मंगल ग्रह

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Astro Rakesh Periwal 21st Jan 2020

मंगल ग्रह की उत्पत्ति का पौराणिक वृत्तांत। मंगल ग्रह की उत्पत्ति का एक पौराणिक वृत्तांत स्कंदपुराण के अवंतिका खण्ड में आता है | एक समय उज्जयिनी पुरी में अंधक नाम से प्रसिद्ध दैत्य राज्य करता था | उसके महापराक्रमी पुत्र का नाम कनक दानव था | एक बार उस महाशक्तिशाली वीर ने युद्ध के लिए इन्द्र को ललकारा तब इन्द्र ने क्रोधपूर्वक उसके साथ युद्ध करके उसे मार गिराया | उस दानव को मारकर वे अंधकासुर के भय से भगवान शंकर को ढूंढते हुए कैलाश पर्वत पर चले गये | इन्द्र ने भगवान चंद्रशेखर के दर्शन करके अपनी अवस्था उन्हें बतायी और प्रार्थना की, भगवन ! मुझे अंधकासुर से अभय दीजिये | इन्द्र का वचन सुनकर शरणागत वत्सल शिव ने इंद्र को अभय प्रदान किया और अंधकासुर को युद्ध के लिए ललकारा, युद्ध अत्यंत घमासान हुआ, और उस समय लड़ते – लड़ते भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी, उससे अंगार के समान लाल अंग वाले भूमिपुत्र मंगल का जन्म हुआ |अंगारक , रक्ताक्ष तथा महादेव पुत्र, इन नामो से स्तुति कर ब्राह्मणों ने उन्हें ग्रहों के मध्य प्रतिष्ठित किया, तत्पश्चात उसी स्थान पर ब्रह्मा जी ने मंगलेश्वर नामक उत्तम शिवलिंग की स्थापना की | वर्तमान में यह स्थान मंगलनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, जो उज्जैन में स्थित है | ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार वाराह कल्प में दैत्य राज हिरण्यकशिपू का भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा कर सागर में ले गया | भगवान् विष्णु ने वाराह अवतार ले कर हिरण्याक्ष का वध कर दिया तथा रसातल से पृथ्वी को निकाल कर सागर पर स्थापित कर दिया जिस पर परम पिता ब्रह्मा ने विश्व की रचना की | पृथ्वी सकाम रूप में आ कर श्री हरि की वंदना करने लगी जो वाराह रूप में थे | पृथ्वी के मनोहर सकाम रूप को देख कर श्री हरि ने काम के वशीभूत हो कर दिव्य वर्ष पर्यंत पृथ्वी के संग रति क्रीडा की | इसी संयोग के कारण कालान्तर में पृथ्वी के गर्भ से एक महातेजस्वी बालक का जन्म हुआ जिसे मंगल ग्रह के नाम से जाना जाता है | देवी भागवत में भी इसी कथा का वर्णन है | महाभारत के उद्योग पर्व में श्री कृष्ण से भेंट करते समय कर्ण ने उस समय की अशुभ ग्रह स्थिति का वर्णन करते हुए कहा था की इस समय शनि रोहिणी नक्षत्र में स्थित मंगल को पीड़ा दे रहा है | पुराणों में मंगल ग्रह का स्वरूप एवम प्रकृति मत्स्य पुराण के अनुसार मंगल चतुर्भुज ,लाल वर्ण का ,नवयुवक ,लाल रंग के पदार्थों का प्रतिनिधित्व करने वाला है | अग्निर्विकेश्याम जज्ञे तु युवासौ लोहिताधिपः अर्थात स्वयं अग्निदेव ही भूमि के गर्भ से मंगल के रूप में उत्पन्न हुए हैं | नारद पुराण में मंगल को पित्त प्रधान ,क्रूर दृष्टि वाला ,युवक ,चंचल स्वभाव का कहा गया है | ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह का स्वरूप एवम प्रकृति ज्योतिष के मान्य फलित ग्रंथों बृहज्जातक ,सारावली , फलदीपिका ,बृहत् पाराशर इत्यादि के अनुसार मंगल क्रूर दृष्टि वाला ,युवक ,पतली कमर वाला ,अग्नि के सामान कान्ति वाला ,रक्त वर्ण ,पित्त प्रकृति का ,साहसी ,चंचल ,लाल नेत्रों वाला ,उदार ,अस्थिर स्वभाव का है | मंगल की गति गरुड़ पुराण के अनुसार भूमिपुत्र मंगल का रथ स्वर्ण के समान कांचन वर्ण का है | उसमें अरुण वर्ण के अग्नि से प्रादुर्भूत आठ अश्व जुते हुए हैं | मंगल मार्गी और वक्री दोनों गति से चलते हैं तथा बारह राशियों का भ्रमण लगभग अठारह महीने में कर लेते हैं| वैज्ञानिक परिचय सौर मंडल में मंगल का स्थान सूर्य से चौथा है |Iron oxide की अधिकता के कारण इस का रंग लाल प्रतीत होता है | रोमन युद्ध के देवता के नाम पर इसका नाम Mars रखा गया है | मंगल के दो चंद्रमा Phobos और Deimos हैं | इसका क्षेत्रफल पृथ्वी से लगभग आधा है | यह सूर्य की परिक्रमा 687 दिन में तथा अपनी धुरी पर 24 घंटे 39 मिनट 35.244 सैकिंड में करता है | ज्योतिष शास्त्र में मंगल ज्योतिष शास्त्र में मंगल को पाप ग्रह की श्रेणी में रखा गया है | राशि मंडल में इसे मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामित्व प्राप्त है | यह मकर राशि में उच्च का तथा कर्क में नीच का होता है | मेष राशि में 12 अंश तक मूल त्रिकोण का होता है | मंगल अपने स्थान से चौथे ,सातवें और आठवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है |सूर्य ,चन्द्र ,गुरु से मैत्री ,शुक्र व शनि से समता तथा बुध से शत्रुता रखता है | जनम कुंडली में तीसरे और छटे घर का स्वामी होता है | मंगल अपने वार ,स्व नवांश,स्व द्रेष्काण,स्व तथा उच्च राशि ,रात्रिकाल , वक्री होने पर ,दक्षिण दिशा में तथा जनम कुंडली के दशम भाव में बलवान होता है | कारकत्व मंगल भाई ,साहस ,पराक्रम ,आत्मविश्वास ,खेलकूद,शारीरिक बल ,रक्त मज्जा ,लाल रंग के पदार्थ ,ताम्बा ,सोना ,कृषि ,मिटटी ,भूमि ,मूंगा ,शस्त्र ,सेना, पुलिस,अग्नि ,क्रोध ,ईंट ,हिंसा ,मुकद्दमें बाजी , शल्य चिकित्सा ,बारूद , मदिरा , युद्ध , चोरी ,विद्युत , शत्रु ,तीखा और कड़वा रस ,सुनार आदि का कारक कहा गया है | रोग जनम कुंडली में मंगल अस्त ,नीच या शत्रु राशि का ,छटे -आठवें -बारहवें भाव में स्थित हो ,पाप ग्रहों से युत या दृष्ट, षड्बल विहीन हो तो चेचक ,खसरा ,उच्च रक्त चाप ,खुजली ,फोड़ा फुंसी ,दुर्घटना ,जलन ,पित्त प्रकोप , बवासीर ,रक्त कुष्ठ , बिजली का करंट ,रक्त मज्जा की कमी ,मांसपेशियों की दुर्बलता इत्यादि रोगों से कष्ट हो सकता है | फल देने का समय मंगल अपना शुभाशुभ फल 28-32 वर्ष कि आयु में एवम अपनी दशाओं व गोचर में प्रदान करता है | युवा अवस्था पर भी इस का अधिकार कहा गया है| मंगल का राशि फल जन्म कुंडली में मंगल का मेषादि राशियों में स्थित होने का फल इस प्रकार है :- मेष में मंगल हो तो जातक तेजस्वी ,सत्यप्रिय ,वीर ,युद्ध प्रिय ,साहसी ,कार्य में तत्पर , भ्रमणशील ,धनी ,दानी, क्रोधी होता है | वृष में मंगल हो तो जातक अधिक बोलने वाला ,मंद धन व पुत्र से युत, द्वेषी ,अविश्वासी, उदंड ,अप्रिय भाषी ,संगीत रत , मित्र व बन्धुविरोधी ,पाप करने वाला होता है | मिथुन में मंगल हो तो जातक कष्ट को सहन करने वाला ,बहुत विषयों का ज्ञाता ,शिल्प कला में कुशल,विदेशगमनरत ,धर्मात्मा ,बुद्धिमान शुभचिंतक ,अधिक कार्यों में लीन होता है | कर्क में मंगल हो तो जातक परगृह निवासी,रोग व पीड़ा से विकल , अशांत ,कृषि से धन प्राप्त करने वाला,जल के कार्यों से धनी होता है सिंह में मंगल हो तो जातक असहनशील ,वीर ,मांसाहारी ,दूसरों की वस्तुओं का अपहरण करने वाला, पहली पत्नी से हीन ,धर्मफल हीन तथा क्रिया में उद्यत होता है | कन्या में मंगल हो तो जातक पूज्य,धनी ,प्रिय भाषी ,अधिक व्यय करने वाला ,संगीत प्रिय ,शत्रु से अधिक डरने वाला तथा स्तुति करने में चतुर होता है तुला मे मंगल हो तो जातक पर्यटन शील ,हीनांग ,दूषित व्यापार वाला ,युद्ध का इच्छुक ,दूसरे की वस्तु का उपभोग करने वाला ,पहली स्त्री से रहित होता है | वृश्चिकमें मंगल हो तो जातक कार्य चतुर ,चोर ,युद्ध प्रिय ,अपराधी ,द्वेष- हिंसा और अकल्याण में रूचि रखने वाला ,चुगलखोर ,विष –अग्नि व घाव से पीड़ित होता है | धनु में मंगल हो तो जातक कृशांग,कटु भाषी ,युद्ध कर्ता,अधिक मेहनत से सुखी,क्रोध के कारण अपने धन व सुख का नाशक होता है | मकर में मंगल हो तो जातक धन्य ,धनी ,सुख भोग से युक्त ,स्वस्थ ,प्रसिद्ध ,सेनापति ,युद्ध में विजय प्राप्त करने वाला ,सुशीला स्त्री का पति, स्वतंत्र होता है | कुम्भ में मंगल हो तो जातक विनय तथा पवित्रता से रहित ,वृद्धाकार ,अधिक रोम से युक्त देह वाला ,ईर्ष्यालु, निंदा व असत्य वादन से धन नष्ट कर्ता ,लाटरी जुए में धन खोने वाला ,दुखी ,मद्य पीने वाला भाग्य हीन होता है | मीन में मंगल हो तो जातक रोगी ,अल्प पुत्रवान ,परदेस वासी ,अपने बंधुओं से तिरस्कृत ,कपट व धूर्तता के कारण धन नष्ट करने वाला ,गुरु ब्राह्मण का अनादर करने वाला ,हीन बुध्धि का ,स्तुति प्रिय होता है | मंगल का सामान्य दशा फल जन्म कुंडली में मंगल स्व ,मित्र ,उच्च राशि -नवांश का ,शुभ भावाधिपति ,षड्बली ,शुभ युक्त -दृष्ट हो तो मंगल की शुभ दशा में साहस और पराक्रम से समस्त कार्यों की सिध्धि,भूमि लाभ ,धन धान्य व संपत्ति लाभ, भाई का सुख ,युद्ध व विवाद में शत्रु की पराजय ,व्यवसाय में सफलता ,पद प्राप्ति व पदोन्नति ,विदेश यात्रा होती है | लाल रंग के पदार्थों,ताम्बा व स्वर्ण धातु ,जुआ ,सर्प विष ,शस्त्र ,भूमि, आसव,मदिरा चोरी ,मुकद्दमे बाजी और गलत कार्यों से लाभ होता है |, खेल कूद और साहसिक कार्यों से लाभ होता है | दक्षिण दिशा में सफलता मिलती है | बल ,पौरुष व स्वाभिमान में वृद्धि होती है |खतरा उठा कर भी व्यक्ति अपने लक्ष्य की प्राप्ति करता है | |जिस भाव का स्वामी मंगल होता है उस भाव से विचारित कार्यों व पदार्थों में सफलता व लाभ होता है | यदि मंगल अस्त ,नीच शत्रु राशि नवांश का ,षड्बल विहीन ,अशुभभावाधिपति पाप युक्त दृष्ट हो तो मंगल दशा में राजा चोर अग्नि शत्रु बिजली व दुर्घटना से भय ,भाइयों से विवाद या उनको कष्ट ,क्रोध व आवेश की अधिकता ,दुष्टों की संगति ,ईर्ष्या व द्वेष की भावना रक्त विकार ,उच्च रक्त चाप ,फोड़ा फुंसी ,बवासीर ,अधर्म में प्रीति,विवाद में हार ,असफलता ,शारीरिक कमजोरी तथा हिंसा से भय होता है | जिस भाव का स्वामी मंगल होता है उस भाव से विचारित कार्यों व पदार्थों में असफलता व हानि होती है | गोचर में मंगल जन्म या नाम राशि से तीसरे ,छटे तथा ग्यारहवें स्थान पर मंगल शुभ फल देता है | जन्मकालीन चन्द्र से प्रथम स्थान पर मंगल का गोचर रक्त विकार असफलता,ज्वर,अग्नि,से हानि करता है | यात्रा में दुर्घटना का भय रहता है ,इस्त्री को कष्ट होता है | दूसरे स्थान पर मंगल का गोचर नेत्र दोष , कठोर वचन ,विद्या हानि ,परिवार में मतभेद ,कुभोजन व असफलता दिलाता है | तीसरे स्थान पर मंगल का गोचर धन लाभ, शत्रु पराजय ,प्रभाव में वृद्धि ,राज्य से लाभ , शुभ समाचार प्राप्ति कराता है | मन प्रसन्न रहता व भाग्य अनुकूल रहता है| चौथे स्थान पर मंगल का गोचर स्वजनों से विवाद ,सुख हीनता ,छाती में कफ विकार ,जल से भय करता है|जमीन –जायदाद की समस्या ,माँ को कष्ट ,जन विरोध का सामना होता है | | पांचवें स्थान पर मंगल का गोचर मन में अशांति ,उदर विकार,संतान कष्ट ,विद्या में असफलता करता है | मन पाप कार्यों की तरफ जाता है | छ्टे स्थान पर मंगल का गोचर धन लाभ ,उत्तम स्वास्थ्य ,शत्रु पराजय , यश मान में वृद्धि देता है| सातवें स्थान पर मंगल के गोचर से स्त्री से कलह ,स्त्री को कष्ट ,यात्रा में हानि ,दांत में पीड़ा ,व्यापार में हानि करता है | आठवें स्थान पर मंगल के गोचर से पित्त रोग ,विवाद ,शारीरिक कष्ट ,पाचन हीनता दुर्घटना अग्नि ,हिंसा व बिजली से भय होता है |गुदा सम्बन्धी रोग होता है | भाई से अनबन व कार्य हानि होती है | नवें स्थान पर मंगल के गोचर से संतान कष्ट ,भाग्य की विपरीतता ,सरकार की और से परेशानी होती है | धर्म के विरुद्ध आचरण होता है | कूल्हे में चोट का भय होता है | दसवें स्थान पर मंगल के गोचर से रोजगार में बाधा ,पिता को कष्ट व राज्य से प्रतिकूलता होती है | ग्यारहवें स्थान पर मंगल के गोचर से आय वृध्धि ,व्यापार में लाभ , आरोग्यता, भूमि लाभ,भाइयों को सुख ,कार्यों में सफलता ,शत्रु पराजय , मित्र सुख व लाल पदार्थों से लाभ होता है | बारहवें स्थान पर मंगल के गोचर से अपव्यय , स्थान हानि,स्त्री को कष्ट , शारीरिक कष्ट ,मानसिक चिंता होती है तथा किसी गलत कार्य में रूचि होती है | मंगल शान्ति के उपाय जन्मकालीन मंगल निर्बल होने के कारण अशुभ फल देने वाला हो तो निम्नलिखित उपाय करने से बलवान हो कर शुभ फल दायक हो जाता है | रत्न धारण – लाल रंग का मूंगा सोने या ताम्बे की अंगूठी में मृगशिरा ,चित्रा या अनुराधा नक्षत्रों में जड़वा कर मंगलवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , लाल पुष्प, गुड ,अक्षत आदि से पूजन कर लें | दान व्रत ,जाप – मंगलवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र का १०००० संख्या में जाप करें | मंगलवार को गुड शक्कर ,लाल रंग का वस्त्र और फल ,ताम्बे का पात्र ,सिन्दूर ,लाल चन्दन केसर ,मसूर की दाल इत्यादि का दान करें | श्री हनुमान चालीसा का पाठ करना भी शुभ रहता है |


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।