दान द्वारा रोग निवारण
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Acharya Rajesh: मित्रो दान से रोग बड़े से बड़ा कष्ट विपत्ति को दूर किया जा सकता हैआपके जो ग्रह अशुभ चल रहे हैं उस में कमी लाई जा सकती हैव्यक्ति की जन्मपत्री में ग्रहों की स्थिति के अनुसारउनके शुम तथा
अशुभ फल उसे भोगने पड़ते हैं। यहां तक अत्यधिक हितकारी बृहस्पति भी
दुःस्थान पर या अपने स्वामित्व के बल पर अनिष्टकर हो जाता है।
शनि, जो सबसे क्रूर ग्रह है, उनके लिए हितकारी बन जाता है, जो तुला
या वृष लग्न में जन्मे हों। हमारी यह विचारपूर्ण राय है, कि वेअपने आप अच्छा या बुरा नहीं होताकेवल उसकी स्थिति तथा ग्रहों
में उसका स्वामित्व उसे ऐसा बनाता है।
कोई भी उपचार करने से पहले हमें रोग का निदान करना होता है। उपाय
बताने से पहले हमें स्पष्ट रूप से बीमारी किस ग्रह को इंगित करती है।
जानना आवश्यक होता है। लक्षण प्रायः भ्रामक होते हैं। अन्यत्र हमने सभी
ग्रहों के बारे म अपने पिछ्ले लेखों में विस्तृत ब्यौरे दिए हैं, जिनमें उनके स्वरूपरंगों, रत्नों तथा
पदार्थों आदि के बारे में बताया गया है। जब किसी ग्रह को दान द्वारा शांत
करना होता है, तो उस ग्रह से सम्बन्धित पदार्थों में से एक या अधिक
पदार्थों का दान किया जाता है। प्रश्न यह है, कि यह दिया किसे जाए?
जहां तक दान दिए जाने वाले व्यक्ति की पात्रता का प्रश्न है, हमारा
पूर्ण विश्वास हैकि ग्रहों के स्वरूप को समझ लिया जाना चाहिए। यद्यपि
ग्रहों के स्वरूप को पहचाना जा सकता है, किन्तु हर विषय में उनकी पात्रता
को पहचानना हमेशा संभव नहीं होता। हम जानते , कि नियमित रूप
से गाय को चारा देने के लिए उसको ढूंढ़ना कई लोगों के लिए बहुत ही
मुश्किल होती है। यहां तक कि शहरों की अच्छी कॉलोनियों में कुत्ते दुर्लभ
हैं। ऐसी परिस्थितियों में यह कैसे कहा जा सकता है, कि किसी विशिष्ट .
मामले में चींटियों को पोषित किया जाना चाहिए तथा अन्य मामलों में
बन्दरों को। इन सब बातों का परोक्ष, दान की व्यवस्था से वंचित करना
इन कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए हमने एक ऐसा रास्ता निकाला और वह है गरीबों को खिलाना यह संभव है, क्योकि सभी अच्छी
से अच्छी कॉलोनी में गरीब लोग तो अवश्य रहते हैं। यदि वे उपलब्ध
न हों, तो हम मंदिरों में जा सकते हैं, जहां कुछ याचक तो आसानी से
मिल जाते हैं। जैसे विशेष मामलों में, जहां अधिक मात्रा में दान की
जरूरत होती है, वहां हम अंधविद्यालयों में खीर या दूध इत्यादि भिजवा
सकते हैं । इसके अतिरिक्त वे आश्रम, जहां स्त्रियां रहती हो, अपशिों की
बस्तीका
कोढ़ियों के रहने स्थान, अनाथालय आदि स्थानों पर हम पर
हुआ सामान बांटने की सलाह देते हैं। आजकल आतंकवादी गतिविधियों के
कारण स्कूल भी पका हुआ भोजन लेने से इंकार करते हैं। ऐसे मामलों में
हम यह परामर्श देते , कि व्यक्ति दूधचावल तथा चीनी अधिकारी वर्ग
को खीर के लिए दे दे। यह उन पर छोड़ दिया जाए, कि वे दुघ चावल
व चीनी का प्रयोग किस तरीके से करते हैं।
यहां हमें ऐसा कहने का अवसर दिया जाए जो संदर्भ से बाहर , किन्तु
ऐसी बातें विश्वास के लिए प्रासंगिक है। सड़कों पर घूमने वाली गायें पर्याप्त
भोजन प्राप्त नहीं कर पाती। गाये पोलीथीन कचरा ही खाती हुई दिखाई पड़ती हैं। घाने की
की वस्तुएं खोज रही होती हैं। यदि हम सब्जियों को जैसे उपयुक्त फलों के
छिलकों को इकट्ठा करके रखेंतो इन्हें गायों को दिया जा सकता है। यह भी
पुण्य का काम होगा।
नमैने भारत के विभिन्न मंदिरों को देखा है। हावड़ा के दक्षिणेश्वर
के काली मां के मंदिर में, जहां श्री रामकृष्ण तथा विवेकानंद ने पूर्ण श्रद्धा
से आराधना की, मनों मूलियां अर्पित की जाती हैं तथा बाद में उन्हें नदी
में फेंक दिया जाता है। मूली राहु का प्रतिनिधित्व करती है। इसी तरह
कई मंदिरों में भगवान भैरव तथा मां काली को शराब तथा मांस
चढ़ाए जाते रहे हैं। क्योंकि राहु मांसाहारी और शराबी है, अत: मांस शराब को विभिन्न मंदिरों में चढ़ाया जाता है। कई मंदिरों में भारी मात्रा मे नारियल चढ़ाए जाते हैं जब आप दान करते हैं तो उसका प्रभाव आप पर ही नहीं या लेने पर ही नहीं पूरी प्रक्रिया पर पड़ता है जब आप एक रोटी कुत्ते को देते हो तो इसका सूक्ष्म प्रभाव आंखों से दिखाई नहीं देता और उसका प्रभावपुरी तरह से माना जा सकता है
दान का मतलब है देना और फिर पाना। यह दुनिया एक गूंज की तरह हैं। आप जो भी करेंगे उसका अनुनाद होगा और वही आ आपको ब्याज के साथ वापस मिलेगा। इसलिए अगर आप देंगे तो आप पाएँगे। दान देने में कोई हर्ज़ नहीं है। समस्या तब आती है, जब आप हालात के हिसाब से देने की बजाए, अपने संतोष के लिए देना चाहते हैं। आचार्य राजेश