बारह भाव

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Jyotish Vimal Jain 15th Aug 2020

*जन्मकुंडली के प्रत्येक भाव से विचारणीय विषय* *प्रथम अथवा तनु भाव* जन्मकुंडली में प्रथम भाव से लग्न, उदय, शरीर,स्वास्थ्य, सुख-दुख, वर्तमान काल, व्यक्तित्व, आत्मविश्वास, आत्मसम्मान, जाति, विवेकशीलता, आत्मप्रकाश, आकृति( रूप रंग) मस्तिष्क, उम्र पद, प्रतिष्ठा, धैर्य, विवेकशक्ति, इत्यादि का विचार करना चाहिए। किसी भी व्यक्ति के सम्बन्ध में यह देखना है कि उसका स्वभाव रंगरूप कैसा है तो इस प्रश्न का जबाब प्रथम भाव ही देता है। *द्वितीय अथवा धन भाव* जन्मकुंडली में दूसरा भाव धन, बैंक एकाउण्ट, वाणी, कुटुंब-परिवार, पारिवारिक, शिक्षा, संसाधन, माता से लाभ, चिट्ठी, मुख, दाहिना नेत्र, जिह्वा, दाँत इत्यादि का उत्तरदायी भाव है।यदि यह देखना है कि जातक अपने जीवन में धन कमायेगा या नहीं तो इसका उत्तर यही भाव देता है। *तृतीय अथवा सहज भाव* यह भाव जातक के लिए पराक्रम, छोटा भाई-बहन, धैर्य, लेखन कार्य, बौद्धिक विकास, दाहिना कान, हिम्मत, वीरता, भाषण एवं संप्रेषण, खेल, गला कन्धा दाहिना हाँथ, का उत्तरदायी भाव है। यदि यह देखना है कि जातक अपने भाई बहन के साथ कैसा सम्बन्ध है तो इस प्रश्न का जबाब यही भाव देता है। *चतुर्थ अथवा कुटुंब भाव* यह भाव जातक के जीवन में आने वाली सुख, भूमि, घर, संपत्ति, वाहन, जेवर, गाय-भैस, जल, शिक्षा, माता, माता का स्वास्थ्य, ह्रदय, पारिवारिक प्रेम छल, उदारता, दया, नदी, घर की सुख शांति जैसे विषयों का उत्तरदायी भाव है। यदि किसी जातक की कुंडली में यह देखना है कि जातक का घर कब बनेगा तथा घर में कितनी शांति है तो इस प्रश्न का उत्तर चतुर्थ भाव से मिलता है। *पंचम अथवा संतान भाव* जन्मकुंडली में पंचम भाव से संतान सुख, बुद्धि, शिक्षा, विद्या, शेयर संगीत मंत्री, टैक्स, भविष्य ज्ञान, सफलता, निवेश, जीवन का आनन्द,प्रेम, सत्कर्म, पेट,शास्त्र ज्ञान यथा वेद उपनिषद पुराण गीता, कोई नया कार्य, प्रोडक्शन, प्राण आदि का विचार करना चाहिए। यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक की पढाई या संतान सुख कैसा है तो इस प्रश्न का जबाब पंचम अर्थात संतान भाव ही देगा अन्य भाव नहीं । *षष्ठ अथवा रोग भाव* जन्मकुंडली में षष्ठ भाव से रोग,दुख-दर्द, घाव, रक्तस्राव, दाह, अस्त्र, सर्जरी, डिप्रेशन,शत्रु, चोर, चिंता, लड़ाई झगड़ा, केश मुक़दमा, युद्ध, दुष्ट, कर्म, पाप, भय, अपमान, नौकरी आदि का विचार करना चाहिए। यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक का स्वास्थ्य कैसा रहेगा या केश में मेरी जीत होगी या नहीं तो इस प्रश्न का जबाब षष्ठ भाव ही देगा अन्य भाव नहीं । *सप्तम अथवा विवाह भाव* जन्मकुंडली में सप्तम भाव से पति-पत्नी, ह्रदय की इच्छाए ( काम वासना), मार्ग,लोक, व्यवसाय, साझेदारी में कार्य, विवाह ( Marriage) , कामेच्छा, लम्बी यात्रा आदि पर विचार किया जाता है। इस भाव को पत्नी वा पति अथवा विवाह भाव भी कहा जाता है । यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक की पत्नी वा पति कैसा होगा या साझेदारी में किया गया कार्य सफल होगा या नही का विचार करना हो तो इस प्रश्न का जबाब सप्तम भाव ही देगा अन्य भाव नहीं । *अष्टम अथवा मृत्यु भाव* जन्मकुंडली में अष्टम भाव से मृत्यु, आयु, मांगल्य ( स्त्री का सौभाग्य – पति का जीवित रहना), परेशानी, मानसिक बीमारी ( Mental disease) , संकट, क्लेश, बदनामी, दास ( गुलाम), बवासीर रोग, गुप्त स्थान में रोग, गुप्त विद्या, पैतृक सम्पत्ति, धर्म में आस्था और विश्वास, गुप्त क्रियाओं, तंत्र-मन्त्र अनसुलझे विचार, चिंता आदि का विचार करना चाहिए। इस भाव को मृत्यू भकव भी कहा जाता है यदि किसी की मृत्यु का विचार करना है तो यह भाव बताने में सक्षम है। *नवम अथवा भाग्य भाव* जन्मकुंडली में निर्धारित नवम भाव से हमें भाग्य, धर्म,अध्यात्म, भक्ति, आचार्य- गुरु, देवता, पूजा, विद्या, प्रवास, तीर्थयात्रा, बौद्धिक विकास, और दान इत्यादि का विचार करना चाहिए। इस स्थान को भाग्य स्थान तथा त्रिकोण भाव भी कहा जाता है। यह भाव पिता( उत्तर भारतीय ज्योतिष) का भी भाव है इसी भाव को पिता के लिए लग्न मानकर उनके जीवन के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण भविष्यवाणी की जाती है। यह भाव हमें बताता है कि हमारी मेहनत और अपेक्षा में भाग्य का क्या रोल है क्या जितना मेहनत कर रहा हूँ उसके अनुरूप भाग्यफल भी मिलेगा । क्या मेरे तरक्की में भाग्य साथ देगा इत्यादि प्रश्नों का उत्तर इसी भाव से मिलता है। *दशम अथवा कर्म भाव* जन्मकुंडली में निर्धारित दशम भाव से राज्य, मान-सम्मान, प्रसिद्धि, नेतृत्व, पिता( दक्षिण भारतीय ज्योतिष), नौकरी, संगठन, प्रशासन, जय, यश, यज्ञ, हुकूमत, गुण, आकाश, स्किल, व्यवसाय, नौकरी तथा व्यवसाय का प्रकार, इत्यादि का विचार इसी भाव से करना चाहिए। कुंडली में दशम भाव को कर्म भाव भी कहा जाता है । यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक कौन सा काम करेगा, व्यवसाय में सफलता मिलेगी या नहीं , जातक को नौकरी कब मिलेगी और मिलेगी तो स्थायी होगी या नहीं इत्यादि का विचार इसी भाव से किया जाता है। *एकादश अथवा लाभ भाव* जन्मकुंडली में निर्धारित एकादश भाव से लाभ, आय, संपत्ति, सिद्धि, वैभव, ऐश्वर्य, कल्याण, बड़ा भाई-बहन,बायां कान, वाहन, इच्छा, उपलब्धि, शुभकामनाएं, धैर्य, विकास और सफलता इत्यादि पर विचार किया जाता है। यही वह भाव है जो जातक को उसकी इच्छा की पूर्ति करता है । इससे लाभ का विचार किया जाता है किसी कार्य के होने या न होने से क्या लाभ या नुकसान होगा उसका फैसला यही भाव करता है। वस्तुतः यह भाव कर्म का संचय भाव है अर्थात आप जो काम कर रहे है उसका फल कितना मिलेगा इसकी जानकारी इसी भाव से प्राप्त की जा सकती है। *द्वादश वा व्यय भाव* जन्मकुंडली में निर्धारित द्वादश भाव से व्यय, हानि, रोग, दण्ड, जेल, अस्पताल, विदेश यात्रा, धैर्य, दुःख, पैर, बाया नेत्र, दरिद्रता, चुगलखोर,शय्या सुख, ध्यान और मोक्ष इत्यादि का विचार करना चाहिए । इस भाव को रिफ भाव भी कहा जाता है। जीवन पथ में आने वाली सभी प्रकार क़े नफा नुकसान का लेखा जोखा इसी भाव से जाना जाता है। यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक विदेश यात्रा (abroad Travel) करेगा या नहीं यदि करेगा तो कब करेगा, शय्या सुख मिलेगा या नहीं इत्यादि का विचार इसी भाव से किया जाता है।


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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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