वैदिक ज्योतिष में सूर्य की सम्पूर्ण व्याख्या 〰️ मधुपिण्ड गलदृक सुर्यश्चतुरस्त्र:। पित्त प्रकृतिको श्रीमान्नपुमानल्पकचो द्विज।। नवग्रहों में सूर्य को राजा की उपाधि प्राप्त है। अर्थात सूर्य एक शहद के समान पीले नेत्र युक्त, चौकोर शरीर, पित्त प्रकृति थोड़े बाल व स्वच्छ कांति वाला पुरुष ग्रह है। सूर्य के अन्य नाम रवि, अरुण, अर्यमा, दिनमणि, दिनेश, मिहिर, नभेश्वर, आदित्य, मार्तण्ड, दिवाकर, हेली, पूषा, तपन, प्रभाकर, अर्क, चित्ररथ, व भास्कर है। सूर्य को अंग्रेजी में सन, अरबी में शम्स व फारसी में खुरशेद कहते है। सौरमंडल का सूर्य प्रमुख ग्रह होने के साथ अन्य ग्रहों का केंद्र भी है इसलिये अन्य सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा देते है। श्रीमद्भागवत के आधार पर पृथ्वी तथा स्वर्ग के मध्य जिस स्थान पर ब्रह्मांड का केंद्र है वहीं सूर्य स्थिति है। पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की अदिति व दिति दो कन्याए थी इन दोनो का विवाह ऋषि कश्यप से हुआ था। दिति के गर्भ से दैत्य व अदिति के गर्भ से सूर्य व अन्य देवताओं का जन्म हुआ इसलिये सूर्य का एक नाम आदित्य भी है सूर्य की पत्नी का नाम संज्ञा है। संज्ञा के छाया नाम की एक दासी थी। एक बार जब संज्ञा सूर्य का तेज सहन नही कर पाई तो उसे छाया को आगे कर दिया उस समय समागम से छाया ने सूर्य देव के नौ पुत्रो को जन्म दिया उन्ही में से एक शनिदेव भी है। सूर्य अपने मार्ग पर चलते हुए दिन व रात को बड़ा छोटा करते रहते है। पुराणों के अनुसार सूर्यदेव के रथ में साथ घोड़े एक पहिया व सारथी पादविहीन है। जब सूर्य मेष अथवा तुला राशि मे गतिमान होते है तब दिन व रात बराबर होते है तथा जब सूर्य वृष, मिथुन, कर्क, सिंह कन्या राशि मे भ्रमणशील होते है तब हर माह की रात में एक-एक घड़ी कम होती जाती है व दिन में वृद्धि होती है। जब सूर्य वृश्चिक धनु मकर व मीन राशि मे गतिशील होते है तब प्रत्येक महीने के दिन में एक एक घड़ी कम होती जाती है। अर्थात दिन छोटा होता जाता है। सूर्य पृथ्वी से सवाकरोड मील दूर व पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा व्यास पृथ्वी के व्यास से 109.5 गुना यानी 866,500 मील व भार 3,30000 गुना अधिक है। तापमान 1,00000 अंश फारेनहाइट माना जाता है। सौरमंडल के सभी ग्रह इसी से प्रकाश ग्रहण करते है। ज्योतिष अनुसार सूर्य एक वर्ष में 12 राशियों पर भ्रमण करता है। सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि मे प्रवेश करने को ही संक्रांति कहते है इसी आधार पर 12 संक्रांतियां होती है।इसमे भी मकर संक्रांति का विशेष महत्त्व है क्यो की इस दिन अयन बदलता है। आगे जानिए विभिन्न संक्रांतियों के नाम। कर्क संक्रांति को यामयामन, मेष व तुला संक्रांति को विषुव, मिथुन, कन्या, धनु व मीन संक्रांति को षदशीत्यायन, वृष, वृश्चिक, सिंह, कुम्भ संक्रांति को विष्णुपद तथा मकर संक्रांति को सौमायायन कहते है। सामान्यतः सूर्य संक्रांति की पहली 16 घटी तथा बाद कि 16 घटी को पुण्य काल माना जाता है। यदि अर्ध रात्रि के पहले ही सूर्य का दूसरी राशि मे संक्रमण हो तो पिछले दिन के परभाग में तथा यदि अर्धरात्रि के बाद हो तो अगले दिन के पूर्व भाग को पुण्य काल माना जायेगा। यदि ठीक मध्यरात्रि के समय संक्रांति प्रवेश हो तो पिछले व अगले दोनो दिन पुण्य काल होता है। इसी प्रकार यदि पुण्यकाल वाली संक्रांति का ठीक सूर्योदय के समय प्रवेश हो तो उतनी ही आगे की घटियों का पुण्य काल माना जायेगा क्योकि रात्रिसमय का पुण्य काल शास्त्रों में वर्जित है। पुण्यकाल के समय सामर्थ्य अनुसार दान धर्म, प्रभु आराधना , जप, हवन, आदि कार्यो का विशेष महत्त्व है इनका अधिक फल मिलता है। सूर्य का ज्योतिष में स्थान 〰️ भारतीय ज्योतिष में सूर्य को काल पुरुष की आत्मा कहा जाता है। सूर्य को जीवो की आत्मा के साथ सभी ग्रहों का अधिष्ठाता व सर्वशक्तिमान कहा जाता है।सूर्य अपनी किरणों से त्रिलोक व अंतरिक्ष मे सभी जीवों में व्याप्त है। इसी लिए इसे जगत का पोषण कर्ता व आत्मा कहा जाता है। यजुर्वेद में सूर्य के प्रति कहा जाता है कि! " आप्राध्यावा पृथ्वी अंतरिक्ष सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च" सूर्य लाल गुलाबी रंग का मतांतर से ताम्रवर्णी, सुन्दर, स्वरूप, अग्नि तत्त्व, शरीर मे अस्थि व पित्त का कारक, पूर्व दिशा का स्वामी, ऊर्ध्व दृष्टि, स्वाद में कड़वा, सत्वगुणी, जाती का क्षत्रिय, मदार लकड़ी का अधिपति, दिन में बली, ग्रीष्म ऋतु का स्वामी, कश्यप गोत्र, सिंह राशि का स्वामी, पुरुष ग्रह, नैसर्गिक बल में अन्य सभी ग्रहोंसे बली, देवस्थान में क्रीड़ा करने वाला है। सूर्य अपने स्थान से सातवे स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है। सूर्य का गोचर फल 〰️ जन्म राशि मे 👉 स्थान नाश द्वितीय स्थान 👉 भय तृतीय स्थान 👉 धन लाभ चतुर्थ स्थान 👉 मान हानि पंचम स्थान 👉 निर्धनता षष्ठ स्थान 👉 शत्रु हानि सप्तम स्थान 👉 लाभ-हानि अष्टम स्थान 👉 पीड़ा नवम स्थान 👉 कांति हानि दशम स्थान 👉 कार्य सिद्धि एकादश स्थान 👉 धन लाभ द्वादश स्थान 👉 महा कष्ट व धन हानि। मुख्य कारक👉 पिता व पिता का पराक्रम, अस्थि, आत्मा, रोगों की प्रतिकार क्षमता, मन की पवित्रता, रुचि, ज्ञान का उद्गम स्थान, माणिक्य, क्षत्रिओं के कर्म, लाल वस्त्र, पर्वत स्थल, युद्ध कला में प्रवीण, यह मेष राशि मे उच्च, तुला में नीच व सिंह राशि मे मूल त्रिकोणी होता है। इसके चंद्र, मंगल, गुरु मित्र तथा बुध सम व शनि व शुक्र शत्रु है। अशुभ सूर्य👉 जन्म पत्रिका में अशुभ सूर्य की स्थिति में पित्तजन्य रोग, शरीर मे अधिक अग्नि, बार-बार हड्डी का टूटना अथवा अस्थिरोग, क्षयरोग, नेत्र रोग, अतिसार आदि के साथ कर्मक्षेत्र में अधिकारी से भय, ब्राह्मण वर्ग से विरोध, नौकरों से चोरी का भय आदि। सूर्य का बल व प्रतिनिधी👉 सूर्य के प्रतिनिधि नक्षत्र कृतिका, उत्तराफाल्गुनी व उत्तराषाढ़ है। यदि जातक का इनमे से कोई जन्मकालीन नक्षत्र है। तो जन्म समय मे सूर्य की महादशा में ही जीवन आरम्भ होगा। सूर्य की धातु सोना व उपधातु तांबा है। इसका प्रतिनिधि रत्न माणक व उपरत्न तामड़ा व गार्नेट है। अनाज-गेंहू, रस-गुड़, फूल लाल-कमल व लाल वस्त्र है। सूर्य का बल👉 सुर उच्च राशि अपने द्रेष्काण, अपनी होरा, नवांश, उत्तरायण दिन के मध्य राशि का प्रथम पहर, मित्र व स्वयं नवांश, तथा दशम भाव मे विशेष बली होता हैं। इसके अतिरिक्त सूर्य आर्द्रा, पुष्य, पुनर्वसु व आश्लेषा में भी बलवान होता है। सूर्य का प्रत्येक भाव पर दृष्टि फल 〰️ सूर्य अपने से सातवे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है। इसके साथ ही सूर्य की अन्य दृष्टि भी होती है। जैसे एकपाद, द्विपाद व, त्रिपाद, परंतु फल पूर्ण दृष्टि का ही माना जाता है। इसलिये हम यहाँ सूर्य की पूर्ण दृष्टि फल की ही चर्चा करेंगे। उदाहरण के लिये जैसे सूर्य यदि लग्न में बैठा है तो वह सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। सूर्य एक विस्फोटक ग्रह है इसलिये जिस भाव पर भी इसकी दृष्टि पड़ती है उस भाव की हानि अवश्य ही होती है। प्रथम भाव पर दृष्टि फल👉 इस भाव पर सूर्य की दृष्टि से नेत्र रोग, रजोगुणी प्रधान, मंत्रो का ज्ञाता, पिता की सेवा करने वाला, राज्य में सम्मान पाने वाला, माध्यम धनी व डाक्टर हो सकता है। द्वितीय भाव पर दृष्टि फल👉 जातक नेत्र रोगी, कुटुम्ब के सुख की कमी रहती है। पशुओं के व्यवसाय से लाभ लेने वाला, पैतृक धन का नाश करने वाला तथा अधिक मेहनत के बाद भी कम आय पाने वाला होता है। तृतीय भाव पर दृष्टि फल👉 कुलीन व सौम्य स्वभाव वाला, राज्य भोगी, बड़े भाई के सुख से हीन, नेतृत्व शक्ति वाला, पराक्रमी होता है। चतुर्थ भाव पर दृष्टि फल👉 स्वाभिमानी, 22-23 वर्षायु तक सुख की बहुत कमी या कभी कभार ही सुख पाने वाला, इसके बाद वाहनादि सुख भोगने वाला, माँ का सुख सामान्य ही रहता है। पंचम भाव पर दृष्टि फल👉 मंत्र व शास्त्र का ज्ञानी, प्रथम संतान नाशक, 21-22 वर्ष की आयु में संतान प्राप्त करने वाला, पुत्र संतान के लिये चिंतित अथवा पुत्रो के कर्मो से चिंतित, नौकरी करने वाला होता है। षष्ठ भाव पर दृष्टि फल👉 बांए नेत्र में कष्ट, शत्रुओं के लिये घातक, अधिकतर कर्ज में रहने वाला, मामा पक्ष को सैदेव दुख देने वाला होता है। सप्तम भाव पर दृष्टि फल👉 व्यापारी व सैदव ऋणी रहने वाला, तेज व उग्र स्वभाव वाला, रतौंधी रोग से पीड़ित, जीवन के आरंभिक भाग में दुखी परंतु दुआरे भाग में सुखी 20-21 वर्ष आयु तक विवाह करने वाला व 23-24 वर्षायु तक जीवन साथी नाशक। यहाँ अन्य योगों को देखकर ही कहना उचित रहेगा कि जीवन साथी की मृत्यु होती है या किसी अन्य कारण से परन्तु नाश अवश्य होता है। 20% मृत्यु से 80% तलाक व अन्य झगड़ो के कारण अलगाव होता है। विवाह के 7 वर्षों के अंदर अलगाव होता है जिसमे दोनो का अहम व वाणी मुख्य भूमिका निभाते है। अष्टम भाव पर दृष्टि फल👉 ऐसा जातक व्यभिचार में लिप्त बवासीर रोगी, पाखंड करने व झूठ बोलने वाला तथा निंदनीय कर्मो में प्रवीण होता है। नवम भाव पर दृष्टि फल👉 ऐसा व्यक्ति धार्मिक प्रवृति व ईश्वर से डरने वाला होता है। परन्तु बड़े भाई व साले के सुख से वंचित रहता है। दशम भाव पर दृष्टि फल👉 राज्य में मान-सम्मान पाने वाला, धनवान परन्तु माँ के सुख से हीन, सूर्य यदि उच्च राशि का हो तो धनवान होने के साथ माँ, वाहन व भवन सुख भोगता है। एकादश भाव पर दृष्टि फल👉 ऐसा सूर्य धन लाभ कराता है परन्तु प्रथम संतान का नाश भी करता है। यदि गुरु व पंचमेश बलि हो तो संतान का नाश नही करता किन्तु गर्भपात अवश्य होता है। व्यापार के क्षेत्र में भी व्यक्ति नाम अवश्य कमाता है। अच्छे कुल का विद्वान व बुद्धिमान होता है। द्वादश भाव पर दृष्टि फल👉 अधिकतर प्रवास पर रहने वाला, नेत्र रोगी विशेषकर बांये नेत्र में कष्ट, मामा के लिये कष्टकारण, धार्मिक व शुभ कार्यो में धन खर्च करने वाला, उच्च स्तर की सवारी का शौकीन तथा नाक अथवा कान पर मस्सा, तिल का चिन्ह हो सकता है। नोट👉 उपरोक्त फल कथन सूर्य के सामान्य दृष्टि अनुसार है इसमे अन्य ग्रह योगों के कारण फलादेश में थोड़ा परिवर्तन भी सम्भव है। सूर्य की महादशा का फल 〰️ जन्म पत्रिका में सूर्य यदि पापी अकारक अथवा पीड़ित हो तो इसकी दशा में निम्न फल प्राप्त होते हैं। यहां मैं फिर कहूंगा कि यह फल देखने से पहले आप समस्त प्रकार से यह जांच लें कि आपकी पत्रिका में सूर्य की क्या स्थिति है। यह फल आपको तभी प्राप्त होंगे जब सूर्य उपरोक्त स्थिति में होगा साथ ही यह भी देखें कि सूर्य के साथ किस ग्रह की युति है किस ग्रह की दृष्टि है। शुभ ग्रह लग्नेश अथवा कारक ग्रह की युति अथवा दृष्टि होने पर निश्चय ही सूर्य के अशुभ फल में कमी आएगी। सूर्य यदि चतुर्थ स्थान में हो तो जातक को आग से वाहन दुर्घटना अथवा विष का भय होता है। इसमें भी यदि अशुभ मंगल अथवा केतु की दृष्टि अथवा युति हो तो यह फल और अधिक कष्टदायक हो जाते हैं। प्रथम भाव के पापी व अकारक सूर्य की महादशा में नेत्र व जीवन साथी को कष्ट छठे भाव में सूर्य के पीड़ित अथवा पापी होने पर अपेंडिक्स का ऑपरेशन क्षय रोग खूनी पेचिश अथवा दस्त होते हैं। यह रोग कभी सामान्य रूप से होते हैं अथवा कभी गंभीर रूप लेकर पीड़ा देते हैं। सप्तम भावस्थ सूर्य से जीवनसाथी को कलेश उसका बीमार होना अथवा अलगाव होने जैसे फल होते हैं। आठवें भाव के सूर्य से दुर्घटना का भय, कामोत्तेजना अधिक, नेत्र विकार, ज्वर, पेचिश, अग्नि दुर्घटना जैसे फल प्राप्त होते हैं। बारहवें भाव के सूर्य से शैय्या सुख में कमी, शरीर के निचले हिस्से में कष्ट विशेषकर पैरों में, व्यापार में हानि अथवा धोखा, आर्थिक तनाव, व पशु से चोट होती है। केतु के अशुभ होने पर कुत्ते के काटने का योग होता है। सूर्य महादशा में अन्य ग्रह की अंतर्दशा फल 〰️ सूर्य की महादशा के उपरोक्त फल पूर्ण महादशा में कभी भी घटित हो सकते हैं परंतु अन्य ग्रह की अंतर्दशा में निम्न फल प्राप्त होते हैं। इन फलों का निर्धारण भी आप सूर्य के साथ जिस ग्रह की अंतर्दशा हो उसके बल व शुभाशुभ देखकर करें। सूर्य में सूर्य की अंतर्दशा👉 सूर्य में सूर्य की अंतर्दशा के फल स्वरुप राज्य लाभ, घर से दूर निवास, ज्वर जैसे रोग प्रभावित करते हैं। सूर्य के शुभ होने पर शुभ अशुभ होने पर अशुभ फल प्राप्त होते हैं। सूर्य में चंद्र की अंतर्दशा👉 इस दशा में जातक अपने शत्रुओं के लिए काल स्वरुप होता है। पुराने कष्ट में समस्या से मुक्ति पाता है। मकान सुख धन लाभ वह मित्रों के साथ अच्छा समय गुजरता है। यह सब सूर्य चंद्र की शुभ स्थिति में होता है। यदि क्षीण अथवा पापी व पीड़ित हो तो जलीय रोग भव्य अग्नि का डर होता है। सूर्य में मंगल की अंतर्दशा👉 इस दशा में व्यक्ति रोगी अथवा शल्य योग होता है। अपने ही परिवार के लोगों का विरोध मिलता है। धन के दुरुपयोग के साथ सरकारी कामकाज में हानि अथवा दंड का भय होता है। इस समय व्यक्ति को पुलिस के चक्करों से दूर रहना चाहिए वाहन चलाने में भी सावधानी रखनी चाहिए साथ ही अग्नि में विस्फोट से दूर रहें शरीर पर चोट अथवा ऑपरेशन का निशान बनता है। यह सब मंगल के अति अशुभ स्थिति में होने पर होता है यदि मंगल शुभ हो तो इन में कमी आती है। इसके साथ केतु की स्थिति भी देखनी चाहिए यदि केतु लग्नस्थ हो तो विशेष ध्यान रखें। सूर्य में राहु की अंतर्दशा👉 सिर में पीड़ा अथवा कष्ट नए-नए शत्रु बने चोरी अथवा अन्य रूप से धननाश का होना, नेत्र रोग अचानक दुर्घटना में कष्ट अधिक हो व्यक्ति का मन जिम्मेदारी से हटकर सांसारिक भोग-विलास में अधिक लगता है। सूर्य में गुरु की अंतर्दशा👉 पत्रिका में गुरु के शुभ व कारक होने की स्थिति में शत्रु नाश अनेक प्रकार से धन लाभ, घर में नित्य शुभ कार्य, ईश्वर आराधना में मन लगे परंतु कान में कष्ट व यक्ष्मा जैसे रोग हो, गुरु के पीड़ित होने पर अनेक ऐसे कष्ट प्राप्त होंगे जिसके बारे में व्यक्ति सपने में भी नहीं सोच पाता। सूर्य में शनि की अंतर्दशा👉 इस अंतर्दशा के फल स्वरुप अधिक खर्च इसकी पूर्ति के लिए कर्ज लेना पड़ सकता है।
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very nice article by Astro Ravi ji
ज्योतिष में सूर्य की सम्पूर्ण व्याख्या
बहुत अच्छा लेख
सूर्य के उपाय दोष एवं ज्योतिषय हर पहलू पर विश्लेषण वाला लेख