हनुमान जी और शनिदेव
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जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करता है उसके जीवन के कष्ट और संकट राम भक्त हनुमानजी हर लेते है और जब मनुषय पर शनिदेव कि ढैया या साढे साती का प्रकोप हो तब शनिदेव के प्रकोप से बचने का ये रामबाण उपाय है।
एक कथा के अनुसार हनुमान जी ने शनि देव को लंका में दशग्रीव( रावण) के बंधन से मुक्त कराया था। ऐसा भी कहा जाता है कि कलियुग में अभिमानवश एक बार शनिदेव हनुमान जी के पास गए और बोले - “तुमने मुझे त्रेता में ज़रूर बचाया था,
लेकिन अब यह कलिकाल है। मुझे अपना काम करना ही पड़ता है। इसलिए आज से तुम्हारे ऊपर मेरी साढ़े साती शुरू हो रही है। मैं तुमपर आ रहा हूँ।” यह कहते हुए वे हनुमान जी के मस्तक पर सवार हो गए।
शनिदेव के कारण हनुमान जी को सर पर खुजली होने लगी, जिसे मिटाने के लिए उन्होंने सर पर एक विशाल पर्वत रख लिया। जिसके नीचे शनिदेव दब गए और “त्राहि माम् त्राहि माम्” चिल्लाने लगे। उन्होंने हनुमान जी से याचना की और कहा कि वे आगे से उन्हें या उनके भक्तों को कभी परेशान नहीं करेंगे। हनुमान चालीसा हनुमान जी के स्तोत्रों में बहुप्रचलित और अनन्त शक्तिसंपन्न है। इसका पाठ शनि के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला कहा गया है।
ईसी तरह दशरथ द्वारा लिखा गया दशरथ स्तोत्र का पाठ भी आप कर सकते है
इस पाठ को प्रत्येक शनिवार को 11 बार करने से शनिदेव प्रसन होते है क्यू कि
महाराज दशरथ द्वारा लिखा गया दशरथ स्तोत्र का पाठ शनि ने स्वयं दशरथ जी को वरदान दिया था कि जो व्यक्ति आपके द्वारा लिखे गये स्तोत्र का पाठ करेगा उसे मेरी दशा के दौरान कष्ट का सामना नहीं करना होगा। शनिवार को जल में चीनी एवं काला तिल मिलाकर पीपल की जड़ में अर्पित करके तीन परिक्रमा करने से शनि प्रसन्न होते हैं। तथा सरसो या तिल के तेल का दीया भी जलये
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जय हो