*पितृपक्ष श्राद्धों का पक्ष 18 सितंबर से 02 अक्टूबर तक* शास्त्रोंनुसार भाद्रपद शुक्लपक्ष पूर्णिमा से श्राद्धपक्ष प्रारंभ होकर आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तिथि तक होता है। वराह पुराण के अनुसार चारों वर्णों के लोग श्राद्ध के अधिकारी है। शहर के धारूहेड़ा चुंगी स्थित ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य अजय शास्त्री के अनुसार अगर कुंडली में पितृदोष है तो श्राद्धपक्ष में यह उपाय करें। पितृ गायत्री का जप करावें, पितृ सूक्त का पाठ करें। पितरों का श्राद्धतर्पण करें, पिण्ड दान करें, पीपल व बरगद का वृक्षारोपण करें। श्राद्धपक्ष में पंचबली भोग लगाना चाहिए। गाय, कौआ, कुत्ता, चींटी, ब्राह्मण आदि को भोजन कराना चाहिए, इसमें अग्निग्रास मुख्य है। लगातार 16 दिनों तक गौमाता की सेवा करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य शास्त्री ने बताया है पितृपक्ष में अपने पूर्वजों को याद कर उनका तर्पण किया जाता है। इन दिनों पूर्वजों के निमित्त हवन करें,दान पुण्य किया जाता है, ताकि पूर्वजों की कृपा बनी रहे। *पितरों का श्राद्ध कैसे करें* पूर्वजों का जिस तिथि में अग्निसंस्कार होता है, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि को श्राद्धतर्पण, पिंडदान, आदि करना चाहिए। जलमें कालेतिल, जौ, कुश, दूध, सफेद पुष्प डालकर विधि पूर्वक तर्पण करना चाहिए। अंगुष्ठका के निकले भाग से पितरों का तर्पण करना चाहिए। *सभी श्राद्धों का काल विभाग* पूर्वान्ह दैविक, मध्यान्ह एकोदिष्ट, अपराह्न पार्वण तथा प्रातःकाल वृद्धि निमित्त श्राद्ध करना चाहिए। कृष्ण पक्ष में दिन के नवम मुहूर्त तक विद्वानों का श्राद्ध करना चाहिए। यदि किसी के मृत्यु का दिन का ज्ञात न हो, परंतु मृत्युमास ज्ञात हो तो उस मास की अमावस्या को ही उसकी श्रद्धा करना चाहिए। अज्ञात तिथि वालों का श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या को करना चाहिए। शास्त्री ने बताया कि अश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक, ब्रह्मांड ऊर्जा तथा उस ऊर्जा में पितृप्राण व्याप्त होता है। भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार का ऋण होता है पितृऋण, देवऋण, ऋषिऋण, आदि इनमें से प्रमुख पितृऋण होता है। पितरों के आशीर्वाद से वंश विस्तार व धन-धान्य की वृद्धि होती है 16 दिनों की अवधि को पितृपक्ष अर्थात श्राद्ध पक्ष कहते हैं हिंदू धर्म में श्राद्धपक्ष का विशेष महत्व होता है। श्राद्ध पक्ष तिथि निर्णय 18 सितंबर प्रतिपदा श्राद्ध, 19 सितंबर द्वितीया श्राद्ध, 20 सितंबर तृतीया श्राद्ध, 21 सितंबर चतुर्थी श्राद्ध, 22 सितंबर पंचमी श्राद्ध, 23 सितंबर षष्ठी श्राद्ध, 24 सितंबर सप्तमी श्राद्ध, 25 सितंबर अष्टमी श्राद्ध, 26 सितंबर नवमी श्राद्ध, 27 सितंबर दशमी श्राद्ध, 28 सितंबर एकादशी श्राद्ध, 29 सितंबर द्वादशी श्राद्ध, 30 सितंबर त्रयोदशी श्राद्ध, 1 अक्टूबर चतुर्दशी श्राद्ध, 2 अक्टूबर सर्वपितृ अमावस्या को पूर्णिमा तथा अज्ञात तिथि वालों का श्राद्ध कर सकते हैं।