त्रिफला के फायदे।

Share

Kishore Kumar Purohit 30th Sep 2020

वह सब जो आप त्रिफला के विषय मे नही जानते!

त्रिफला खाकर हाथी को बगल में दबा कर 4 कोस ले जाएँ!

त्रिफला के विषय मे कहा जाता है कि

हरड़ बहेड़ा आंवला घी शक्कर संग खाए
हाथी दाबे कांख में और चार कोस ले जाए (1 कोस = 3-4 km)

वात पित कफ को संतुलित रखने वाला सर्वोत्तम फल त्रिफला वाग्भट्ट ऋषि के अनुसार इस धरती का सर्वोत्तम फल त्रिफला लेने के नियम-

त्रिफला के सेवनसे अपने शरीरका कायाकल्प कर जीवन भर स्वस्थ रहा जा सकता है।

आयुर्वेद की महान देन त्रिफला से हमारे देश का आम व्यक्ति परिचित है व सभी ने कभी न कभी कब्ज दूर करने के लिए इसका सेवन भी जरुर किया होगा पर बहुत कम लोग जानते है इस त्रिफला चूर्ण जिसे आयुर्वेद रसायन मानता है।

इससे अपने कमजोर शरीर का कायाकल्प किया जा सकता है। बस जरुरत है तो इसके नियमित सेवन करने की, क्योंकि त्रिफला का वर्षों तक नियमित सेवन ही आपके शरीर का कायाकल्प कर सकता है।

सेवन विधि - सुबह हाथ मुंह धोने व कुल्ला आदि करने के बाद खाली पेट ताजे पानी के साथ इसका सेवन करें तथा सेवन के बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ ना लें, इस नियम का कठोरता से पालन करें। यह तो हुई साधारण विधि पर आप कायाकल्प के लिए नियमित इसका इस्तेमाल कर रहे है तो इसे विभिन्न ऋतुओं के अनुसार इसके साथ गुड़, शहद,गौमुत्र,मिश्री,सैंधा नमक आदि विभिन्न वस्तुएं मिलाकर ले।

मात्रा का निर्धारण उम्र के अनुसार किया जायेगा। जितने वर्ष की उम्र है उतने रत्ती त्रिफला का दिन में एक बार सेवन करना है। 1 रत्ती = 0.12 ग्राम। उदहारण के लिए यदि उम्र 50 वर्ष है, तो 50 * 0.12 = 6.0 ग्राम त्रिफला एक बार में खाना है। बताई गई मात्रा का कड़ाई से पालन करें। मर्ज़ी से या अनुमान से इसका सेवन न करें अन्यथा शरीर में कई प्रकार के उत्पात उत्पन्न हो सकते है।

त्रिफला का पूर्ण कल्प 12 वर्ष का होता है तो 12 वर्ष तक लगातार सेवन कर सकते हैं।

हमारे यहाँ वर्ष भर में छ: ऋतुएँ होती है और प्रत्येक ऋतू में दो दो मास।

1- बसंत ऋतू (चैत्र - वैशाख ) (मार्च - मई)
इस के साथ शहद मिलाकर सेवन करें। शहद उतना मिलाएं जितना मिलाने से अवलेह बन जाये।

2- ग्रीष्म ऋतू - (ज्येष्ठ - अषाढ) (मई - जुलाई)
त्रिफला को गुड़ 1/6 भाग मिलाकर सेवन करें।

3- वर्षा ऋतू - (श्रावण - भाद्रपद) - (जुलाई - सितम्बर)
इस त्रिदोषनाशक चूर्ण के साथ सैंधा नमक 1/6 भाग मिलाकर सेवन करें।

4- शरद ऋतू - (अश्विन - कार्तिक) (सितम्बर - नवम्बर)
त्रिफला के साथ देशी खांड 1/6 भाग मिलाकर सेवन करें ।

5- हेमंत ऋतू - (मार्गशीर्ष - पौष) (नवम्बर - जनवरी)
त्रिफला के साथ सौंठ का चूर्ण 1/6 भाग मिलाकर सेवन करें।

6- शिशिर ऋतू - (माघ - फागुन) (जनवरी - मार्च)
पीपल छोटी का चूर्ण 1/6 भाग मिलाकर सेवन करें।

इस तरह इसका सेवन करने से लाभ:

प्रथम वर्ष तन सुस्ती जाय। द्वितीय रोग सर्व मिट जाय।।
तृतीय नैन बहु ज्योति समावे। चतुर्थे सुन्दरताई आवे।।
पंचम वर्ष बुद्धि अधिकाई। षष्ठम महाबली हो जाई।।
श्वेत केश श्याम होय सप्तम। वृद्ध तन तरुण होई पुनि अष्टम।।
दिन में तारे देखें सही। नवम वर्ष फल अस्तुत कही।।
दशम शारदा कंठ विराजे। अन्धकार हिरदै का भाजे।।
जो एकादश द्वादश खाये। ताको वचन सिद्ध हो जाये।।

-एक वर्ष के भीतर शरीर की सुस्ती दूर होगी ,

-दो वर्ष सेवन से सभी रोगों का नाश होगा ,

-तीसरे वर्ष तक सेवन से नेत्रों की ज्योति बढ़ेगी ,

-चार वर्ष तक सेवन से चेहरे का सोंदर्य निखरेगा ,

- पांच वर्ष तक सेवन के बाद बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होगा ,

-छ: वर्ष सेवन के बाद बल बढेगा ,

- सातवें वर्ष में सफ़ेद बाल काले होने शुरू हो जायेंगे

- आठ वर्ष सेवन के बाद शरीर युवाशक्ति सा परिपूर्ण लगेगा।

- दसवे वर्ष में स्वयं स्वयं देवी सरस्वती कंठ में वास करेंगी जो अज्ञान के अन्धकार को दूर करेगी

- और ग्यारहवे एवं बारहवें वर्ष तक तो आपका कहा सत्य सिद्ध होने लगेगा।

******************
त्रिफला का अनुपात होना चाहिए।
1:2:3= 1 (बड़ी हरड़) : 2 (बहेड़ा ):3 (आंवला )

(सभी बीज रहित ही प्रयोग करनी है)



*मात्रा याद करने के लिए सूत्र*
A : B : H
3 : 2 : 1

*त्रिफला लेने का सही नियम*

सुबह अगर हम त्रिफला लेते हैं तो उसको हम "पोषक" कहते हैं क्योंकि सुबह त्रिफला लेने से त्रिफला शरीर को पोषण देता है जैसे शरीर में vitamin ,iron, calcium, micro-nutrients की कमी को पूरा करता है एक स्वस्थ व्यक्ति को सुबह त्रिफला खाना चाहिए।

सुबह जो त्रिफला खाएं हमेशा गुड या शहद के साथ खाएं ।

रात में जब त्रिफला लेते हैं उसे "रेचक " कहते है क्योंकि रात में त्रिफला लेने से पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि) का निवारण होता है।

रात में त्रिफला हमेशा गर्म दूध के साथ लेना चाहिए गर्म दूध न मिल पाए तो गर्म पानी के साथ।

*नेत्र-प्रक्षलन*

एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को एक कटोरी पानी में भिगोकर रखें। सुबह कपड़े से छानकर उस पानी से आंखें धो लें। यह प्रयोग आंखों के लिए अत्यंत हितकर है।इससे आंखें स्वच्छ व दृष्टि सूक्ष्म होती है। आंखों की जलन, लालिमा आदि तकलीफें दूर होती हैं।

- *कुल्ला करना*

त्रिफला रात को पानी में भिगोकर रखें। सुबह मंजन करने के बाद यह पानी मुंह में भरकर रखें। थोड़ी देर बाद निकाल दें। इससे दांत व मसूड़े वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं। इससे अरुचि, मुख की दुर्गंध व मुंह के छाले नष्ट होते हैं।

त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है। त्रिफला के काढ़े से घाव धोने से एलोपैथिक -एंटिसेप्टिक की आवश्यकता नहीं रहती, घाव जल्दी भर जाता है।

गाय का घी व शहद के मिश्रण (घी अधिक व शहद कम) के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन आंखों के लिए वरदान स्वरूप है।

संयमित आहार-विहार के साथ इसका नियमित प्रयोग करने से मोतियाबिंद, कांचबिंदु-दृष्टिदोष आदि नेत्र रोग होने की संभावना नहीं होती।

मूत्र संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में यह फायदेमंद है।

रात को गुनगुने पानी के साथ त्रिफला लेने से कब्ज नहीं रहती है।

मात्रा : 2 से 4 ग्राम चूर्ण दोपहर को भोजन के बाद अथवा रात को गुनगुने पानी के साथ लें।

त्रिफला का सेवन रेडियोधर्मिता से भी बचाव करता है।(इसके लिये त्रिफला सम भाग का होना चाहिए) प्रयोगों में देखा गया है कि त्रिफला की खुराकों से गामा किरणों के रेडिएशन के प्रभाव से होने वाली अस्वस्थता के लक्षण भी नहीं पाए जाते हैं।

इसीलिए त्रिफला चूर्ण आयुर्वेद का अनमोल उपहार कहा जाता है।

सावधानी : दुर्बल, कृश (दुबला-पतला) व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को एवं नए बुखार में त्रिफला का सेवन नहीं करना चाहिये।

त्रिफला लेने के नियम।

• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें

• ‎रिफाइन्ड नमक, रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें

• ‎विकारों को पनपने न दें और सही समय पर ही इनका प्रयोग करें (काम,क्रोध, लोभ,मोह, इर्ष्या,)

• ‎वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य, अपनवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)

• ‎एल्मुनियम, प्लास्टिक के बर्तन का उपयोग न करें (मिट्टी के सर्वोत्तम)

• ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें

• ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)

• ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)

• ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये

• ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें

• ‎पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये

• ‎बार बार भोजन न करें अर्थात एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें


Like (0)

Comments

Post

Latest Posts

यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

Top