जन्मपत्रिका का अष्टम भाव l
Shareजन्मपत्रिका का अष्टम भाव अपने आप मे कई रहस्य समेट कर रखता है। ज्योतिष में अष्टम भाव को प्रविद्याओ का स्वामी माना जाता है। ये भाव आयु का भी है। अस्टमेस जिस भाव मे बैठा हो उस भाव की हानि करता ही है। जन्मपत्रिका में अष्टमेष व तृतीयेश का सम्बन्ध होकर पंचम में दोनो हो, ऐसे जातक अनुसंधान में चले जाते है। तीसरा भाव अपने निज पराक्रम का है, ऐसे लोग अपने दम पर आगे बढ़ जाते है। सप्तम भाव से द्वितीय भाव होने से ये आपके जीवन साथी के वाणी का भी भाव बन जाता है, इस भाव पर पाप प्रभाव आपके जीवन साथी की वाणी को रूखा कर देता है। अष्टमेष लगनः में ही पंचमेश के साथ हो तो ऐसे लोग आद्यतम में बहुत रुचि लेते है, और यदि नवमेश भी सम्बन्ध बना ले तो कहना ही क्या। किन्तु अष्टमेष यदि पंचम भाव मे हो तो ऐसे लोग सन्तान से या सन्तान के लिए दुखी देखे जाते है, जिस भी भाव का स्वामी अष्टम में हो उस भाव मे कमी आ ही जाती है। अष्टम भाव जल तत्व प्रधान होने से , अष्टम भाव पर क्रूर ग्रहो का प्रभाव जातक को समुंदर पार की यात्रा भी करा देता है।