जानकारी नयी नहीं लेकिन हमारा ध्यान इस ओर नहीं जाता, आप लोग प्रेम से पोस्ट पढ़ते रहें हम आज भी ज्योतिष की ही बात कर रहे अध्यात्म की नहीं । वेद से प्राप्त यह ज्ञान है तो इश्वर की बात होगी ही ।
मैत्रेय जी ने सृष्टिक्रम से संबंधित जब प्रश्न किया तो महर्षि पराशर जी ने बताया कि -
अपने एक अंश से ही जगत की सृष्टि, पालन व संहार करने वाले व्यक्तात्मा विष्णु तीनों गुणों से युक्त हैं तथा अपने गुण प्रधान शक्ति से ही जगत का सृष्टि, पालन व संहार करते हैं ।
ब्रह्मा - भू शक्ति से युक्त ब्रह्मरूप होकर त्रिभुवन की सृष्टि करते हैं । (सतोगुण से युक्त)
विष्णु - श्री शक्ति से युक्त होकर त्रिभुवन का पालन करते हैं । (रजोगुण से युक्त)
शिव - नीलशक्ति से युक्त होकर संहार करते हैं । (तमोगुण से युक्त)
यहां महर्षि पराशर कहते हैं सभी जीवों में परमात्मा रहते हैं और यह समस्त भुवन परमात्मा में ही स्थित होता है । सभी जीवों में जीवांश एवं परमात्मांश होते हैं । इनमें किसी में जीवांश अधिक होते हैं और किसी में परमात्मा अंश अधिक होते हैं ।
आगे जीवांश एवं परमात्मांश यहां बताने का औचित्य एवं किसमें जीवांश अधिक होता है तथा किसमें परमात्मांश अधिक होते हैं इसकी जानकारी लेते हुए ज्योतिष को समझने का प्रयास करेंगे ।