नक्षत्र वर्गीकरण : मुख के आधार पर*

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Ravinder Pareek 04th Jun 2021

*नक्षत्र*_

*नक्षत्र वर्गीकरण : मुख के आधार पर*

मुख के आधार पर नक्षत्रों के तीन विभाग है !
अधोमुख, उर्ध्वमुख और तिर्यकमुख -

*अधोमुख :-* २ भरणी,३ कृतिका,९ आश्लेषा, १० मघा, ११ पूर्वा फाल्गुनी, १६ विशाखा, १९ मूल,२० पूर्वा षाढा, २५ पूर्वा भाद्रपद !

अधोमुख नक्षत्रों में अधोगमन वाले कार्य करने चाहिए !
जैसे-बावड़ी, बोरिंग खोदना, गुफा व सुरंग बनाना, सड़कों पर भूमिगत, पारपथ बनाना, भूमिगत गृह बनाना,

खुदाई करना, गणित या ज्योतिष सीखना, खान में खुदाई शुरू करवाना, जुआं खेलना आदि !
अतः जिन कामों में ऊपर से निचे की ओर गति हो, वे सब करना ठीक रहता है!

जहज की लैंडिंग, पहाड़ से उतरना, नदी में छलांग लगाना, तैरना, आदि भी इनमे किये जा सकते है!

*उर्ध्वमुख:-* ४ रोहिणी, ६ आर्द्र ,८ पुष्य,१२ उत्तरा फाल्गुनी, २१ उत्तरा षाढा, २२ श्रवण, २३ धनिष्ठा, २४ शतभिषा, २६ उत्तरा भाद्रपद !

इनमे उन्नति के कार्य, ऊपर चढ़ने या आगे बढ़ने के काम करने चाहिए !
मंदिर निर्माण, भवन निर्माण, वायु यात्रा करना, याद करने वाले विषय पढना,
नौकरी शुरू करना, बड़े पद पर बैठना, शपथ, ग्रहण करना, राज तिलक, आदि
व अधोमुख के विपरीत काम करने चाहिए !

*तिर्यकमुख :-* १ अश्वनी, ५ म्रग्शिरा, ७ पुनर्वसु, १३ हस्त, १४ चित्र, १५ स्वाति, १७ अनुराधा, १८ ज्येष्ठा, २७ रेवती !

यह ९ तिर्यक मुखी नक्षत्र है ! इन नक्षत्रो में यात्रा करना, हल चलाना,
पशुओं और वाहन का क्रय- विक्रय आदि कार्य सिद्ध होते है !
इन्ही नक्षत्रों में पशुओं को प्रशिक्षित करना, मशीनरी चालू करना,
आदि कार्य भी सुयोग्य कहे गए है !

*नक्षत्र वर्गीकरण:- लिंग के आधार पर*

नक्षत्रों को लिंग के आधार पर ३ वर्गों में बनता गया है !

१. पुरुष, २. स्त्री, ३. नपुंसक !

*१. पुरुष :-* १ अश्वनी, ७ पुनर्वसु, ८ पुष्य, १३ हस्त, १७ अनुराधा, २२ श्रवण, २५ पूर्वा भाद्रपद, २६ उत्तरा भाद्रपद !

*२. स्त्री :-*  २ भरणी, ,३ कृतिका, ४ रोहिणी, ६ आर्द्र , ९ आश्लेषा, १० मघा, ११ पूर्वा फाल्गुनी, १२ उत्तरा फाल्गुनी,
               १४ चित्र, १५ स्वाति, १६ विशाखा, १८ ज्येष्ठा, २० पूर्वा षाढा, २१ उत्तरा षाढा, २३ धनिष्ठा, २७ रेवती !

*३. नपुंसक :-* ५ मृगशिरा, १९ मूल, २४ शतभिषा !

*नक्षत्र वर्गीकरण:-नेत्र (लोचन) के आधार पर*
रोहिणी नक्षत्र से क्रमशः ७-७ नक्षत्रों की आवृत्ति करने से
क्रमशः अंध, मन्द या मन्दाक्ष , काण (मध्याक्ष), सुलोचन संज्ञक नक्षत्र होते है !

चोरी सम्बंधित प्रश्न- विचार में इनका बहुत महत्व होता है !

*१. अंध लोचन :-* ४ रोहिणी, ८ पुष्य, १२ उत्तरा फाल्गुनी, १६ विशाखा, २o पूर्वाषाढ, २३ धनिष्ठा, २७ रेवती !
अंध लोचन नक्षत्र में खोयो हुई, वस्तु शीघ्र ही पूर्व दिशा में मिल जाती है !

*२. मंद या मन्दाक्ष लोचन नक्षत्र :-* १ अश्विन, ५ मृगशिरा, ९ आश्लेषा, १३ हस्त, १७ अनुराधा, २१ उत्तराषाढ, २४ शतभिषा !
इन नक्षत्रों में खोयी हुई वस्तु उत्तर या दक्षिण दिशा में मिल जाती है !

*३. काण या मध्याक्ष या मध्य लोचन नक्षत्र :* २ भरणी, ६ आर्द्रा, १० मघा, १४ चित्र, १८ ज्येष्ठा, २५ पूर्व भाद्रपद, २८ अभिजित !
इनमे खोयी हुई वस्तु की जानकारी तो मिल जाती है पर वस्तु नहीं मिलती !

*४. सुलोचन नक्षत्र :* ३ कृतिका, ७ पुनर्वसु, ११ पूर्व फाल्गुनी, १५ स्वाति, १९ मूल, २२ श्रवण, २६ उत्तरा भाद्रपद !
इनमे खोई हुई वस्तु नहीं मिलती है !

*गण्डमूल / मूल  नक्षत्र  :-*

इस श्रेणी में ६ नक्षत्र आते है !

१. रेवती, २. अश्विनी, ३. आश्लेषा, ४. मघा, ५. ज्येष्ठा, ६. मूल  यह ६ नक्षत्र

मूल संज्ञक / गण्डमूल संज्ञक नक्षत्र होते है !
रेवती, आश्लेषा, ज्येष्ठा का स्वामी बुध है ! अश्विनी, मघा, मूल का स्वामी केतु है !

इन्हें २ श्रेणी में विभाजित किया गया है -बड़े मूल व छोटे मूल !
मूल, ज्येष्ठा व आश्लेषा बड़े मूल कहलाते है, अश्वनी, रेवती व मघा छोटे मूल कहलाते है ;

बड़े मूलो में जन्मे बच्चे के लिए २७ दिन के बाद जब चन्द्रमा उसी नक्षत्र में जाये तो शांति
करवानी चाहिए ऐसा पराशर का मत भी है, तब तक बच्चे के पिता को बच्चे का मुह नहीं
देखना चाहिए !

जबकि छोटे मूलो में जन्मे बच्चे की मूल शांति उस नक्षत्र स्वामी के दूसरे
नक्षत्र में करायी जा सकती है अर्थात १०वे या १९वे दिन में !

यदि जातक के जन्म के समय
चद्रमा इन नक्षत्रों में स्थित हो तो मूल दोष होता है ; इसकी शांति नितांत आवश्यक होती है !

जन्म समय में यदि यह नक्षत्र पड़े तो दोष होता है !
दोष मानने का कारण यह है की नक्षत्र चक्र और राशी चक्र दोनों में इन नक्षत्रों पर
संधि होती है ( चित्र में यह बात स्पष्टता से देखि जा सकती है ) !

और संधि का समय हमेशा से विशेष होता है ! उदाहरण के लिए रात्रि से जब दिन
का प्रारम्भ होता है तो उस समय को हम ब्रम्हमुहूर्त कहते है ;

और ठीक इसी तरह जब दिन से रात्रि होती है तो उस समय को हम गदा बेला / गोधूली
कहते है !

इन समयों पर भगवान का ध्यान करने के लिए कहा जाता है - जिसका सीधा सा अर्थ
है की इन समय पर सावधानी अपेक्षित होती है !

संधि का स्थान जितना लाभप्रद होता है उतना ही हानि कारक भी होता है !

संधि का समय अधिकतर शुभ कार्यों के लिए अशुभ ही माना जाता है !

*गण्डमूल में जन्म का फल :*
विभिन्न चरणों में दोष विभिन्न लोगो को लगता है, साथ ही इसका फल हमेशा बुरा ही
हो ऐसा नहीं है  !

*अश्विनी नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :*
प्रथम पद में - पिता के लिए कष्टकारी
द्वितीय पद में - आराम तथा सुख केलिए उत्तम
तृतीय पद में - उच्च पद
चतुर्थ पद में - राज सम्मान

*आश्लेषा नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :*
प्रथम पद में - यदि शांति करायीं जाये तो शुभ
द्वितीय पद में - संपत्ति के लिए अशुभ
तृतीय पद में - माता को हानि
चतुर्थ पद में - पिता को हानि

मघा नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :
प्रथम पद में - माता को हानि
द्वितीय पद में - पिता को हानि
तृतीय पद में - उत्तम
चतुर्थ पद में - संपत्ति व शिक्षा के लिए उत्तम

*ज्येष्ठा नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :*
प्रथम पद में - बड़े भाई के लिए अशुभ
द्वितीय पद में - छोटे भाई के लिए अशुभ
तृतीय पद में - माता के लिए अशुभ
चतुर्थ पद में - स्वयं के लिए अशुभ

*मूल  नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :*
प्रथम पद में - पिता के जीवन में परिवर्तन
द्वितीय पद में - माता के लिए अशुभ
तृतीय पद में - संपत्ति की हानि
चतुर्थ पद में - शांति कराई जाये तो शुभ फल

*रेवती नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :*
प्रथम पद में - राज सम्मान
द्वितीय पद में - मंत्री पद
तृतीय पद में - धन सुख
चतुर्थ पद में - स्वयं को कष्ट

*अभुक्तमूल*
ज्येष्ठा की अंतिम एक घडी तथा मूल की प्रथम एक घटी अत्यंत हानिकर हैं !

इन्हें ही अभुक्तमूल कहा जाता है, शास्त्रों के अनुसार पिता को बच्चे से ८ वर्ष
तक दूर रहना चाहिए !

यदि यह संभव ना हो तो कम से कम ६ माह तो अलग
ही रहना चाहिए ! मूल शांति के बाद ही बच्चे से मिलना चाहिए !
अभुक्तमूल पिता के लिए अत्यंत हानिकारक होता है !

यह तो था नक्षत्र गंडांत इसी आधार पर लग्न और तिथि गंडांत भी होता है -

*लग्न गंडांत :* मीन-मेष, कर्क-सिंह, वृश्चिक-धनु लग्न की आधी-२ प्रारंभ व अंत की
घडी कुल २४ मिनट लग्न गंडांत होता है !

*तिथि गंडांत :-* ५,१०,१५ तिथियों के अंत व ६,११,१ तिथियों के प्रारम्भ की २-२ घड़ियाँ
तिथि गंडांत है रहता है !

👉 जन्म समय में यदि तीनों गंडांत एक साथ पड़ रहे है तो यह महा-अशुभ होता है ;
नक्षत्र गंडांत अधिक अशुभ, लग्न गंडांत मध्यम अशुभ व तिथि गंडांत सामान्य अशुभ
होता है, जितने ज्यादा गंडांत दोष लगेंगे किसी कुंडली में उतना ही अधिक अशुभ
फल करक होंगे !

*गण्ड का अपवाद :* 
निम्नलिखित विशेष परिस्थितियों में गण्ड या गण्डांत का प्रभाव काफी हद तक कम हो जाता है (लेकिन फिर भी शांति अनिवार्य है) !

१. *गर्ग के मतानुसार*
रविवार को अश्विनी में जन्म हो या सूर्यवार बुधवार को ज्येष्ठ, रेवती, अनुराधा, हस्त, चित्रा, स्वाति हो तो नक्षत्र जन्म दोष कम होता है !

२. *बादरायण के मतानुसार* गण्ड नक्षत्र में चन्द्रमा यदि लग्नेश से कोई सम्बन्ध, विशेषतया दृष्टि सम्बन्ध न बनाता हो तो इस दोष में कमी होती है !

३. *वशिष्ठ जी के अनुसार* दिन में मूल का दूसरा चरण हो और रात में मूल का पहला चरण हो तो माता-पिता के लिए कष्ट होता है इसलिए शांति अवश्य कराये!

४. ब्रम्हा जी का वाक्य है की चन्द्रमा यदि बलवान हो तो नक्षत्र गण्डांत व गुरु बलि हो तो लग्न गण्डांत का दोष काफी कम लगता है !

५.      वशिष्ठ के मतानुसार अभिजीत मुहूर्त में जन्म होने पर गण्डांतादी दोष प्रायः नष्ट हो जाते है ! लेकिन यह विचार सिर्फ विवाह लग्न में ही देखें, जन्म में नहीं !

रविन्द्र पारीक (वास्तुकार एवं ज्योतिर्विद)


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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।