सनातन संस्कृति गणना सहित

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Ravinder Pareek 08th Oct 2020

*🛕सनातन संस्कृति को जानने के लिए पढ़े👇*

⛳वैदिक_गणनायें
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )

🛕क्रति = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
🛕 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
🛕2 त्रुति = 1 लव ,
🛕1 लव = 1 क्षण
🛕 30 क्षण = 1 विपल ,
🛕60 विपल = 1 पल
🛕 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
🛕 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
🛕 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
🛕7 दिवस = 1 सप्ताह
🛕4 सप्ताह = 1 माह ,
🛕2 माह = 1 ऋतू
🛕 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
🛕 100 वर्ष = 1 शताब्दी
🛕 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
🛕 432 सहस्राब्दी = 1 युग
🛕 2 युग = 1 द्वापर युग ,
🛕 3 युग = 1 त्रैता युग ,
🛕 4 युग = सतयुग
🛕 सतयुग त्रेतायुग द्वापरयुग कलियुग = 1 महायुग
🛕 76 महायुग = मनवन्तर ,
🛕 1000 महायुग = 1 कल्प
🛕 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
🛕 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
🛕 महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
🛕दो लिंग : नर और नारी ।
🛕दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
🛕दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
🛕दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

🛕तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
🛕तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
🛕तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
🛕तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
🛕तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
🛕तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
🛕तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
🛕तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
🛕तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
🛕तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
🛕तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
🛕तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
🛕तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

🛕चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
🛕चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
🛕चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
🛕चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
🛕चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
🛕चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
🛕चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
🛕चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
🛕चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
🛕चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
🛕चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
🛕चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
🛕चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
🛕चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
🛕चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
🛕चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
🛕चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

🛕पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
🛕पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
🛕पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
🛕पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
🛕पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
🛕पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
🛕पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
🛕पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
🛕पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
🛕पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
🛕पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
🛕पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
🛕पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
🛕पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

🛕छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
🛕छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
🛕छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
🛕छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

🛕सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
🛕सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
🛕सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
🛕सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
🛕सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
🛕सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
🛕सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, 🛕कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
🛕सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
🛕सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
🛕सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
🛕सात रंग : बैंगनी, जामुनी

, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
😡सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
🛕सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
🛕सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

🛕आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
🛕आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
🛕आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
🛕आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
🛕आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, पीतल, लोहा, पारा।

🛕नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
🛕नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
🛕नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
🛕नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

🛕दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
🛕दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
🛕दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
🛕दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
🛕दस सती : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

*👏उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर हैं*👏
🙏🛕🙏🛕🙏🛕🙏🛕🙏🛕 🙏 🛕


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Comments

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Suman Sharma

Very nice


Suman Sharma

very nice article by Astro Ravi ji


Articles suitable for knowing Sanatan culture


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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