चातुर्मास 2020- वर्जित रहेंगे सभी शुभ काम, भगवान 5 महीने करेंगे विश्राम
Share1-जुलाई 2020, से चातुर्मास प्रारंभ हो रहा है। इस बार यह चातुर्मास 4 की जगह कुल 5 महीने, या यूँ कहिये कुल 148 दिनों लंबा चलने वाला है। इसके साथ ही इस चातुर्मास को ख़ास भी माना जा रहा है, और वजह है 160 साल बाद, लीप ईयर और अधिकमास का एक साथ बनता संयोग। बता दें कि इससे पहले साल 1860, में ऐसा संयोग बना था जब लीप ईयर और अधिकमास साथ एक वर्ष में आये थे।इस दौरान सभी तरह के मांगलिक कार्य, विशेषतौर पर शादी और मुंडन संस्कार वर्जित माने जाते हैं। आइये सबसे पहले जानते हैं कि चातुर्मास होता क्या है? सावन, भाद्रपद,आश्विन और कार्तिक, हिन्दू धर्म में इन चार महीनों के इस समय (चातुर्मास) को बेहद ख़ास माना जाता है। इन महीनों में व्रत-उपवास, जप-तप का विशेष महत्व बताया गया है। बता दें कि देवशयन एकादशी के दिन से ही चातुर्मास की शुरुआत होती है, और इसका अंत कार्तिक के देव प्रबोधिनी एकादशी को होता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार यह वो चार महीने होते हैं जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन रहते हैं, और इसी वजह के चलते इन महीनों के दौरान कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य करना वर्जित माना गया है क्या है चातुर्मास का महत्व? हिन्दू मान्यताओं के अनुसार चातुर्मास का अपना महत्व बताया गया है। इस वर्ष 4 महीने की जगह चातुर्मास पांच महीने का होने जा रहा है। यानि 1 जुलाई से शुरू होकर यह समय 25 नवंबर तक चलेगा, इसके बाद 26 नवंबर को इसकी समाप्ति से पुनः मांगलिक कार्यों की शुरुआत की जा सकेगी। इस वर्ष दो आश्विन मास होने की वजह से चातुर्मास की समय अवधि में तब्दीली आई है। जानकारी के लिए बता दें कि इस वर्ष, श्राद्ध पक्ष के बाद आने वाले सभी त्यौहार 20 से 25 दिन देरी से आएंगे। इस साल सभी त्यौहार भी देरी से आयेंगे अन्य साल के हिसाब से बात करें तो, जैसे ही श्राद्ध ख़त्म होता था, उसके अगले ही दिन नवरात्रि प्रारंभ हो जाती थी, लेकिन इस वर्ष ऐसा नहीं होगा। तारीख़ के हिसाब से समझाएं तो, इस वर्ष 17 सितम्बर 2020, को श्राद्ध ख़त्म होंगे, लेकिन इसके अगले ही दिन से अधिकमास की शुरुआत हो जाएगी। इसके बाद यह अधिकमास 16 अक्टूबर तक चलेगा। 17-अक्टूबर, 2020 से फिर नवरात्रि प्रारंभ होगी। नवरात्रि के बाद 26 अक्टूबर को दशहरा का पर्व मनाया जायेगा और फिर 14-नवंबर को दिवाली मनाई जाएगी। और अंत में 25 नवंबर 2020, को देवउठनी एकादशी के साथ चातुर्मास की समाप्ति हो जाएगी । कहा जाता है कि, चातुर्मास का उपयुक्त फल प्राप्त करने के लिए इन चार महीनों में जप-तप और शुभ काम में अपना समय व्यतीत करना चाहिए। इस दौरान मांगलिक कार्य, शादी, मुंडन, ग्रह-प्रवेश इत्यादि तो वर्जित माने ही गए हैं, साथ ही इस समय यात्रा करने से भी बचना चाहिए। चातुर्मास के बाद शादी-विवाह पुनः किये जा सकेंगे वैसे तो यह पूरा ही समय बेहद शुभ माना गया है लेकिन इनमें से भी सावन का महीना सबसे महत्वपूर्ण होता है। मान्यता के अनुसार जो कोई भी इंसान इस माह में भागवत कथा का पाठ, भगवान शिव का पूजा, धार्मिक अनुष्ठान, या दान-पुण्य करता है उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। बताया जाता है कि जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं तो वो श्रृष्टि का सारा कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं, और यही वजह है कि इस समय भगवान शिव और उनके परिवार की पूजा का अत्यधिक महत्व होता है।
Radhey Radhey
very good article. Vishwajeet Bhutra