजस पीड़ा की गठरी हमारेजीवन की स ोंदरता और आोंनद को ही दबा देउसेधारण ककयेरहना क्या कववेकपूणफहै? द ुःख का आघात हमारेजीवन मेंएक स्वाभाकवक कक्रया है। स्वाभाकवक क्यूोंकक जीवन-मृत्य के इस चक्र मेंशारीररक और मानकसक वेदना मानव जीवन रुपी इस क्षणभोंग र अस्तित्व का अकभन्न अोंग है। द ुःख के इस वज्र नेबड़े-बड़ेज्ञाकनयोोंऔर धैयफवान िोगोोंको भी अपने प्रहार सेनही ोंछोड़ा। द ुःख का न होना एक काल्पकनक सोच होगी शायद। अगर येएक आत्मकचोंतन का कवषय न होता तो भगवान ब द्ध नेFour Noble Truths (धम्म चक्र प्रवतफन सूत्र ) को इतना आध्यास्तत्मक महत्व न कदया होता। शरीर का घाव तो उपचार सेभर जाता हैिेककन मन का सोंताप तब तक हरा ही बना रहता हैजब तक हम स्वयों को उससेहमेशा के किए म ि न कर िें। कवशेषज्ञोों या अन्य सिाहकारोों के स झाव और तरीके हमें क छ अोंतर्दफकि तो देसकतेहैं, ककन्त इस भोंवर सेकनकिनेका अिक प्रयास हमेंस्वयों ही करना होगा। अोंततुः प्रश्न यह हैकक इस अवसाद सेकनकिनेका मागफक्या है? कै सेद ुःख-स ख में हम सम्यक र्दकि धारण करें? कौन सेतत्त्व हमारी अोंदरूनी शस्ति को एक सजफनात्मक कदशा देसकतेंहैं? इन मौकिक प्रश्नो के जवाब हमेंस्वयों ही खोजनेहोोंगें। As Eckhart Tolle says, “When you complain you make yourself a victim. Leave the situation, change the situation, or accept it, all else is madness”.
स श्री ऋचा कत्रपाठी