राहु के बारे में विस्तार से आप को बता रहा हूँ।।
राहु के शुभ होने पर व्यक्ति को कीर्ति, सम्मान,
राज वैभव व बौद्धिक उपलब्धता प्राप्त होती हैं
परन्तु राहु के अशुभ होने पर जो राहु की महादशा, अन्र्तदशा, प्रत्यन्तर व द्वादश भावों में राहु
की स्थिति के दौरान व्यक्ति को कई तरह
की परेशानियों व कष्टों का सामना भोगना पड़ता हैं।
मिथुन, कन्या, तुला, मकर और मीन राशियाँ राहु
की मित्र राशि है तथा कर्क और सिंह शत्रु राशिया
है। यह ग्रह शुक्र के साथ राजस तथा सूर्य एवं चन्द्र के साथ शत्रुता का व्यवहार करता है। बुध, शुक्र, गुरू को न तो अपना मित्र समझता है और नहीं उससे
किसी प्रकार की शत्रुता
ही रखता है यह अपने स्थान से पाँचवे, सातवे,
नवे स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता हैं
कलियुग में राहु का प्रभाव बहुत है अगर राहु अच्छा हुआ तो
जातक आर.एस. या आई.पी.एस., कलेक्टर
राजनैता बनता है। इसकी शक्ति
असीम है। सामान्य रूप से राहु के द्वारा मुद्रण
कार्य फोटोग्राफी नीले रंग
की वस्तुए, चर्बी,
हड्डी जनित रोगों से पीडि़त करता है। राहु के प्रभाव से जातक आलसी तथा मानसिक रूप से सदैव दुःखी रहता है। यह
सभी ग्रहों में बलवान माना जाता है तथा वृष और तुला लग्न में यह योगकारक रहता है।
राहु के कारण व्यक्ति को निम्नांकित परेषानियों का सामना करना पड़ता
हैं: –
1 नौकरी व व्यवसाय में बाधा
2. मानसिक तनाव व अशांति
3. रात को नींद न आना
4. परीक्षाओं में असफलता प्राप्त होना
5. कार्य में मन न लगना
6. बेबुनियाद ख्यालों में उलझे रहना
7. अचानक धन का अधिक खर्च होना या धन रूक-रूक कर प्राप्त
होना
8. बिना सोचे समझे कार्य करना
9. दुर्जनों व दुष्टों से मित्रता
10. पति-पत्नी में तनाव व नीच
स्त्रियों से सम्बन्ध होना
11. पेट व आंतडि़यों के रोग होना
12. बनते कार्यो में रूकावट होना।
13. पुलिस व कानूनी परेशानियां तथा सरकार
की तरफ से दण्ड
14. घर व भौतिक सुखों की कमी
15. धन, चरित्र, स्वास्थ्य की तरफ से
लापरवाही।
जन्म पत्रिका के विभिन्न भावो में राहु के प्रभाव:-
प्रथम भाव: दुष्ट बुद्धि, दुष्ट स्वभाव, सम्बन्धियों को ठगने वाला,
मस्तक का रोगी, विवाद में विजय व रोगी
होता हैं।
द्वितीय भाव: कठोर कर्मी, धन
नाशक, दरिद्र, भ्रमणशीला होता हैंै।
तृतीय भाव: शत्रुओं के ऐश्वर्य को नष्ट करने वाला,
लोक में यशस्वी, कल्याण व ऐश्वर्य पाने वाला, सुख
व विशाल को पाने वाला, भाईयों की मृत्यु करने वाला, पशु
नाशक, दरिद्र, पराक्रमी होता हैं।
चतुर्थ भाव: दुखी, पुत्र-मित्र सुख रहित, निरतंर
भ्रमणशील व उदर रोगी बनाता हैं।
पंचम भाव: सुखहीन, मित्रहीन,
उदर-शुल रोगी, विलास में पीड़ा, भ्रमित
व उदर रोगी बनाता हैं।
षष्ठ भाव: शत्रु बल नाशक, द्रव्य लाभ पाने वाला, कमर में दर्द,
म्लेच्छो से मित्रता व बलवान होता हेै।
सप्तम भाव: स्त्री विरोधी,
स्त्री नाशक, प्रचण्ड क्रोधी,
स्त्री से विवाद करने वाला, रोगी
स्त्री प्राप्त करता हैं।
अष्ठम भाव: नाश करने वाला, गुदा में पीड़ा, प्रमेह
रोग, अंड वृद्धि, शत्रुओं के कारण व्याकुल व क्रोधी
बनाता हैं।
नवम् भाव: क्रोध में धन नष्ट करने वाला, अल्प
सुखी, निरन्तर भ्रमणशील,
दरिद्री, सम्बन्धियों का अल्प सुख
शरीर पीड़ा युक्त व वात
रोगी बनाता हैं।
दशम भाव: पितृ सुख रहित, अभागा, शत्रुनाशक, रोगी
वाहनहीन, वात रोगी
एकादश भाव: सभी प्रकार से धन, सुख का लाभ पाने
वाला, सरकार से सुख, वस्त्राभूषण, पशु से लाभ, यंत्र-तंत्र विजय,
मनोरथ सिद्धि को प्राप्त करने वाला।
द्वादश भाव: नेत्र रोगी, पांव में चोंट, निश्चित प्रेम
करने वाला, दुष्टों का स्नेही, पाखंडी,
कामी, अविवेकी, चिन्तातुर व
खर्चीला होता हैं।
राहु के कष्टो के निवारणार्थ निम्न उपाय करें –
01.मंगलवार , शनिवार श्री हनुमान
जी को छुवारे ं ( खारक ) का प्रसाद अर्पण करें
और बच्चो में बाटें
02.गरीबो को कम्बल , साबुन , या नमक का दान
करें ।
03.बन्दरों को बैंगन या फल खिलाये । श्री हनुमान
जी को यथा संभव गुड़ , चनें का भोग रविवार ,
मंगलवार , व शनिवार को लगावें ।
04.बहतें पानी में कोयले बहायंे । भगवान शिव को
पिण्ड खजूर का प्रसाद अर्पण करें और बांटें ।
05.ताम्र पात्र का ही जल पीयें ।
और संभव हो तो ताम्र गिलास में ही जल पिवंे ।
06.प्रत्येक रविवार को श्री हनुमान
जी को 11 या 21 लोगं की माला
पहनाए और बजरंग बाण का पाठ करे ।