‼️नारायणाक्षी साधना‼️
👉एक अदभुत और गोपनीय साधना
👉जिसे सम्पन्न करने के बाद साधक के जीवन की कायाकल्प बदल जाती है।
👉नारायणत्व को अपने अंदर समाहित करने हेतु एक दुर्लभ साधना विधान
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👉1.इस साधना को करने से घर में लक्ष्मी का चिर निवास रहता है,क्योंकि जहां नारायण है वहां लक्ष्मी होती ही है और इस प्रकार से किसी भी प्रकार की कमी ,कठिनाई, साधक के जीवन में नहीं आती है और साधक आनन्द युक्त जीवन जीता है।
👉2. साधक के सभी शत्रु समाप्त हो जाते है और जीवन भर साधक अपने शत्रुओं पर हावी बना रहता है।
👉3. यदि कोर्ट - कचहरी में मुकदमा चल रहा है तो उस मुकदमें का निर्णय साधक के पक्ष में हो जाता है।
👉4. यदि व्यक्ति रोगी हो तो अथवा भयंकर से भयंकर रोग हो तो वो रोग कुछ ही दिनों के अंदर जड़-मूल से नष्ट हो जाता है और व्यक्ति प्रसन्नचित होकर स्वस्थ जीवन जीने लगता है।
👉5. साधक के अंदर के सभी विकार, कुत्सित भावनाएं नष्ट हो जाती है और उसका मन पूर्णत: निर्मल हो जाता है।इस प्रकार से चाहे साधक किसी भी वातावरण में रहे उसमें वह अछुता रहता हुआ एक दिव्य पथ की ओर अग्रसर होने लग जाता है। भौतिकता में श्रेष्ठता प्राप्त करता है तो वहीं दूसरी ओर वह आध्यात्म की ऊंचाइंयों को भी प्राप्त कर लेता है।
👉6. साधक के अंदर एक तीव्र सम्मोहन व्याप्त हो जाता है जिसके कारण सभी लोग उसकी ओर आकर्षित होते रहते है और उससे मिलने वाला हर व्यक्ति उसकी ओर स्वत: ही आकृष्ट हो जाता है।
👉7.साधक को आने वाले समय के बारे में पहले ही ज्ञान हो जाता है ,जिससे वह फिर उसी के अनुसार कार्य करता है क्योंकि ‼️नारायणाक्षी ‼️का अर्थ ही है कि दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाना।
👉8. इस साधना से साधक पारिवारिक व समाजिक दोनों ही पक्षों में सफलता युक्त होता है और उसे सहज ही यश ,मान-प्रतिष्ठा,प्रेम,सुख,आनंद ,ऐश्वर्य आदि प्राप्त होता है।
‼️साधना विधान‼️
👉 मुहूर्त:- अनन्त चतुर्दशी या किसी भी शुक्लपक्ष गुरूवार से शुरू करें
👉समय :- रात्रि दस बजे
👉दिवस अवधि :- ग्यारह दिन
👉 विशेष सामग्री :- नारायण साक्षी यंत्र और मंत्र सिद्ध प्राणप्रतिष्ठित रुद्राक्ष माला
👉पूजन :- पंचोपचार और सामान्य प्राथमिक साधना पूजन विधान
👉आसन -वस्त्र :- सफेद रंग के
👉दिशा :- उतर दिशा
👉विशेष :- अपने सामने बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस वस्त्र पर कुंकुम से आँख की आकृति को बनायें और उस आकृति पर नारायणाक्षी यंत्र को शुद्ध जल से धोकर व पोंछकर उस पर स्थापित कर दें और फिर प्राथमिक पूजन विधान सम्पन्न करके यंत्र का पूजन पंचोपचार से करें।फिर पूजन के बाद दोनों हाथ में पुष्प अक्षत लेकर प्रणाम की मुद्रा में जोडकर निम्न ध्यान का उच्चारण करके ध्यान करें ।
👉ध्यान :- ‼️ करूणापरायणपदं श्रुति शास्त्रसारं,ध्यायामि सत्यार्थं परं प्रसन्नं❗️
तं चिन्तयामि सततं भावरोग वैद्यम,नमोअस्तु नारायण देवदेवम्‼️
👉जप संख्या :- 51 माला
👉भोग :- पंचमेवे,खीर व फल आदि
👉पुष्प :- सफेद रंग के ।
‼️मंत्र‼️
‼️ऊँं ह्रीं नमों नारायणाय अनन्ताय श्रीं ऊँ नमो:‼️
👉ध्यान के बाद ही मंत्र जप करें ।
👉मंत्र जप के बाद नारायण स्तोत्र का भी एक पाठ अवश्य करें।
👉फिर पांच मिनट तक ध्यान करें और उसके बाद आरती आदि करके आसन के नीचे जल डालकर उस जल को तीन बार अपने आज्ञा चक्र पर अनामिका ऊंगली के द्वारा निम्न मंत्र बोलते हुये लगाये और फिर आसन को प्रणाम करके उसे फोल्ड करके आसन से उठें।
मंत्र :- ‼️ऊं विष्णवे नम: ,ऊं विष्णवे नम: ,ऊं विष्णवे नम:‼️
👉 नोट: भोग नित्य नवीन ही लगायें ।
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Dhanyawad aapka
Thanks sir ji
👉जप संख्या :- 51 माला 👉भोग :- पंचमेवे,खीर व फल आदि 👉पुष्प :- सफेद रंग के । ‼️मंत्र‼️
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भोग नित्य नवीन ही लगायें
‼️नारायणाक्षी साधना‼️ 👉एक अदभुत और गोपनीय साधना 👉जिसे सम्पन्न करने के बाद साधक के जीवन की कायाकल्प बदल जाती है। 👉नारायणत्व को अपने अंदर समाहित करने हेतु एक दुर्लभ साधना विधान
अति सुंदर ज्ञान प्राप्त हुआ
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