🚩 देवता पूजन की पद्धति🚩
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देवता पूजन की पद्धति चरणबद्ध
*🔶आवाहन (पुकारना) :* देवता का ध्यान करें । ‘ध्यान’ अर्थात् देवता का वर्णन व स्तुति । ‘देवता अपने अंग, परिवार, आयुध और शक्तिसहित पधारें व मूर्ति में प्रतिष्ठित होकर हमारी पूजा ग्रहण करें’, इस हेतु संपूर्ण शरणागतभाव से देवता से प्रार्थना करना, यानी ‘आवाहन’ करना । आवाहन के समय हाथ में गंध, अक्षत एवं तुलसीदल अथवा पुष्प लें । तदुपरांत देवता का नाम लेकर अंत में ‘नम:’ बोलते हुए उन्हें गंध, अक्षत, तुलसीदल अथवा पुष्प अर्पित कर हाथ जोडें । उदा. श्री गणपति के लिए ‘श्री गणपतये नम:’ । श्री दुर्गादेवी के लिए ‘श्री दुर्गादेव्यै नम: ।
*🔶आसन देना :* आसन के रूप में विशिष्ट देवता को प्रिय पुष्प-पत्र आदि (उदा. श्रीगणेशजी को दूर्वा, शिवजी को बेल, श्रीविष्णु को तुलसी) अथवा अक्षत अर्पित करें ।
*🔶चरण धोने के लिए जल देना :* देवता को ताम्रपात्र (तामडी) में रखकर उनपर आचमनी से जल चढाएं ।
*🔶हाथ धोने के लिए जल देना :* आचमनी में जल लेकर उसमें गंध, अक्षत व पुष्प डालकर, उसे देवतापर चढाएं ।
*🔶आचमन (कुल्ला करने के लिए जल देना) :* आचमनी में कर्पूर-मिश्रित जल लेकर, उसे देवता को अर्पित करने के लिए ताम्रपात्र में छोडें ।
*🔶स्नान (देवतापर जल चढाना) :* धातु की मूर्ति, यंत्र, शालग्राम इत्यादि हों, तो उनपर जल चढाएं । मिट्टी की मूर्ति हो, तो पुष्प अथवा तुलसीदल से केवल जल छिडकें । चित्र हो, तो पहले उसे सूखे वस्त्र से पोंछ लें । तदुपरांत गीले कपडे से, पुन: सूखे कपडे से पोंछें ।
*🔶वस्त्र :* देवताओं को कपास के दो वस्त्र अर्पित करें । एक वस्त्र देवता के गले मे अलंकार के समान पहनाएं, तो दूसरा देवता के चरणों में रखें ।
उपवस्त्र अथवा यज्ञोपवीत
*🔶(जनेऊ) देना :* पुरुषदेवताओं को यज्ञोपवीत (उपवस्त्र) अर्पित करें ।
गंध (चंदन) लगाना : प्रथम देवता को अनामिका से गंध लगाएं । इसके उपरांत दाहिने हाथ के अंगूठे व अनामिका के बीच चुटकीभर लेकर, पहले हलदी, फिर कुमकुम देवता के चरणों में चढाएं ।
*🔶पुष्प-पत्र (पल्लव) चढाना :* विशिष्ट देवता को उनका तत्त्व अधिक मात्रा में आकृष्ट करनेवाले विशिष्ट पुष्प-पत्र चढाएं, उदा. शिवजी को बेल व गणेशजी को लाल पुष्प आदि । पुष्प देवता के सिरपर चढाने की अपेक्षा चरणों में अर्पित करें, पुष्पका डंठल देवता की ओर और मुख अपनी दिशा में रहे ।
*🔶धूप दिखाना :* देवता को धूप दिखाते समय उसे हाथ से न फैलाएं । विशिष्ट देवता का तत्त्व अधिक मात्रा में आकृष्ट कर पाने हेतु, उनके सम्मुख विशिष्ट सुगंध की उदबत्तियां जलाएं, उदा. शिवजी को हिना व श्री लक्ष्मीदेवी को गुलाब । साधारणत: दो उदबत्ती से आरती उतारें ।
*🔶दीपसे आरती उतारना :* घडी के घन्टो की दिशा में देवता की दीप-आरती तीन बार धीमी गति से उतारें । साथ ही, बाएं हाथ से घंटी बजाएं ।
*🚩अ. नैवेद्य निवेदित करना*
🔸देवता को नैवेद्य के रूप में दूध-शक्कर (दुग्ध-शर्करा), मिश्री, शक्कर-नारियल, गुड-नारियल, फल, खीर, भोजन इत्यादि पदार्थों में से अपने लिए जो संभव हो, वह समर्पित करें । नैवेद्य केले के पत्तेपर परोसें । नमक न परोसें ।
🔸मिर्च, नमक और तेल का प्रयोग कम करें और घी जैसे सात्त्विक पदार्थों का प्रयोग अधिक करें ।
🔸देवता से प्रार्थना कर देवता के सामने धरतीपर जल से चौकोर मंडल बनाएं व उसपर नैवेद्य का पत्ता (या थाली) रखें । नैवेद्य के पत्ते का डंठल देवता की ओर व अग्रभाग अपनी ओर हो ।
🔸नैवेद्य के पत्ते के चारों ओर तुलसी के दो पत्तों से जल से गोलाकार मंडल बनाएं । तदुपरांत तुलसीदल से पत्तों से नैवेद्यपर जल प्रोक्षण कर उसमें से एक पत्ता नैवेद्यपर (अन्नपर) रखें व दूसरा देवता के चरणों में चढाएं ।
🔸कर्मकांड के स्तर की पद्धति : बाएं हाथ का अंगूठा बाईं आंखपर व बाएं हाथ की अनामिका दाईं आंखपर रखकर आंखें मूंद लें और ‘ॐ प्राणाय स्वाहा । ॐ अपानाय स्वाहा । ॐ व्यानाय स्वाहा । ॐ उदानाय स्वाहा । ॐ समानाय स्वाहा । ॐ ब्रह्मणे स्वाहा ।।’, पंचप्राणों से संबंधित इस मंत्र का उच्चारण करते हुए नैवेद्य की सुगंध को दाहिने हाथ की पांचों उंगलियों के सिरों से देवता की ओर दिशा दें ।
🔸उसके उपरांत ‘नैवेद्यमध्येपानीयं समर्पयामि ।’ बोलते हुए दाहिने हाथ से ताम्रपात्र में थोडा जल छोडें व पुन: ‘ॐ प्राणाय…’, पंचप्राणों से संबंधित इस मंत्र का उच्चारण करें । उसके उपरांत ‘नैवेद्यम् समर्पयामि, उत्तरापोशनम् समर्पयामि, हस्तप्रक्षालनम् समर्पयामि, मुखप्रक्षालनम् समर्पयामि’ बोलते हुए दाहिने हाथ से ताम्रपात्र में जल छोडें ।
🔸नैवेद्य अर्पित करने के उपरांत अंत में देवता के सामने नारियल, दक्षिणा, तांबूल व सुपारी रखें । देवता की दीप-आरती करें ।
🔸तदुपरांत देवता की कर्पूर आरती करें । देवता को मन:पूर्वक नमस्कार करें ।
🔸नमस्कार के उपरांत देवता के चारों ओर परिक्रमा करें । परिक्रमा के लिए स्थान न हो तो अपने आसनपर ही तीन बार घूम जाएं ।
🔸मंत्रपुष्प का उच्चारण कर, देवता को अक्षत अर्पित करें । पूजा में हमसे जाने-अनजान में हुई गलतियों व कमियों के लिए अंत में देवता से क्षमा मांगें और पूजा की समाप्ति करें ।
*👉द्वारा रविन्द्र पारीक
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