सिर्फ 10 महामानव ही जीवित नहीं हैं,

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Ravinder Pareek 02nd Oct 2020

अद्भुत है हिमालय का रहस्य, इसीलिए आज भी रहते हैं रामायण और महाभारत काल के ये पात्र........

सिर्फ १० महामानव ही जीवित नहीं हैं, १० महामानव जीवित कह कर प्रचार किया गया है, प्राचीन काल के जीवित व्यक्तियों की संख्या कहीं अधिक है। वेदव्यास, राजा बली, कृपाचार्य, अत्रि मुनि, अश्व्श्थामा, विभीषण, जामवंत, हनुमान जी, दुर्वासा ऋषि, अगस्त ऋषि, वशिष्ठ ऋषि, राजा मान्धाता और मध्य काल के अशोक के दरबार के 9 महामानव, पूर्व-आधुनिक काल के शंकराचार्य जी के गुरु, लिहारी जी महाराज, शिवाजी के गुरु रामदास आदि ना जाने इतने लोग आज भी जीवित हैं और हिमालय में ही कहीं निवास कर रहे हैं .....              

हिमालय में आज भी हजारों ऐसे स्थान हैं जिनको देवी-देवताओं और तपस्वियों के रहने का स्थान माना गया है। हिमालय में जैन, बौद्ध और हिन्दू संतों के कई प्राचीन मठ और गुफाएं हैं। मान्यता है कि गुफाओं में आज भी कई ऐसे तपस्वी हैं, जो हजारों वर्षों से तपस्या कर रहे हैं। इस संबंध में हिन्दुओं के दसनामी अखाड़े, नाथ संप्रदाय के सिद्ध योगियों के इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है। उनके इतिहास में आज भी यह दर्ज है कि हिमालय में कौन-सा मठ कहां पर है और कितनी गुफाओं में कितने संत विराजमान हैं। इसी संदर्भ में यह भी जानिए कि महाभारत और रामायण काल के लोग आज भी हिमालय में क्यों रहते हैं।

हिमालय का विस्तार कहां तक है........

भारत का प्रारंभिक इतिहास हिमालय से जुड़ा हुआ है। भारत के राज्य जम्मू और कश्मीर, सियाचिन, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम, असम, अरुणाचल तक हिमालय का विस्तार है। इसके अलावा उत्तरी पाकिस्तान, उत्तरी अफगानिस्तान, तिब्बत, नेपाल और भूटान देश हिमालय के ही हिस्से हैं। यह सभी अखंड भारत का हिस्सा हैं।

रामायण काल के लोग ....................

अत्रि ........ 
अत्रि नाम से कई ऋषि हो गए हैं। एक हैं ब्रह्मा के पुत्र अत्रि। इन्होंने कर्दम की पुत्री अनुसूया से विवाह किया था। इनके ही पुत्र दत्तात्रेय, चन्द्रमा और दुर्वासा थे। उनका आखिरी अस्तित्व चित्रकूट में सीता-अनुसूया संवाद के समय तक प्रकट हुआ था। कहते हैं कि वे भी हिमालय के किसी क्षेत्र में रहते हैं।

दुर्वासा.......... 
दुर्वासा ऋषि का नाम सभी ने सुना होगा। उन्होंने सतयुग में इंद्र को भी शाप दिया था। उन्हें राम के युग में भी देखा गया और वे द्वापर युग में श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को भी शाप देते हुए नजर आते हैं। कहते हैं कि वे भी सशरीर आज भी जीवित हैं और हिमालय के ही किसी क्षेत्र में स्थित हैं।

वशिष्ठ ....... 
वशिष्ठ नाम से कालांतर में कई ऋषि हो गए हैं। एक वशिष्ठ ब्रह्मा के पुत्र हैं, दूसरे इक्क्षवाकु के काल में हुए, तीसरे राजा हरिशचंद्र के काल में हुए और चौथे राजा दिलीप के काल में, पांचवें राजा दशरथ के काल में हुए और छठवें महाभारत काल में हुए। पहले ब्रह्मा के मानस पुत्र, दूसरे मित्रावरुण के पुत्र, तीसरे अग्नि के पुत्र कहे जाते हैं। पुराणों में कुल बारह वशिष्ठों का जिक्र है। हालांकि विद्वानों के अनुसार कहते हैं कि एक वशिष्ठ ब्रह्मा के पुत्र हैं, दूसरे इक्क्षवाकुवंशी त्रिशुंकी के काल में हुए जिन्हें वशिष्ठ देवराज कहते थे। तीसरे कार्तवीर्य सहस्रबाहु के समय में हुए जिन्हें वशिष्ठ अपव कहते थे। चौथे अयोध्या के राजा बाहु के समय में हुए जिन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि (प्रथम) कहा जाता था। पांचवें राजा सौदास के समय में हुए थे जिनका नाम वशिष्ठ श्रेष्ठभाज था। छठें वशिष्ठ राजा दिलीप के समय हुए जिन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि (द्वितीय) कहा जाता था। इसके बाद सातवें भगवान राम के समय में हुए जिन्हें महर्षि वशिष्ठ कहते थे और आठवें महाभारत के काल में हुए जिनके पुत्र का नाम पराशर था। इनके अलावा वशिष्ठ मैत्रावरुण, वशिष्ठ शक्ति, वशिष्ठ सुवर्चस जैसे दूसरे वशिष्ठों का भी जिक्र आता है। वेदव्यास की तरह वशिष्ठ भी एक पद हुआ करता था। लेकिन कहा जाता है कि जो ब्रह्मा के पुत्र थे वे आज भी जीवित हैं और वे ही हर काल में प्रकट होते हैं। उनका स्थान हिमालय के किसी क्षेत्र में बताया जाता है।

राजा बलि .................
असुरों के राजा बलि की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। दान-पुण्य करने में वह कभी पीछे नहीं रहता था। उसकी सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसे अपनी शक्तियों पर घमंड था और वह खुद को ईश्वर के समकक्ष मानता था और वह देवताओं का घोर विरोधी था। विष्णु ने कश्यप ऋषि के यहां वामन रूप में जन्म लेकर राजा बलि से दान में तीन पग धरती मांग ली थी। शुक्राचार्य ने राजा बलि को इसके लिए सतर्क किया था लेकिन राजा बलि ने उसे सीधा साधा ब्रामण समझकर तीन पग धरती दान में देने का संकल्प व्यक्त कर दिया। तब वामन रूप विष्णु ने विराट रूप धर दो पगों में तीनों लोक नाप लिए। जिसके बाद तीसरा पग बलि ने अपने सिर पर रखने को कहा जिसके बाद वो पाताल लोक चले गए। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न हुए और उन्होंने उसे न केवल चिरं‍जीवी होने का वरदान दिया बल्कि वे खुद राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए। कहते हैं कि राजा बलि आज भी जीवित हैं और वह हिमालय की किसी गुफा या जंगल में रहते हैं।

जामवंत .........
गंधर्व माता और अग्नि के पुत्र जामवन्त को ऋक्षपति कहा जाता है। परशुराम और हनुमान से भी लंबी उम्र है जामवन्तजी की, क्योंकि उनका जन्म सतयुग में राजा बलि के काल में हुआ था। परशुराम से बड़े हैं जामवन्त और जामवन्त से बड़े हैं राजा बलि। जामवन्त सतयुग और त्रेतायुग में भी थे और द्वापर में भी उनके होने का वर्णन मिलता है। जामवंतजी ने ही हनुमानजी को उनकी शक्तियों को याद दिलाया था। श्रीकृष्ण की एक पत्नी जामवन्त की पुत्री ही थीं। जामवंतजी को चिरं‍जीवियों में शामिल किया गया है जो कलियुग के अंत तक रहेंगे। कहते हैं कि हिमालय की किसी गुफा में आज भी रहत हैं। संभवत: वह किंपुरुष नामक स्थान है।

परशुराम .........
भगवान विष्णु के छठें अवतार परशुराम कलिकाल के अंत तक सशरीर रहेंगे। परशुराम सतयुग में थे जब उन्होंने अपने फरसे से श्रीगणेशजी का एक दांत तोड़ दिया था। त्रेतायुग में भगवान राम द्वारा शिवजी का धनुष तोड़े जाने के समय वे आए थे और उन्होंने राम को आशीर्वाद दिया था। इसके बाद द्वापर युग में उन्होंने श्रीकृष्ण को चक्र प्रदान किया था। कुछ लोग कहते हैं कि भगवान श्री हरि विष्णु जी के कलियुग में होने वाले कल्कि अवतार में भगवान को भगवान परशुराम जी द्वारा ही वेद-वेदाङ्ग की शिक्षा प्रदान की जाएगी। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिए कहेंगे। भगवान परशुराम जी हनुमान जी, विभीषण की भांति चिरंजीवी हैं तथा महेंद्र पर्वत पर निवास करते हैं। एक महेंद्र पर्वत हिमालय के क्षेत्र में है तो दूसरा कहते हैं कि महेंद्रगिरि पर्वत उड़ीसा के गजपति जिले के परालाखेमुंडी में स्थित है।

मार्कण्डेय ...........
भगवान शिव के परम भक्त ऋषि मार्कण्डेय ने कठोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया था, कहा जाता है इन्होंने महामृत्युंजय जाप को सिद्ध करके मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली थी और यह हमेशा के लिए अजर अमर हो गए। ऐसा कहा जाता है कि वे भी हिमालय की किसी गुफा में रहते हैं।

हनुमान .........
हनुमानजी को एक कल्प तक इस धरती पर रहने का वरदान मिला है। अर्थात कलिकाल के अंत के बाद भी। श्रीमद भागवत पुराण के अनुसार हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं। गंधमादन पर्वत तो तीन हैं, पहला हिमवंत पर्वत के पास, दूसरा उड़िसा में और तीसरा रामेश्वरम के पास। अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुंचे थे जो हिमवंत पर्वत के पास था। इंद्रलोक में जाते समय अर्जुन को हिमवंत और गंधमादन को पार करते दिखाया गया है। मान्यता है कि हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में गंधमादन पर्वत स्थित है। दक्षिण में केदार पर्वत है। सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। आज यह क्षेत्र तिब्बत में है। यहीं कहीं हनुमानजी हैं।

विभीषण ........
रावण के छोटे भाई विभीषण। जिन्होंने राम के नाम की महिमा जपकर अपने भाई के विरु‍द्ध लड़ाई में उनका साथ दिया और जीवन भर राम नाम जपते रहे। उन्होंने भगवान राम को रावण की मृत्यु का राज बताया था। भगवान राम ने प्रसन्न होकर विभीषण को चिरंजीवी होने का वरदान दिया था। विभीषण भी हिमलय के किसी क्षेत्र में रहते हैं।

महाभारत काल के लोग ........

अश्वत्थामा .......
महाभारत काल में द्रौपदी के सो रहे पुत्रों को वध करने और उत्तरा के गर्भ में ब्राह्मास्त्र उतारने के अपराध के चलते भगवान श्रीकृष्ण ने अश्‍वत्थामा को तीन हजार वर्षों तक सशरीर भटकते रहने का शाप दे दिया था। तब अश्‍वत्‍थामा ने ऋषि वेद व्यासजी से कहा था कि आप जहां रहेंगे मैं भी वहीं रहूंगा।

ऋषि व्यास .........
वेद के चार भाग करने के कारण कृष्ण द्वैपायन ऋषि को वेद व्यास कहा जाने लगा। उन्होंने ही महाभारत और पुराणों की रचना की थी। वेद व्यास, ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। मान्यताओं के अनुसार ये भी कई युगों से जीवित हैं और कलिकाल में भगवान के अवतार के समय प्रकट होंगे। कहा जाता हैं कि वर्तमान में हिमालय में ही रहते हैं जबकि कुछ लोगों के अनुसार वे गंगा तट पर रहते हैं।

कृपाचार्य ........
गौतम ऋषि के पुत्र शरद्वान और शरद्वार के पुत्र कृपाचार्य महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे और वह जिंदा बच गए 18 महायोद्धाओं में से एक थे। कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। उन्हें भी चिरंजीवी रहने का वरदान था। कहते हैं कि वे भी हिमालय के किसी क्षेत्र में रहते हैं।

क्यों रहते हैं लोग हिमालय में ........

हिमालय क्षेत्र में प्रकृति के सैकड़ों चमत्कार देखने को मिलेंगे। एक ओर जहां सुंदर और अद्भुत झीलें हैं तो दूसरी ओर हजारों फुट ऊंचे हिमखंड। हजारों किलोमीटर क्षेत्र में फैला हिमालय चमत्कारों की खान है। कहते हैं कि हिमालय की वादियों में रहने वालों को कभी दमा, टीबी, गठिया, संधिवात, कुष्ठ, चर्मरोग, आमवात, अस्थिरोग और नेत्र रोग जैसी बीमारी नहीं होती। प्राचीन काल में हिमालय में ही देवता रहते थे। मुण्डकोपनिषद् के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है। इनका केंद्र हिमालय की वादियों में उत्तराखंड में स्थित है। इसे देवात्मा हिमालय कहा जाता है। पुराणों के अनुसार प्राचीनकाल में विवस्ता नदी के किनारे मानव की उत्पत्ति हुई थी।

हनुमानजी हिमालय के एक क्षेत्र से ही संजीवनी का पर्वत उखाड़कर ले गए थे। हिमालय ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां दुनियाभर की जड़ी-बूटियों का भंडार है। हिमालय की वनसंपदा अतुलनीय है। हिमालय में लाखों जड़ी-बूटियां हैं जिससे व्यक्ति के हर तरह के रोग को दूर ही नहीं किया जा सकता बल्कि उसकी उम्र को दोगुना किया जा सकता है। मान्यता है कि कस्तूरी मृग और येति का निवास हिमालय में ही है। येति या यति एक विशालकाय हिम मानव है जिसे देखे जाने की घटना का वर्णन हिमालय के स्थानीय निवासी करते आए हैं। येति आज भी एक रहस्य है।
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Suman Sharma

very good knowledge


Very good and important or informative meaningful articles


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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