||शुक्र अष्टोत्तरशतनामावलिः ||

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Ravinder Pareek 12th Oct 2020

||शुक्र अष्टोत्तरशतनामावलिः ||
शुक्र बीज मन्त्र - 
ॐ द्राँ द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः ||
ॐ शुक्राय नमः ||
ॐ शुचये नमः ||
ॐ शुभगुणाय नमः ||
ॐ शुभदाय नमः ||
ॐ शुभलक्षणाय नमः ||
ॐ शोभनाक्षाय नमः ||
ॐ शुभ्रवाहाय नमः ||
ॐ शुद्धस्फटिकभास्वराय नमः ||
ॐ दीनार्तिहरकाय नमः ||
ॐ दैत्यगुरवे नमः ||१०
ॐ देवाभिवन्दिताय नमः ||
ॐ काव्यासक्ताय नमः ||
ॐ कामपालाय नमः ||
ॐ कवये नमः ||
ॐ कल्याणदायकाय नमः ||
ॐ भद्रमूर्तये नमः ||
ॐ भद्रगुणाय नमः ||
ॐ भार्गवाय नमः ||
ॐ भक्तपालनाय नमः ||
ॐ भोगदाय नमः ||२०
ॐ भुवनाध्यक्षाय नमः ||
ॐ भुक्तिमुक्तिफलप्रदाय नमः ||
ॐ चारुशीलाय नमः ||
ॐ चारुरूपाय नमः ||
ॐ चारुचन्द्रनिभाननाय नमः ||
ॐ निधये नमः ||
ॐ निखिलशास्त्रज्ञाय नमः ||
ॐ नीतिविद्याधुरंधराय नमः ||
ॐ सर्वलक्षणसंपन्नाय नमः ||
ॐ सर्वापद्गुणवर्जिताय नमः ||३०
ॐ समानाधिकनिर्मुक्ताय नमः ||
ॐ सकलागमपारगाय नमः ||
ॐ भृगवे नमः ||
ॐ भोगकराय नमः ||
ॐ भूमिसुरपालनतत्पराय नमः ||
ॐ मनस्विने नमः ||
ॐ मानदाय नमः ||
ॐ मान्याय नमः ||
ॐ मायातीताय नमः ||
ॐ महायशसे नमः ||४०
ॐ बलिप्रसन्नाय नमः ||
ॐ अभयदाय नमः ||
ॐ बलिने नमः ||
ॐ सत्यपराक्रमाय नमः ||
ॐ भवपाशपरित्यागाय नमः ||
ॐ बलिबन्धविमोचकाय नमः ||
ॐ घनाशयाय नमः ||
ॐ घनाध्यक्षाय नमः ||
ॐ कम्बुग्रीवाय नमः ||
ॐ कलाधराय नमः ||५०
ॐ कारुण्यरससंपूर्णाय नमः ||
ॐ कल्याणगुणवर्धनाय नमः ||
ॐ श्वेताम्बराय नमः ||
ॐ श्वेतवपुषे नमः ||
ॐ चतुर्भुजसमन्विताय नमः ||
ॐ अक्षमालाधराय नमः ||
ॐ अचिन्त्याय नमः ||
ॐ अक्षीणगुणभासुराय नमः ||
ॐ नक्षत्रगणसंचाराय नमः ||
ॐ नयदाय नमः ||६०
ॐ नीतिमार्गदाय नमः ||
ॐ वर्षप्रदाय नमः ||
ॐ हृषीकेशाय नमः ||
ॐ क्लेशनाशकराय नमः ||
ॐ कवये नमः ||
ॐ चिन्तितार्थप्रदाय नमः ||
ॐ शान्तमतये नमः ||
ॐ चित्तसमाधिकृते नमः ||
ॐ आधिव्याधिहराय नमः ||
ॐ भूरिविक्रमाय नमः ||७०
ॐ पुण्यदायकाय नमः ||
ॐ पुराणपुरुषाय नमः ||
ॐ पूज्याय नमः ||
ॐ पुरुहूतादिसन्नुताय नमः ||
ॐ अजेयाय नमः ||
ॐ विजितारातये नमः ||
ॐ विविधाभरणोज्ज्वलाय नमः ||
ॐ कुन्दपुष्पप्रतीकाशाय नमः ||
ॐ मन्दहासाय नमः ||
ॐ महामतये नमः ||८०
ॐ मुक्ताफलसमानाभाय नमः ||
ॐ मुक्तिदाय नमः ||
ॐ मुनिसन्नुताय नमः ||
ॐ रत्नसिंहासनारूढाय नमः ||
ॐ रथस्थाय नमः ||
ॐ रजतप्रभाय नमः ||
ॐ सूर्यप्राग्देशसंचाराय नमः ||
ॐ सुरशत्रुसुहृदे नमः ||
ॐ कवये नमः ||
ॐ तुलावृषभराशीशाय नमः ||९०
ॐ दुर्धराय नमः ||
ॐ धर्मपालकाय नमः ||
ॐ भाग्यदाय नमः ||
ॐ भव्यचारित्राय नमः ||
ॐ भवपाशविमोचकाय नमः ||
ॐ गौडदेशेश्वराय नमः ||
ॐ गोप्त्रे नमः ||
ॐ गुणिने नमः ||
ॐ गुणविभूषणाय नमः ||
ॐ ज्येष्ठानक्षत्रसंभूताय नमः ||१००
ॐ ज्येष्ठाय नमः ||
ॐ श्रेष्ठाय नमः ||
ॐ शुचिस्मिताय नमः ||
ॐ अपवर्गप्रदाय नमः ||
ॐ अनन्ताय नमः ||
ॐ सन्तानफलदायकाय नमः ||
ॐ सर्वैश्वर्यप्रदाय नमः ||
ॐ सर्वगीर्वाणगणसन्नुताय नमः ||
||इति शुक्र अष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णम् ||
शुक्र के निर्बल होने से जीवन में भोग विलास की कमी हो सकती है. मूत्र संबंधी परेशानियाँ हो सकती है. ऎसी स्थिति में शुक्र के मंत्र जाप करने चाहिए. शुक्र के किसी एक मंत्र का जाप शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से आरंभ करना चाहिए. शुक्र के मंत्र जाप सूर्योदय काल में करने चाहिए.
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शुक्र का वैदिक मंत्र – 
ऊँ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत क्षत्रं पय: सेमं प्रजापति: ।
ऋतेन सत्यमिन्दियं विपान ग्वं, शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोय्मृतं मधु ।
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नाम मंत्र – 
ऊँ शुं शुक्राय नम:
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शुक्र के लिए तांत्रोक्त मंत्र – 
ऊँ ह्रीं श्रीं शुक्राय नम:
ऊँ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:
ऊँ वस्त्रं मे देहि शुक्राय स्वाहा
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शुक्र का पौराणिक मंत्र –
ऊँ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम ।
जानें, शुक्र ग्रह कैसे मचाता है जीवन में धमाल और बवाल भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार आकर्षण और प्रेम वासना का प्रतीक शुक्र ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव से व्यक्ति समाज पशु-पक्षी और प्रकृति तक प्रभावित होते हैं। ग्रहों का असर जिस तरह प्रकृति पर दिखाई देता है ठीक उसी तरह मनुष्यों पर सामान्यतः यह असर देखा जा सकता है। आपकी कुंडली में ग्रह स्थिति बेहतर होने से बेहतर फल प्राप्त होते हैं। वहीं ग्रह स्थिति अशुभ होने की दशा में अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं। बलवान ग्रह स्थिति स्वस्थ सुंदर आकर्षण की स्थितियों की जन्मदाता बनती हैं तो निर्बल ग्रह स्थिति शोक संताप विपत्ति की प्रतीक बनती हैं। लोगों के मध्य में आकर्षित होने की कला के मुख्य कारक शुक्र ग्रह हैं। कहा जाता है कि शुक्र जिसके जन्मांश लग्नेश केंद्र में त्रिकोणगत हों वह आकर्षक प्रेम सौंदर्य का प्रतीक बन जाता है। यह शुक्र जी क्या है और बनाने व बिगाड़ने में माहिर शुक्र देव का पृथ्वी लोक में कहां तक प्रभाव है। 
बृहद पराशर होरा शास्त्र में कहा गया है कि 
सुखीकान्त व पुः श्रेष्ठः सुलोचना भृगु सुतः।
काब्यकर्ता कफाधिक्या निलात्मा वक्रमूर्धजः।। 
तात्पर्य यह है कि शुक्र बलवान होने पर सुंदर शरीर, मुख, नेत्र, पढ़ने-लिखने का शौकीन, कफ वायु प्रकृति प्रधान होता है।
शुक्र के अन्य नामः भृगु, भार्गव, सित, सूरि, कवि, दैत्यगुरू, काण, उसना, सूरि, जोहरा (उर्दू का नाम) आदि हैं।
शुक्र का वैभवशाली स्वरूपः यह ग्रह सुंदरता का प्रतीक, मध्यम शरीर, सुंदर विशाल नेत्रों वाला, जल तत्व प्रधान, दक्षिण पूर्व दिशा का स्वामी, श्वेत वर्ण, युवा किशोर अवस्था का प्रतीक है। चर प्रकृति, रजोगुणी, स्वाथी, विलासी भोगी, मधुरता वाले स्वभाव के साथ चालबाज, तेजस्वी स्वरूप, श्याम वर्ण केश और स्त्रीकारक ग्रह है। इसके देवता भगवान इंद्र हैं। इसका वाहन भी अश्व है। इंद्र की सभा में अप्सराओं के प्रसंग अधिकाधिक मिलते हैं। 

सुख साधनों का कारक भी है शुक्र:- शुक्र मुख्यतः स्त्रीग्रह, कामेच्छा, वीर्य, प्रेम वासना, रूप सौंदर्य, आकर्षण, धन संपत्ति, व्यवसाय आदि सांसारिक सुखों के कारक है। गीत संगीत, ग्रहस्थ जीवन का सुख, आभूषण, नृत्य, श्वेत और रेशमी वस्त्र, सुगंधित और सौंदर्य सामग्री, चांदी, हीरा, शेयर, रति एवं संभोग सुख, इंद्रिय सुख, सिनेमा, मनोरंजन आदि से संबंधी विलासी कार्य, शैया सुख, काम कला, कामसुख, कामशक्ति, विवाह एवं प्रेमिका सुख, होटल मदिरा सेवन और भोग विलास के कारक ग्रह शुक्र जी माने जाते हैं।
शुक्र की अशुभताः यदि आपके जन्मांक में शुक्र जी अशुभ हैं तो आर्थिक कष्ट, स्त्री सुख में कमी, प्रमेह, कुष्ठ, मधुमेह, मूत्राशय संबंधी रोग, गर्भाशय संबंधी रोग और गुप्त रोगों की संभावना बढ जाती है और सांसारिक सुखों में कमी आती प्रतीत होती है। शुक्र के साथ यदि कोई पाप स्वभाव का ग्रह हो तो व्यक्ति काम वासना के बारे में सोचता है। पाप प्रभाव वाले कई ग्रहों की युति होने पर यह कामवासना भडकाने के साथ-साथ बलात्कार जैसी परिस्थितियां उत्पन्न कर देता है। शुक्र के साथ मंगल और राहु का संबंध होने की दशा में यह घेरेलू हिंसा का वातावरण भी बनाता है।
जानिए अशुभ शुक्र के लिए क्या करें: अशुभ शुक्र की शांति के लिए शुक्र से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए। जैसे चांदी, चावल, दूध, श्वेत वस्त्र आदि।
1- दुर्गाशप्तशती का पाठ करना चाहिए।
2- कन्या पूजन एवं शुक्रवार का व्रत करना चाहिए।
3- हीरा धारण करना चाहिए।
(यदि हीरा संभव न हो तो अर्किन, सफेद मार्का, सिम्भा, ओपल, कंसला, स्फटिक आदि शुभवार, शुभ नक्षत्र और शुभ लग्न में धारण करना चाहिए।)
4- शुक्र का बीज मंत्र भी लाभकारी होगा।
ऊँ शं शुक्राय नमः
ऊँ हृीं श्रीं शुक्राय नमः
इन मंत्रों का जाप भी अरिष्ट कर शुक्र शांति में विशेष लाभ प्रद माना गया है।
☀☀☀।। श्रीशुक्रकवच सतोत्रम ।।☀☀☀☀
शुक्र कवच अस्य श्रीशुक्र कवचस्तोत्रमंत्रस्यं भारद्वाज ऋषि:।
अनुष्टुप छंद:।
शुक्रो देवता।
शुक्रप्रीत्यर्थे पाठे विनियोग।।
मृणाल-कुन्देन्दु-पयोजसुप्रभं पीतांबरं प्रभृतमक्षमालिनम् ।
समस्तशास्त्रार्थनिधिं महांतंध्यायेतकविं वान्छितमर्थसिद्धये ।।१।।
ओम् शिरो मे भार्गव: पातु भालं पातु ग्रहाधिप: ।नेत्रे दैत्यबृहस्पति: पातु श्रोतो मे चन्दनद्युति: ।।२।।
पातु मे नासिकां काव्यो वदनं दैत्यवंदित: ।वचनं चोशना:: पातु कण्ठं श्रीकण्ठभक्तिमान् ।।३।।
भुजौ तेजोनिधि: पातु कुक्षिं पातु मनोव्रज: ।नाभिं भृगुसुत: पातु मध्यं पातु महीप्रिय: ।।४।।
कटिं मे पातु विश्वात्मा उरूं मे सुरपूजित: ।जानु जाड्यहर: पातु जंघे ज्ञानवतां वर: ।।५।।
गुल्फो गुणनिधि: पातु पादौ वरांबर: ।सर्वागानि मे पातु स्वर्णमाला परिस्कृत: ।।६।।
य इदं कवचं दिव्यं पठति श्रद्धयान्वित: ।न तस्य जायते पिडा भार्गवस्य प्रसादत: ।।७।।
।। इति ब्रह्मांडपुराणे शुक्रकवचं सम्पूर्णम।।

शुक्र स्तोत्र 
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नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ देव दानव पूजित ।
वृष्टिरोधप्रकर्त्रे च वृष्टिकर्त्रे नमो नम: ।।1।।
देवयानीपितस्तुभ्यं वेदवेदांगपारग: ।
परेण तपसा शुद्ध शंकरो लोकशंकर: ।।2।।
प्राप्तो विद्यां जीवनाख्यां तस्मै शुक्रात्मने नम: ।
नमस्तस्मै भगवते भृगुपुत्राय वेधसे ।।3।।
तारामण्डलमध्यस्थ स्वभासा भसिताम्बर: ।
यस्योदये जगत्सर्वं मंगलार्हं भवेदिह ।।4।।
अस्तं याते ह्यरिष्टं स्यात्तस्मै मंगलरूपिणे ।
त्रिपुरावासिनो दैत्यान शिवबाणप्रपीडितान ।।5।।
विद्यया जीवयच्छुक्रो नमस्ते भृगुनन्दन ।
ययातिगुरवे तुभ्यं नमस्ते कविनन्दन ।6।।
बलिराज्यप्रदो जीवस्तस्मै जीवात्मने नम: ।
भार्गवाय नमस्तुभ्यं पूर्वं गीर्वाणवन्दितम ।।7।।
जीवपुत्राय यो विद्यां प्रादात्तस्मै नमोनम: ।
नम: शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि ।।8।।
नम: कारणरूपाय नमस्ते कारणात्मने ।
स्तवराजमिदं पुण्य़ं भार्गवस्य महात्मन: ।।9।।
य: पठेच्छुणुयाद वापि लभते वांछित फलम ।
पुत्रकामो लभेत्पुत्रान श्रीकामो लभते श्रियम ।।10।।
राज्यकामो लभेद्राज्यं स्त्रीकाम: स्त्रियमुत्तमाम ।
भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यं सामहितै: ।।11।।
अन्यवारे तु होरायां पूजयेद भृगुनन्दनम ।
रोगार्तो मुच्यते रोगाद भयार्तो मुच्यते भयात ।।12।।
यद्यत्प्रार्थयते वस्तु तत्तत्प्राप्नोति सर्वदा ।
प्रात: काले प्रकर्तव्या भृगुपूजा प्रयत्नत: ।।13।।
सर्वपापविनिर्मुक्त: प्राप्नुयाच्छिवसन्निधि: ।।14।।
(इति स्कन्दपुराणे शुक्रस्तोत्रम)


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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