🌺🌻 जीवत्पुत्रिकाव्रत { जीतिया}🌻🌺 आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित पुत्रिका कहते हैं । भविष्य पुराण में कहा गया है- आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में जो अष्टमी तिथि होती है वह स्त्रियों के लिए आयुरारोग्यलाभ तथा सर्वविध कल्याण दात्री होती है । इसे जनमानस में जीवत्पुत्रिका, जितिया या जीमूतवाहन व्रत कहा जाता है । प्रायः स्त्रियाँ इस व्रत को करती है । प्रदोषव्यापिनी (संध्या के समय) अष्टमी को स्वीकार करते हुए आचार्योंने प्रदोषकाल ( सायं काल) में जीमूतवाहन के पूजन का विधान स्पष्ट शब्दों में किया है । *यदि पूर्व (पहले दिन) ही प्रदोष (सायं काल) व्यापिनी अष्टमी है दूसरे दिन नहीं है तो प्रदोष अनुरोध से पहले दिन की अष्टमी करनी चाहिए । तथा पारणा दुसरे दिन अष्टमी तिथि के अंत होने पर अर्थात नवमी तिथि में करनी चाहिए ।* पूर्वोक्त वचनों सेवा सिद्ध होता है । प्रदोष व्यापिनी अष्टमी में ही राजा जीमूतवाहन की पूजा नारियों को सदैव करणी चाहिए । *विष्णु धर्मोत्तर के ये वचन है* तिथि चन्द्रिका में पक्षधर मिश्र.का भी मानना यही है— '' प्रदोषसमये स्त्रीभिः पूज्यो जीमूतवाहनः । " यदि दो दिन प्रदोषव्यापिनी अष्टमी हो तो दुसरे दिन के अष्टमी ही ग्राह्य करना चाहिये । पुनः यदि सप्तमी उपरान्त अष्टमी हो तो वह भी ठीक है — " सप्तम्यामुदिते सूर्ये परतश्चाष्टमी भवेत् । तत्र व्रतोत्सवं कुर्यान्न कुर्यादपरेऽहनि ।। अष्टमी तिथि के बाद में पारणा करनी चाहिये — '' पारणं तु परादिने तिथ्यन्ते कार्यम् । " — नवमी तिथि में ही पारण करनी चिहिये । पवित्र होकर संकल्प के साथ व्रती अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिये उपवास कर बाँस के पत्रों से पूजन करना चाहिये । तत्पश्चात व्रत — महात्म्य की कथा का श्रवण करना चाहिये । अपने पुत्र — पौत्रों की लम्बी आयु एवं सुन्दर स्वास्थ्य की कामना से महिलाओं को विशेषकर सधवा को इस व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिये । आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि में जो औरतें अन्न खाती है वे निश्चित रूप से विधवा और अभागिनी होती है तथा उसके संतान के लिए भी समय प्रतिकुल हो जाता है ।विष्णु धर्मोत्तर में भी नवमी तिथि में ही पारणा का विधान है । यदि दोनों ही दिन प्रदोषकाल काल में अष्टमी नहीं हो तो जिस दिन सूर्य का उदय अष्टमी में हो उसी दिन जीवित पुत्रिका व्रत करना चाहिए । *इस वर्ष आश्विन कृष्ण अष्टमी 21 सितंबर शनिवार को दिन के 3:40 में प्रारंभ हो रहा है एवं समाप्ति 22 सितंबर रविवार को दिन के 2:50 तक है । अतः दुसरे दिन यानि रविवार को प्रदोषकाल ( सायं काल) में अष्टमी तिथि नहीं है । पूर्व लिखित नियमों के अनुसार प्रदोषकाल व अष्टमी तिथि में ही जीमूतवाहन का पूजन होता है तो । शनिवार को दोनों बातें उपलब्ध है । आगे नियमानुसार नवमी तिथि में पारणा का विधान है जो रविवार को संभव है । अतः शनिवार को व्रत रविवार को दिन के 2:50 के उपरांत पारण होगा । यह धर्म शास्त्र सम्मत है ।* *इस वर्ष व्रत* :— 20 सितम्बर — विशेष भोजन व ओठगन रात 5:50 तक ! 23 सितम्बर— जीमूतवाहन व्रत ! 24 सितम्बर — व्रतपारणा { दिन के 02:50 उपरान्त } । सर्वे भवन्तु सुखिनः आचार्य वंशीधर झा