वास्तु टिप्स के द्वारा वास्तु दोष को दूर किया जाता है। वास्तुशास्त्र एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जिसके अंतर्गत घर, भवन और मंदिर निर्माण की व्यवस्थित प्रक्रिया होती है। इस विज्ञान को वास्तु कला के नाम से भी जाना जाता है। वास्तु शास्त्र में दिशाओं का स्थान महत्वपूर्ण हैं। वैसे तो मूल रूप से चार दिशाएँ (पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण) हैं लेकिन वास्तुशास्त्र में 10 दिशाएं होती हैं। इनमें मूल दिशाओं के अलावा आकाश, पाताल, ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य दिशाएं आती हैं। वास्तु शास्त्र में दिशाएँ पूर्व दिशा सूर्योदय की दिशा होती है। वास्तु के अनुसार इस दिशा के स्वामी इंद्र देव हैं। यह सुख और समृद्धि की दिशा होती है। भगवान शिव को ईशान कोण का स्वामी माना जाता है। यह दिशा उत्तर और पूर्व के मध्य की दिशा होती है। पूर्व और दक्षिण दिशा के मध्य को आग्नेय कोण कहा जाता है। अग्नि देव इस दिशा के स्वामी हैं। वहीं दक्षिण दिशा के स्वामी यम हैं। यह दिशा सुख और संपन्नता को दर्शाती है। दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य भाग को नैऋत्य कोण कहा जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दिशा का स्वामी राक्षस है। इस दिशा का वास्तु दोष दुर्घटना, रोग और मानसिक पीड़ा का कारक होता है। पश्चिम दिशा के देवता वरुण हैं और वास्तुशास्त्र के अनुसार शनिदेव पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। यह दिशा प्रसिद्धि और भाग्य को दर्शाती है। उत्तर और पश्चिम के मध्य कोणीय स्थान को वायव्य दिशा कहा जाता है। इस दिशा के स्वामी वायु देव हैं। यह दिशा पड़ोसियों, मित्रों और संबंधियों से अच्छे या बुरे संबंधों का कारक है। उत्तर दिशा के देवता कुबेर हैं और बुध ग्रह इस दिशा के स्वामी है। उत्तर दिशा को मातृ स्थान भी कहा जाता है। वास्तु दोष क्या होता है? वेदों के अनुसार चारों दिशाओं में विभिन्न देवताओं के स्थान होते हैं, साथ ही नवग्रहों की दिशाएं भी निर्धारित होती हैं। इनके प्रभाव से हमें सकारात्मक ऊर्जा व आत्मबल मिलता है लेकिन यदि मकान, भवन या दुकान बनाते समय यदि दिशा संबंधी कोई कमी या त्रुटि रह जाती है तो वास्तु दोष उत्पन्न होता है। इसके प्रभाव से घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास होने लगता है और इसे ही वास्तु दोष कहा जाता है। वास्तु दोष को दूर करने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए:- वास्तु दोष निवारण यंत्र वास्तु यंत्र बहुत शक्तिशाली होता है। यह यंत्र घर, दफ्तर या किसी भी इमारत की वास्तु में दोष की वजह से उत्पन्न होने वाले हानिकारक प्रभावों से निपटने के लिए प्रभावशाली होता है। वास्तु यंत्र पंच तत्वों पृथ्वी, जल, वायु, अाग्नेय और आकाश के बीच सतुंलन बनाकर हमारे घर और कार्य स्थल पर सुख, समृद्धि और मानसिक शांति प्राप्त करने में मदद करता है। वास्तु यंत्र न केवल बुरे प्रभावों को खत्म करता है बल्कि सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर वास्तुशास्त्र के अनुसार घर की पूर्व व उत्तर दिशा ऊँची हो ओर पश्चिम व दक्षिण दिशा नीची हो तो उस घर में आये दिन झगड़ा होता है और आर्थिक समस्यायें बनी रहती है, लिहाज़ा इसका अवश्य ध्यान रखना चाहिए। घर का वायव्य कोण ऊँचा होने पर शत्रुओं की संख्या में वृद्धि होती एवं दुर्घटनायें होती रहती है। जिस घर का नैऋत्य कोण और दक्षिण निचला हो और ईशान व उत्तर ऊँचा हो तो ऐसे घरों के मालिक शराब व अन्य व्यसनों में अपना धन बर्बाद करता है। रसोई घर सदैव पूर्व अाग्नेय कोण में होना चाहिए और भोजन करते वक्त दक्षिण में मुंह करके नहीं बैठना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का नक्शा यदि आप दो मंजिला मकान बनवाना चाहते है, तो पूर्व एंव उत्तर दिशा की ओर भवन की ऊँचाई कम रखें इससे भवन में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहेगी। भवन में पूर्व व उत्तर दिशा में ही दरवाजे व खिड़कियां रखनी चाहिए। दक्षिण व पश्चिम दिशा में भूलकर भी खिड़कियाँ नहीं रखनी चाहिए। वास्तु के अनुसार घर में धन रखने के लिए तिजोरी का मुख हमेशा उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। पूर्व दिशा में बाथरूम शुभ रहता है। वास्तु के अनुसार घर में रंग वास्तुशास्त्र के उपाय के तहत बताया गया है कि घर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व व अग्नि कोण के द्वार का रंग सदैव हरा या नीला रखना चाहिए। दक्षिण दिशा के प्रवेश द्वार का रंग हरा, लाल, बैंगनी, केसरिया होना चाहिए। नैऋत्य और ईशान कोण का प्रवेश द्वार हरे रंग का या पीला केसरी या बैंगनी होना चाहिए। पश्चिम और वायव्य दिशा का प्रवेश द्वार सफेद या सुनहरा होना चाहिए। उत्तर दिशा का प्रवेश द्वार आसमानी सुनहरा या काला होना चाहिए। वास्तु के अनुसार बेडरूम वास्तुशास्त्र के टोटके बताते हैं कि बेडरूम में गेट के सामने वाली दीवार बेहद महत्वपूर्ण होती है। यह स्थान भाग्य और संपत्ति का क्षेत्र होता है। इसलिए यह कहा जाता है कि इस दिशा का सही होना जरूरी है। वहीं बेडरूम में टेबल गोल होना चाहिए। बीम के नीचे व कालम के सामने नहीं सोना चाहिए। बच्चों के शयनकक्ष में काँच नहीं लगाना चाहिए। मिट्टी और धातु की वस्तुएँ अधिक होना चाहिए। ट्यूबलाइट की जगह लैम्प होना चाहिए। वास्तु टिप्स के अनुसार प्रमुख व्यक्तियों का शयन कक्ष नैऋत्य कोण में होना चाहिए और बच्चों को वायव्य कोण में रखना चाहिए। शयनकक्ष में सोते समय सिर उत्तर में, पैर दक्षिण में कभी न करें। आग्नेय कोण में सोने से पति-पत्नी में वैमनस्यता रहकर व्यर्थ धन व्यय होता है। ईशान में सोने से बीमारी होती है। पश्चिम दिशा की ओर पैर रखकर सोने से आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है। उत्तर की ओर पैर रखकर सोने से धन की वृद्धि होती है एवं उम्र बढ़ती है। वास्तु के अनुसार घर में मंदिर वास्तुशास्त्र के उपाय के अनुसार ईशान कोण देवता का स्थान है इसलिए इस स्थान पर मंदिर होना चाहिए। इससे घर में हमेशा सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है और परिवार वालों के ज्ञान में वृद्धि होती है। पूजा करते हुए मुख पूर्व की तरफ़ होना चाहिए। इसके अतिरिक्त उत्तर दिशा की ओर मुख करके भी पूजा की जाती है। ऐसा करने से घर में धन व समृद्धि आती है। वहीं अगर आप अभी पढ़ाई कर रहे हैं तो पूर्व अथवा उत्तर दिशा की तरफ़ मुख करके अध्ययन करें। वास्तु के अनुसार घर में तस्वीरें वास्तुशास्त्र के सरल उपाय के तहत घर या ऑफिस पर हिंसक तस्वीरें नहीं होनी चाहिए। फल-फूल और बच्चों की तस्वीरें जीवन शक्ति के प्रतीक होती हैं इन्हे घर की दीवार पर पूर्व या उत्तर की दिशा में होना चाहिए। पर्वत आदि प्राकृतिक दृश्य दर्शाती तस्वीरों को दक्षिण या पश्चिम दिशा में लगाना सही रहता है। शुभ प्रतीक चिन्हों (स्वास्तिक, मंगल कलश, ॐ आदि) की तस्वीरों को लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है। वास्तु के अनुरूप पूर्वजों के चित्र हमेशा दक्षिण दिशा में लगाने चाहिए। पूर्वजों के चित्रों को मन्दिर में न रखें।
वास्तु के बारे में अदभुत जानकारी दिया