Deeksha Pathak(Ditya)
25th Dec 2021A small write up by Deeksha R. Pathak
तुलसी पूजन दिवस बनाम क्रिसमस
हर सुबह की तरह आज 25 दिसम्बर 2021 को भी मेरी नींद पापा के सुप्रभात मैसेज से खुली | एक मुस्कुराने के इमोटिकन के साथ मैंने उन्हें मैरी क्रिसमस भेजा, हाँ! ये त्यौहार हिन्दुत्व का परिचायक नहीं है पर खुशियाँ बांटने और मनाने के लिए, क्या हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई? पर तभी पापा की तरफ़ से क्रिसमस के उत्तर में तुलसी दिवस की शुभकामनाएं आयीं | मैंने फिर हिन्दू माह, तिथि और वार पर ध्यान दिया कि शायद हो सकता है मैं कुछ भूल रही हूँ | पर आज तो अगर पौराणिक और सांस्कृतिक संदर्भ पर ज़ोर देकर देखा जाए तो ऐसा कुछ था ही नहीं | फिर धीरे धीरे मेरे वाट्सएप पर जैसे एक बाढ़ सी आ गयी हो तुलसी पूजन दिवस के शुभकामना संदेश की| थोड़ी सी हैरान मैं टटोलने लगी गूगल ब्राउज़र को इसका सोर्स जानने की कोशिश में और न मिलने पर रोज की ही तरह घुस गयी पापा के कमरे में और उनकी रजाई में सुबह की एक साथ वाली चाय का लुत्फ़ लेने और आज की चाय पर चर्चा का विषय मैंने उठाया कि पापा ये तुलसी पूजन दिवस क्या है? किसी पुराण, हिन्दू पुस्तक या अपनी संस्कृति में तो इसका जिक्र नहीं है फिर आज इतनी बधाइयाँ और शुभकामनाएं क्यों? तुलसी विवाह, बैकुण्ठ चतुर्दशी और सोमवती अमावस्या को तो एक दो ही बधाई मिली थी जो कि असल मायने में तुलसी पूजन के त्यौहार हैं और जिनका पौराणिक महत्व भी है | पापा हंसने लगे, वो समझ गए थे कि मैं क्या और कहाँ बोलना चाहती हूँ | हम अपने और पराए त्यौहार में इतना धंस गए हैं कि इनका असली महत्व ही तज बैठे हैं | ये तो वही बात हुई कि पड़ोसी का जन्मदिन था वो खुशियाँ मना रहा था हमने उसे बधाई तो नहीं दी बल्कि ये और बोले कि तेरी खुशी में हम शामिल क्यों हों हम तो आज अपना जन्मदिन मनाएंगे भले ही खुद का अभी दो दिन पहले ही निकला है | माना कुछ लोगों को विदेशी संस्कृति कम रास आती है और इसलिए अपने बच्चों को भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जोड़ने के लिए इस तरह के पर्व का आविष्कार कर लेते हैं लोकबहुमत को पाकर पर हमारे पास पहले से बहुत उत्सव हैं उन्हें तो मनाइये और उनका महत्व समझाइए ये क्या कि जबरदस्ती दूसरे के त्यौहार में अपना घुसाना | भारतीय संस्कृति अनेकता में एकता स्थापित करने वाली है तो जिंदा रखना फर्ज़ है हमारा इस विविधता को | मैं तुलसी पूजन करूंगी, रोज़ करूंगी पर दिवस के नाम पर 25 दिसम्बर को क्रिसमस ही मनाऊंगी और ईद को ईद मुबारक ही कहूंगी | युवा होने के नाते ये दायित्व है मेरा कि तार्किक आधार पर अपने समाज से कुछ प्रश्न करते हुए उन्हें सोचने का एक नया दृष्टिकोण देने का क्योंकि इन्ही से हमने सीखा है तो इनसे तर्क करना अधिकार भी है, फर्ज भी है और प्यार भी है |
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